28.1 C
Ranchi
Thursday, March 28, 2024

BREAKING NEWS

Trending Tags:

नुकसानदेह है अमेरिका-ईरान संघर्ष

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया delhi@prabhatkhabar.in पिछले सप्ताह अमेरिका ने ईरान पर हमले की घोषणा की और फिर उसे वापस ले लिया. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि जब मुझे यह बताया गया कि इन हमलों के नतीजे में लगभग 150 ईरानियों की मृत्यु हो सकती है, तो मैंने ये हमले स्थगित […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
delhi@prabhatkhabar.in
पिछले सप्ताह अमेरिका ने ईरान पर हमले की घोषणा की और फिर उसे वापस ले लिया. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि जब मुझे यह बताया गया कि इन हमलों के नतीजे में लगभग 150 ईरानियों की मृत्यु हो सकती है, तो मैंने ये हमले स्थगित कर दिये. उन्होंने इन हमलों के आदेश इसलिए दिये थे कि ईरान ने अपनी सीमा के निकट एक अमेरिकी सैन्य ड्रोन मार गिराया था.
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन जैसे अपने प्रशासन के कुछ अधिक उग्र सदस्यों के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ईरान के साथ युद्ध के लिए उतावले-से रहे हैं. इस अमेरिकी रुख की वजह से पिछले सप्ताह कच्चे तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत तक की वृद्धि भी हो गयी, जिसने भारत और उस जैसे वैसे राष्ट्रों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं. प्रश्न यह है कि अमेरिका क्यों ईरान के साथ युद्ध के लिए उत्सुक है? इसका उत्तर पाना अथवा समझना आसान नहीं है.
सभ्यताओं के संदर्भ में देखा जाये, तो ईरान पश्चिम का सबसे पुराना शत्रु रहा है. स्वयं यूनानियों के ही अनुसार, लगभग 2400 वर्ष पूर्व, पहले डेरिअस और फिर जेरजेस के नेतृत्व में ईरानी सेना ने यूनान पर हमला कर एथेंस को नष्ट कर दिया था. हेरोडोटस द्वारा लिखित इतिहास में इसका वर्णन है कि ईरानी सेना में बड़ी संख्या में भाड़े के भारतीय सैनिक शामिल थे.
प्राचीन कालीन इतिहास में अपने ऊपर ईरानी सम्राटों के प्रभाव के कारण यूनानी उनका जिक्र ‘महाराजा’ के नाम से करते रहे. सिकंदर या अलेक्जेंडर के नाम के साथ महान की उपाधि उसके द्वारा मिस्र, ईरान, अफगानिस्तान और पंजाब की विजय की वजह से नहीं लगी थी, बल्कि वह इसलिए थी कि उसने स्वयं डेरियस तृतीय महान से इसे हासिल किया था.
पंजाब से लेकर ईरान समेत तुर्की तक के सबसे बड़े हिस्से पर सेल्यूकस नाइकेटर (नाइकेटर का अर्थ विजेता है और जूतों का ब्रांड नाइकी भी इसी शब्द से संबद्ध है) शासन करने लगा. ईरानियों ने पार्थिया के शासक आर्ससीज के नेतृत्व में अपने देश को आजाद करा लिया, जो वर्तमान भारतीय पारसियों के ही धर्मावलंबी थे.
तीन शताब्दियों तक पार्थियन शासक पश्चिम की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति रोम से युद्ध करते रहे. ईरानी विजेताओं का अगला वर्ग सेसानियों का था, जो सातवीं सदी में अरबों द्वारा ईरान की विजय तक ईरान पर शासन करते रहे. लगभग चार सौ वर्ष पूर्व ईरान सफाविदों के अंतर्गत शिया बन गया. भारत के लिए सबसे मशहूर ईरानी शासक नादिर शाह खुद सुन्नी था, जिसने मुगल साम्राज्य को समाप्त कर दिया.
