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आये कांग्रेस के अच्छे दिन, जानें 5 वजह भाजपा की हार की

लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस के अच्छे दिन आये हैं. पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम ने हिंदी पट्टी में उसकी वापसी करायी है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता में कांग्रेस लौट रही है. वहीं, मध्य प्रदेश में आखिरी समय तक सस्पेंस बरकरार रहा. देर रात कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. […]

लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस के अच्छे दिन आये हैं. पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम ने हिंदी पट्टी में उसकी वापसी करायी है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता में कांग्रेस लौट रही है. वहीं, मध्य प्रदेश में आखिरी समय तक सस्पेंस बरकरार रहा. देर रात कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. राजस्थान ने अपने तीन दशक पुराने स्वभाव के मुताबिक एक बार फिर सत्ता परिवर्तन का जनादेश कांग्रेस के पक्ष में दिया है.

हालांकि मिजोरम इस बार कांग्रेस के हाथ से निकल गया और फिलवक्त तीन राज्यों में ही उसकी सरकारें रह गयी हैं, मगर बड़े राज्यों में नयी चुनावी जीत के आगे उसका यह नुकसान बहुत बड़ा नहीं माना जा रहा है. 2014 में केंद्र में नरेंद्र माेदी के सत्ता संभालने के बाद से कांग्रेस को एक-एक कर कई सूबों से बेदखल होना पड़ा था और ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत की तस्वीर उकेरी जाने लगी थी, लेकिन ताजा चुनाव नतीजों ने उसे फिर से सत्ता की मुख्यधारा में ला दिया. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने गये इन चुनावों के परिणामों को काफी अहम माना जा रहा है.

ये हैं मुख्यमंत्री की दौड़ में

मध्य प्रदेश

कमलनाथ

ज्योतिरादित्य

राजस्थान

अशोक गहलोत

सचिन पायलट

एमपी में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सीएम पद को लेकर खींचतान है. दोनों ही राहुल गांधी के करीबी हैं व पार्टी की जीत में बराबर के भागीदार.

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की जोड़ी ने कुशलता से काम किया और वनवास काट रही कांग्रेस को राज्याभिषेक की ओर लाया. दोनों सीएम पद के प्रबल दावेदार हैं.

संयोग

राहुल गांधी के लिए लोकसभा चुनावों से पहले मिली यह बड़ी जीत है. यह संयोग ही है कि राहुल के कांग्रेस की कमान संभालने के ठीक एक साल बाद पार्टी को यह जीत मिली है. राहुल पिछले साल 11 दिसंबर को ही पार्टी के अध्यक्ष बने थे.

छत्तीसगढ़

रमन सिंह के नेतृत्व में पिछले 15 साल से चला आ रहा भाजपा का शासन खत्म हो गया है. कांग्रेस का वनवास समाप्त हुआ.

राजस्थान

यहां हर पांच साल में सरकार बदलने का तीन दशक का ट्रेंड इस बार भी जारी रहा. कांग्रेस ने वापसी की.

मध्य प्रदेश

यहां 15 सालों से भाजपा का शासन था. 2003 में उमा भारती से शुरू हुआ भाजपा के मुख्यमंत्रित्व का दौर खत्म हुआ.

तेलंगाना में एक बार फिर टीआरएस ने वापसी की है. इस राज्य के निर्माण में इस पार्टी के योगदान को यह पुरस्कार है.

मिजोरम

यह पूर्वोत्तर का एक मात्र राज्य था, जहां कांग्रेस का शासन था. इस सीट को खोने के बाद कांग्रेस इस क्षेत्र से साफ हो गयी.

छत्तीसगढ़

मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष टीएस सिंहदेव के नाम आगे चल रहे हैंे. बघेल ओबीसी के बड़े लीडर हैं. दोनों राहुल गांधी के करीबी हैं.

5 वजहें भाजपा की हार की

टिकट वितरण और बगावत: मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने जमीनी नेताओं और जीत का माद्दा रखने वाले नेताओं की अनदेखी की.

एंटी इनकमबेंसी : छत्तीसगढ़ व मप्र में लगातार 15 सालों तक सत्ता में रहने के कारण भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला.

उम्मीदवार चयन में गड़बड़ी: उम्मीदवारों के चयन में भाजपा से चूक हुई. वहीं, कांग्रेस ने अपनी पिछली गलतियों से सीख ली और उसे नहीं दोहराया.

कार्यकर्ताओं की अनदेखी : भाजपा कैडर बेस्ड पार्टी है, मगर इस बार के चुनाव में संगठन का यह तबका लगभग उपेक्षित रहा. बूथों पर ही सक्रियता कम रही.

किसानों की नाराजगी : किसानों की समस्याओं को हल करने और उनकी नाराजगी दूर करने में सरकार विफल रही. इसके विपरीत किसानों की कर्ज-माफी का वादा कर कांग्रेस ने उन्हें अपने पक्ष में करने में बड़ी कामयाबी हासिल की.

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