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स्थानीय समस्याओं का जिक्र तो करते हैं, पर इसे चुनावी फैक्टर नहीं मान रहे पलामू के वोटर

पलामू से सतीश कुमार/विवेक चंद्र गौण हैं पानी-पलायन के मुद्दे बेटा और पाहुन में मतदाता बंटे तीखी धूप़, उमस भरी दोपहरिया़, सूखी पड़ी अमानत, कोयल, औरंगा के अलावा दर्जन भर छोटी नदियां. खेतों में फसल के नाम पर अरहर, चना और गेहूं के छोटे-बड़े टाल दिखते हैं. मौसम की बेरुखी और बुनियादी समस्याओं से जूझते […]

पलामू से सतीश कुमार/विवेक चंद्र
गौण हैं पानी-पलायन के मुद्दे बेटा और पाहुन में मतदाता बंटे
तीखी धूप़, उमस भरी दोपहरिया़, सूखी पड़ी अमानत, कोयल, औरंगा के अलावा दर्जन भर छोटी नदियां. खेतों में फसल के नाम पर अरहर, चना और गेहूं के छोटे-बड़े टाल दिखते हैं. मौसम की बेरुखी और बुनियादी समस्याओं से जूझते लोग, लेकिन कहीं-कहीं चौक-चौराहों पर चुनाव का रोमांच भी़
आमलोगों में चुनाव को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखता है. क्षेत्र में पानी की कमी और पलायन प्रमुख मुद्दा है़, पर आक्रोश कहीं सतह पर नहीं दिखता़ घूम-फिर कर बात मोदी फैक्टर पर अटक जाती है़ पलामू में मतदान में एक सप्ताह का समय बचा है़ 29 अप्रैल को होनेवाले मतदान को लेकर लोग जागरूक हैं.
पलामू के चुनावी दंगल में 19 प्रत्याशी हैं. लेकिन, स्थानीय लोग भाजपा के बीडी राम और राजद के घूरन राम में सीधा मुकाबला होने की बात करते हैं. राज्य के पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां की पत्नी अंजना भुइयां भी बसपा का टिकट लेकर मैदान में है. हालांकि, वह त्रिकोणीय मुकाबला बनाती नहीं दिख रही हैं.
भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ब्रांड बना कर चुनाव लड़ रही है़ राजद स्थानीय और बाहरी को मुद्दा बना रहा है़ पानी, पलायन और रोजगार से संबंधित समस्याओं से जूझने की बात भी करते हैं. लेकिन, फिर भी चुनाव में इन बातों को मुद्दा मानने से इनकार करते हैं.
लोग राष्ट्र के लिए मोदी फैक्टर को इकलौता मुद्दा बताते हैं. दूसरी ओर, राजद चुनाव को बेटा और पाहुन (दामाद) की लड़ाई बता रहा है़ राजद की प्रचार गाड़ियों में घूरन को पलामू की शान और अन्य को मेहमान बताया रहा है. पलामू में जातीय समीकरण की भी गोलबंदी नजर आ रही है़ अगड़ी-पिछड़ी जातियों की गोलबंदी हो रही है. अगड़ी जातियां मूड बना चुकी हैं. वहीं, पिछड़ी जातियों में समीकरण बैठाने का खेल चल रहा है़ मोदी के नाम पर माहौल बनाया जा रहा है.
ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है. सुदूर गांवों में भी गैस का कनेक्शन पहुंच रहा है. लेकिन, क्षेत्र में रोजगार की उपलब्धता बड़ी समस्या है. गांवों से युवाओं का पलायन थम नहीं रहा है़ बावजूद इसके नक्सल की समस्या चुनाव में सिर उठाती नजर नहीं आती है. गांवों में पुलिस पिकेट दिखायी दे रहे हैं. चौक, चौराहों और बाजार में लोग चुनाव के मुद्दे पर खुल कर बात कर रहे हैं.
डालटेनगंज : पानी की समस्या के कारण शहर से गांव जाने को मजबूर हैं लोग
कुल मतदाता 3,29,271
विधायक : आलोक चौरसिया, भाजपा
डालटेनगंज विधानसभा में शहरी क्षेत्र ज्यादा है. लोगों की सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी है. गरमी में सबसे ज्यादा पानी की किल्लत झेलनी पड़ती है. समस्या इतनी विकराल है कि लोग शहर छोड़ कर गांव चले जाते हैं.
यहां पिछले 14 सालों से शहरी जलापूर्ति फेज टू की योजना लंबित है़ लोगों को पानी के लिए काफी परेशानी होती है. इसके अलावा खासमहाल भूमि की बरसों से लंबित लीज का मामला अटका पड़ा है. स्थानीय निवासी उमेश रजवार इन मुद्दों की चर्चा करते हैं. लेकिन, वोट देने के लिए वह इन मुद्दों को नाकाफी बताते हैं.
विश्रामपुर : 15 साल पहले बनी थी ग्रामीण सड़कें, अब मरम्मत की बाट जोह रहीं
कुल मतदाता : 2,96,572
विधायक : रामचंद्र चंद्रवंशी, भाजपा
विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र की ग्रामीण सड़कें बदहाल हैं. लोगों को आवागमन में काफी परेशानी होती है. पानी की दिक्कत भी आम है.
राजहरवा निवासी शिवशंकर पांडेय बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में राजहरवा से चेचनवा तक पांच किमी की सड़क का निर्णाण हुआ था़ उसके बाद से इस सड़क की मरम्मत नहीं हुई है. यही हाल क्षेत्र की ज्यादातर ग्रामीण सड़कों का है. लोग पानी की समस्या से भी त्रस्त हैं. जानवरों को पानी पिलाने के लिए भी पांच किमी का सफर तय करना पड़ता है. लेकिन साथ ही वह जोड़ते हैं : देश के लिए मोदी जरूरी है, बाकी सब मजबूरी है.
छतरपुर : खेतों में मजदूरों के लिए कोई काम नहीं, सरकारी राशन से भरता है पेट
कुल मतदाता : 2,55,110
विधायक : राधाकृष्ण किशोर, भाजपा
छतरपुर विधानसभा क्षेत्र में पानी और पलायन की समस्या काफी बड़ी है. रूदवा के रामेश्वर प्रसाद कहते हैं कि पानी लाने के लिए कोसों चलना पड़ता है. बोरिंग कराने पर 300 फीट से कम में पानी नहीं निकलता है. सिंचाई के बिना खेती नहीं होती है. सरकार राशन देती है.
थोड़ी-बहुत सब्जी की खेती हम खुद कर लेते हैं. इससे किसी तरह गुजारा चल रहा है. यहां रोजगार नहीं मिलता. बच्चे काम करने बाहर चले जाते हैं. वोट देने के सवाल पर वह कहते हैं कि मतदान जरूर करेंगे. किसको यह नहीं बता सकते. स्थानीय मुद्दों पर वोट करेंगे क्या? वह साफ कहते हैं : वोट तो देशहित में ही देंगे.
हुसैनाबाद : घर-शौचालय मिला, रोजगार नहीं, मजदूरी कर पालते हैं परिवार का पेट
कुल मतदाता : 2,66,229
विधायक : कुशवाहा शिवपूजन मेहता, बसपा
हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बड़ी समस्या है. ज्यादातर लोग मजदूरी कर भरण-पोषण करते हैं. रहपुरा निवासी सुशीला देवी और देवंती देवी दीपू कुमार सिंह के खेत में मजदूरी कर परिवार का पेट पालती हैं.
वह बताती हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ उनके गांव में लोगों को मिल रहा है. कई लोगों को घर मिला है. जिनके घर हैं, उनको शौचालय भी मिल रहा है. लेकिन, सालों से चली आ रही पानी और रोजगार की समस्या का कोई समाधान नहीं निकल रहा है. इस बार इन मुद्दों के आधार पर वोट देंगी? उनका जवाब था : अभी सोचे नहीं हैं. देखेंगे.
गढ़वा : योजना का लाभ मिला, पर बिजली की आंख-मिचौनी से परेशान हैं लोग
कुल मतदाता : 3,44,777
विधायक : सत्येंद्र नाथ तिवारी, भाजपा
गढ़वा विधानसभा में बिजली-पानी की समस्या से लोगों को निजात नहीं मिल रहा है. गरमी के दिनों में भी सात से आठ घंटों तक लोड शेडिंग की जाती है.
बिजली नहीं रहने की वजह से पानी भी नहीं मिल पाता है. हुद्दी के हशीब अंसारी कहते हैं कि पिछले पांच साल में क्षेत्र के विकास के लिए कोई काम नहीं हुआ है. हालांकि, केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ लोगों को जरूर मिला है. लेकिन, वह काफी नहीं है. इस बार चुनाव में स्थानीय मुद्दों को ही आधार बना कर वोट किया जायेगा. मेरा वोट स्थानीय प्रत्याशी के साथ ही जायेगा.
भवनाथपुर : गांवों में महुआ चुन कर चल रहा है जीवन, पलायन कर रहे हैं लोग
कुल मतदाता : 3,58,516
विधायक : भानु प्रताप शाही, नर्दिलीय
भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र के अधिकतर ग्रामीण इलाकों के लोग महुआ चुन कर जीवन यापन कर रहे हैं. दहेड़िया गांव के समीप स्थित सेल का खदान बंद होने की वजह से लोगों के पास उपलब्ध रोजगार का इकलौता जरिया छीन गया है. आसपास के गांवों के लोग बेकार बैठे हैं.
प्रताप सिंह खेरवार कहते हैं कि खदान बंद होने के बाद काम नहीं है. सुबह महुआ चुनते हैं. उसे सूखा कर बाजार में बेचने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है. 10 बीघा जमीन होने के बाद भी सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण खेती भी नहीं होती. रोजगार की तलाश में मेरा बेटा दिल्ली और भतीजा गुजरात चला गया है.

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