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हर कदम आगे बढ़ता इसरो

डॉ गौहर रजा सेवानिवृत्त वैज्ञानिक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट स्टडीज delhi@prabhatkhabar.in भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने फिर एक उपलब्धि हासिल कर ली. कल सुबह उसने कार्टोसैट-3 नामक सैटेलाइट (उपग्रह) को लांच कर दिया. इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्चपैड-2 से कार्टोसैट-3 सैटेलाइट को पीएसएलवी-सी47 रॉकेट से लांच […]

डॉ गौहर रजा
सेवानिवृत्त वैज्ञानिक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट स्टडीज
delhi@prabhatkhabar.in
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने फिर एक उपलब्धि हासिल कर ली. कल सुबह उसने कार्टोसैट-3 नामक सैटेलाइट (उपग्रह) को लांच कर दिया. इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्चपैड-2 से कार्टोसैट-3 सैटेलाइट को पीएसएलवी-सी47 रॉकेट से लांच किया. गौरतलब है कि कार्टोसैट सीरीज का यह नौवां सैटेलाइट है. निश्चित रूप से यह एक बड़ी उपलब्धि है, और इसके लिए इसरो के तमाम वैज्ञानिकों को तहे दिल से सलाम है.
अंतरिक्ष के लिए हर एक उड़ान, चाहे वह किसी उपग्रह का प्रक्षेपण हो, मंगलयान या चंद्रयान मिशन हो, या फिर छोटा-बड़ा कोई भी मिशन हो, यह बहुत मुश्किल भरा टास्क होता है, बड़ी चुनौती होती है, जिसके लिए बहुत ज्यादा जिम्मेदारी, समझदारी, धैर्य, सूझ-बूझ और मानसिक क्षमता की जरूरत होती है. खुशी की बात यह है कि इसरो इन सभी बातों पर खरा उतरकर ही कामयाबी की राह बनाता है. इसलिए इसरो की यह कामयाबी एक बड़ी कामयाबी मानी जायेगी. इस कामयाबी से निश्चित रूप से इसरो यह साबित करता है कि वह अब अगला कदम बढ़ाने के लिए तैयार है.
कार्टोसैट-3 धरती के ऊपर नजर रखनेवाला सैटेलाइट है. इसलिए यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसे जितने भी उपग्रह भारत ने अंतरिक्ष में भेजे हैं, वे सब हमारे देश के लिए आंखें बन गये हैं. कार्टोसैट-3 एक भारी सैटेलाइट है. दरअसल, ऐसे सैटेलाइट को पांच-छह साल तक लगातार चलने के लिए भारी तकनीक की जरूरत पड़ती है.
और इतने भारी सैटेलाइट को ले जाना बहुत ही मुश्किल काम होता है. कार्टोसैट-3 करीब पंद्रह सौ किलो से भी ज्यादा भारी है. इसलिए इसरो की यह कामयाबी बहुत बड़ी है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अब हमने उस तकनीक को मास्टर कर दिया है, जिसके तहत हम कई सैटेलाइट्स को एक साथ उनके अलग-अलग ऑर्बिट में भेज सकते हैं. सैटेलाइट अपने सही ऑर्बिट में पहुंचें, यह एक चैलेंज है. वैज्ञानिकों के लिए यह बड़ी चुनौती होती है कि सैटेलाइट कहीं इधर-उधर न भटक जायें. हर भारतीय को इस बात पर फख्र होना चाहिए कि इसरो ने यह उपलब्धि भी हासिल कर ली है.
कार्टोसैट-3 के साथ बहुत सारी नयी तकनीक को शामिल किया गया है. और सबसे बड़ी बात है कि इसके पास जो कैमरा है, वह बहुत ही हाई रेजोल्यूशन का है. दुनिया के बाकी जिन देशों ने ऐसे उपग्रह भेजे हैं, उनसे कहीं ज्यादा हाई रेजोल्यूशन वाला कैमरा कार्टोसैट-3 में लगा हुआ है.
दरअसल, यह कैमरा कोई आम कैमरे की तरह नहीं होता, जो हमारे हाथ में होता है, जिससे हम तस्वीरें उतारते हैं. कार्टोसैट-3 का कैमरा बहुत ही खास तरह की तकनीक से बना हुआ है, जो अंतरिक्ष से धरती की सतह पर बहुत बारीकी से नजर रखते हुए यहां की छोटी से छोटी चीज की तस्वीर भी वह उतार सकता है और फिर उसे अपने सिस्टम में भेज भी सकता है.
उन तस्वीरों से हमें बहुत सी चीजों के बारे में पता लगाने लें आसानी हो जायेगी. इससे जो डेटा इकट्ठा होगा, वह सब हमारे शोध में काम आयेंगे. धरती के ऊपर जो कुछ बदलाव होंगे, उन सबकी जानकारी हमें मिलती रहेगी, मसलन कि कहां कैसी मिट्टी है, कहां भूकंप की संभावना है या कहां किस तरह की जलवायु है, कहां सैलाब की संभावना है, ये सब जानकारियां हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं. कार्टोसैट-3 द्वारा खींची गयी तस्वीरों का हम ऑनलाइन मॉनीटर कर सकते हैं और उनका इस्तेमाल कर हम बड़ी आपदाओं से मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर सकते हैं.
कार्टोसैट-3 से भेजे गये डेटा के आधार पर हमारे वैज्ञानिक पर्यावरण और सुरक्षा के मद्देनजर महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर सकते हैं, जो देशहित के लिए बहुत जरूरी होंगी.
पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी तथ्यों का आकलन आज भी एक मुश्किल काम है. साथ ही, आम आदमी की सुरक्षा का सवाल भी बार-बार उठता रहा है. मगर कार्टोसैट-3 के जरिये अब हम इन सब मुश्किलों का हल निकाल सकते हैं. कार्टोसैट-3 के ताकतवर कैमरे से सीमा पर होनेवाली तमाम छोटी-बड़ी गतिविधियों की जानकारी लेकर अवांछित कृत्यों को होने से पहले ही रोका जा सकता है. यह सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होनेवाला है, इसमें कोई दो राय नहीं है.
अब तक हमारी सेना को तकनीकी रूप से जानकारियां लेने के लिए दूसरे सैटेलाइट पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब हम कार्टोसैट-3 के जरिये अपनी सेना को उच्च तकनीक का एक और हथियार मिल जायेगा, जिससे हमारी सेना के पास अब अपना खुद का डिफेंस सिस्टम होगा. इस तकनीक के इस्तेमाल के जरिये अब अपने दुश्मनों पर हम पैनी नजर रख सकेंगे. इस कदम से हमारी सेना और भी ताकतवर हो जायेगी, जिसकी अरसे से जरूरत महसूस की जाती रही है.
तकनीकी रूप से अब हमारा देश बहुत ही ताकतवर होता जा रहा है, इसमें इसरो का बहुत बड़ा योगदान है और उसकी एक से बढ़कर एक बड़ी उपलब्धियों की महती भूमिका है. अभी तो कार्टोसैट-3 लांच हुआ है, जैसे ही यह अपनी कक्षा में पहुंचकर काम करना शुरू करेगा, वैसे ही इसकी और ज्यादा शक्तियों का भी पता चल जायेगा. इसरो और देश को बहुत बधाइयां.

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