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राज्य नेतृत्व की अहम भूमिका

संजय कुमार राजनीतिक विश्लेषक पांच राज्यों के चुनाव में तीन बड़े राज्यों के नतीजे बहुत महत्वपूर्ण रहे. मिजोरम और तेलंगाना के नतीजे एकतरफा ही रहे. वहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया है और भाजपा के गढ़ को लगभग तोड़ ही दिया है. इन तीनों राज्यों में अलग-अलग तरह से […]

संजय कुमार
राजनीतिक विश्लेषक
पांच राज्यों के चुनाव में तीन बड़े राज्यों के नतीजे बहुत महत्वपूर्ण रहे. मिजोरम और तेलंगाना के नतीजे एकतरफा ही रहे. वहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया है और भाजपा के गढ़ को लगभग तोड़ ही दिया है. इन तीनों राज्यों में अलग-अलग तरह से भाजपा के प्रति असंतोष दिखने लगा था. राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ तो असंतोष साफ दिखता था.
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को लेकर ऊपरी तौर पर तो असंतोष नहीं दिखता था, लेकिन अंदर खाने लोग नाराज थे. जिस तरह से कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में वापसी की है, अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया है, इससे संकेत मिलता है कि जरूरत मध्य प्रदेश की जनता में कुछ न कुछ नाराजगी रही होगी. यह नाराजगी युवाओं और किसानों में थी. यही हाल कुछ छत्तीसगढ़ का भी रहा है.
यह नाराजगी सिर्फ राज्यों की सरकारों से नहीं थी, बल्कि केंद्र सरकार से भी युवाओं और किसानों में नाराजगी थी. इस तरह की स्थिति हमारे सर्वेक्षण के आंकड़ों में भी दिखायी पड़ते हैं कि देशभर में युवा और किसान बहुत परेशान हैं. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी शानदार प्रदर्शन किया. इस तरह से भाजपा को बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है. इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने बेरोजगारी के मुद्दे को अच्छे से उठाया, जिसका नतीजा यह हुआ कि युवाओं को कांग्रेस पर भरोसा होने लगा. परिणाम हमारे सामने है.
भारतीय राजनीति में यह परिपाटी रही है कि जब पार्टियां चुनाव जीतती हैं, तो उसका श्रेय अक्सर पार्टी नेतृत्व को ही दिया जाता है. एक तरह से यह एक राजनीतिक प्रचलन की तरह है. जाहिर है, पार्टी तो निश्चित रूप से पार्टी अध्यक्ष को जीत का श्रेय देगी, क्योंकि वही दल का कप्तान होता है.
लेकिन, राज्यों के चुनाव में जिस तरह से चुनाव प्रचार हुआ, और कांग्रेस के राज्य-नेतृत्व ने जिस तरह से वोटरों को अपनी ओर खींचा, उससे असल श्रेय राज्य के नेतृत्व को ही देना चाहिए. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ने जी-जान लगाकर प्रचार किया, इसी का परिणाम है कि कांग्रेस वहां अच्छा प्रदर्शन कर पायी.
राजस्थान में चुनाव के दौरान सचिन पायलट और अशोक गहलोत ने बेहतरीन तालमेल बनाकर काम किया, लेकिन पिछले चार साल से सचिन पायलट ने जो वहां निरंतर प्रचार किया और सरकार की नीतियों काे लेकर जनता को जागरूक करते रहे, उससे वहां कांग्रेस के हाथ मजबूत हुए. बेहतरीन प्रचार के जरिये ही कांग्रेस इन राज्यों में शानदार प्रदर्शन कर पायी. छत्तीसगढ़ में भले ही कांग्रेस का कोई बड़ा नेतृत्व दिखायी नहीं दिया, क्योंकि जो नेतृत्व था, (अजीत जोगी) उसने अलग पार्टी बना ली, इसके बावजूद राज्य के नेतृत्व ने वहां शानदार प्रदर्शन किया. नतीजे यह साफ बताते हैं कि इन राज्यों में कांग्रेस के राज्य नेतृत्व ने बहुत सूझबूझ से राजनीतिक रणनीति बनाकर काम किया है, इसलिए जीत का श्रेय राज्य नेतृत्व को ही देना चाहिए.
इन चुनावों में भी मोदी लहर की बात की गयी, हालांकि वह कुछ कम थी.अब मोदी लहर जैसी कोई चीज दिखायी भले न पड़ रही हो, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता खत्म हो गयी है. आज भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता किसी भी दूसरी पार्टी के शीर्ष नेता से कहीं ज्यादा है. लेकिन हां, इस बात से भी इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि मोदी की लोकप्रियता जो आज से तीन साल पहले थी, उसमें जरूर कुछ गिरावट आयी है.
और मोदी की लोकप्रियता में लगातार धीरे-धीरे गिरावट आती जा रही है. यही वजह है कि मतदाताओं में उनकी अपील जितनी पहले थी, अब उतनी अपील नहीं है और कम से कम इन चुनावों में तो कहीं यह देखने को नहीं मिला है. जो लोग मोदी की लहर की बात कर रहे हैं, मैं यह नहीं कहता कि वह बिल्कुल खत्म हो गयी है, लेकिन हां यह जरूर कहना चाहिए कि अब वह लहर इतना प्रभावी नहीं रह गयी है, जितना तीन-चार साल पहले हुआ करता था.
जब चुनाव चल रहे थे, तब बार-बार मीडिया में इस बात का जिक्र हो रहा था कि यह सेमी फाइनल है और फाइनल 2019 में होगा. इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि यह सेमी फाइनल बहुत ही रोचक रहा और कांटे का मुकाबला रहा, बिल्कुल टी-ट्वेंटी मैच जैसे लड़ा गया. इस मैच में कांग्रेस ने अपने शानदार प्रदर्शन से बढ़त हासिल की. फिर भी, इस एतबार पर हम यह नहीं कह सकते कि फाइनल मैच यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का ऐसा ही प्रदर्शन जारी रहेगा.
लेकिन, मौजूदा नतीजे एक बात स्पष्ट बताते हैं कि इन नतीजों के पहले ऐसा लगता था कि एक टीम बहुत मजबूत होगी और दूसरी टीम फिसड्डी होगी. यानी भाजपा की टीम ज्यादा दमदार होगी, ऐसा लगता था. लेकिन इन नतीजों ने यह साबित किया है कि भाजपा के खिलाफ अब जो टीम खेलेगी, उसके मजबूती से उभरने की उम्मीद है, टीम के एकजुट होने की गुंजाइश है, विपक्षी पार्टियों के गठबंधन बनाने में क्षेत्रीय पार्टियों का जो संकोच था वह अब दूर होगा.
और आखिरी बड़ी यह कि गठबंधन की इस टीम का कप्तान कौन होगा, इसे लेकर भी रास्ता साफ हो जायेगा. क्योंकि तब कहीं न कहीं क्षेत्रीय पार्टियों को यह बात माननी होगी कि जब भी गठबंधन वाली टीम के कप्तान का मामला आयेगा, तो उस कप्तान की बागडोर बड़ी विपक्षी पार्टी यानी कांग्रेस के हाथ में ही देनी चाहिए. तभी संभव है कि अगले आम चुनाव में दोनों तरफ दो दमदार टीम मौजूद होंगी और चुनावी मैच रोमांचक हो जायेगा.

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