आधुनिक काल में ईरानी सियासत में अमेरिका हस्तक्षेप करता रहा है. वर्ष 1953 में ईरान के निर्वाचित प्रधानमंत्री मुहम्मद मोसादिक को अमेरिकी खुफिया संगठन ‘सीआइए’ द्वारा निर्देशित तख्तापलट में हटा दिया गया, क्योंकि उन्होंने तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. अमेरिका ने ईरान-इराक युद्ध को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करते हुए इराकी नेता सद्दाम हुसैन का समर्थन किया. बाद में, सद्दाम से उसके संबंधों में खटास आ गयी.
वर्ष 1979 में, अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के समय तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर ईरानी क्रांतिकारियों ने कब्जा कर लिया और उन्होंने कई सप्ताहों तक दूतावास के कर्मियों को बंधक बनाये रखा. इसके बाद से अमेरिका ने ईरान के साथ कूटनीतिक संबंध बहाल नहीं किये. अमेरिका में रह रहे ईरानी नागरिकों के मामले पाकिस्तानी दूतावास द्वारा देखे जाते हैं.
ईरान ने अपने परमाण्विक कार्यक्रमों को लेकर ओबामा प्रशासन के साथ एक समझौता संपन्न किया था और उम्मीदें जगी थी कि अंततः ये दोनों देश मित्र बन जायेंगे. किंतु ट्रंप के मनमाने नेतृत्व में ये उम्मीदें परवान नहीं चढ़ सकीं.ईरान का राष्ट्रीय धर्म शिया इस्लाम है. शियावाद अपनी प्रकृति से ही निवृत्तिवादी है.
उनका यकीन है कि 12वें इमाम मुहम्मद अल महदी, जो वर्ष 869 में पैदा हुए थे, मृत नहीं हैं, बल्कि उन्हें ईश्वर ने छिपा लिया है और एक खास वक्त वे पुनः प्रकट होंगे. वे उनकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं. वर्तमान में जितने पाकिस्तानी अथवा कश्मीरी समूह भारत या भारतीय सेना के विरोध में खड़े हैं, उनमें से कोई भी शिया नहीं है. आज जिसे जिहादी आतंकवाद कहा जाता है, उसमें शियावाद का कोई भी अवयव शामिल नहीं है.
फिर भी, ईरान सुन्नी समूहों समेत विभिन्न फिलिस्तीनी समूहों का समर्थक रहा है, जो सब इस्राइल का विरोध कर रहे हैं. ईरानियों का अमेरिका से कोई झगड़ा नहीं है, उसके साथ उनकी कोई सीमारेखा नहीं मिलती और अमेरिका के लिए उनसे नफरत की इसके सिवाय कोई और वजह नहीं है कि इस्राइल चाहता है कि अमेरिका ईरान के साथ कड़ा रुख अपनाये, क्योंकि वह इस्राइली कब्जे से फिलीस्तीन की आजादी का समर्थन करता है.
शिया कुछ और भी समूहों में विभाजित हैं, पर उनमें सबसे बड़ा ट्वेल्वर शिया या इमामिया शिया है, जिनके इमाम क्रमशः ईरान और इराक के गोम तथा करबला शहरों में रहते हैं. भारत का ईरान के साथ सभ्यतामूलक संबंध है.
ईरान भारत की वर्तमान सरकार के मुस्लिम विरोधी रुख के बावजूद भारत का मित्र रहा है. यों तो वैश्विक स्तर पर भारत एक द्वितीय श्रेणी का देश ही ठहरता है, पर हमें अपनी शक्तिभर यह कोशिश करनी चाहिए कि अमेरिका और ईरान के रूप में हमारे दो मित्र देश आपस में एक अर्थहीन एवं अंततः भारत समेत सबके लिए हानिकारक संघर्ष की विभीषिका में न पड़ें.
(अनुवाद: विजय नंदन)
You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

अन्य खबरें