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जानें बिहार के नालंदा जिला के रहने वाली सुधा की कहानी, कैसे ”जीविका” ने भर दी इनके जिंदगी में मिठास

रचना प्रियदर्शिनी बिहार के नालंदा जिले के रहुई प्रखंड के सुरामनबीघा गांव की रहनेवाली सुधा देवी पढ़ना-लिखना नहीं जानतीं. बस अपना नाम लिख कर हस्ताक्षर कर लेती हैं, लेकिन उनकी यह कमी उनके आगे बढ़ने में बाधा नहीं बन सकी. करीब सात साल पहले यानी वर्ष 2011 में उनके गांव में बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन […]

रचना प्रियदर्शिनी
बिहार के नालंदा जिले के रहुई प्रखंड के सुरामनबीघा गांव की रहनेवाली सुधा देवी पढ़ना-लिखना नहीं जानतीं. बस अपना नाम लिख कर हस्ताक्षर कर लेती हैं, लेकिन उनकी यह कमी उनके आगे बढ़ने में बाधा नहीं बन सकी.
करीब सात साल पहले यानी वर्ष 2011 में उनके गांव में बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति द्वारा संचालित ”जीविका” परियोजना के कुछ प्रतिनिधि आये. उनलोगों ने गांववालों के साथ मिल कर एक बैठक की और उन्हें आत्मनिर्भरता के विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी दी. इसमें सुधा भी शामिल थीं.
10 महिलाओं के साथ से हुई शुरुआत
‘जीविका’ से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सुधा ने अपने आस-पड़ोस की 10 महिलाओं के साथ मिल कर ‘जय माता दी जीविका स्वयं सहायता समूह’ नामक एक स्थानीय समूह रजिस्टर्ड करवाया. वर्तमान में सुधा इस समूह की कोषाध्यक्ष हैं. समूह के गठन के पश्चात इसमें शामिल हर महिला ने सप्ताह में पांच से लेकर दस रुपये तक की पूंजी जमा की.
करीब छह महीनों बाद इसके आधार पर उन्हें बैंक से एक लाख रुपये का लोन मिल गया. इन्हीं पैसों से उन महिलाओं ने अपना रोजगार शुरू किया. फिर उस लोन को समय से चुकाने पर उन्हें पुन: दो लाख रुपये का लोन मिल गया. वर्तमान में इस समूह में महिलाओं की संख्या 10 से बढ़ कर 20 हो गयी है. समूह की सारी महिलाएं मिल कर मिठाई, नमकीन, सत्तू, बेसन, बड़ियां आदि बनाने का काम करती हैं.
सरकारी कार्यालयों के कैंटीन में होती है सप्लाइ
सुधा और उनके समूह की अन्य महिलाओं द्वारा बनाये गये सामानों की सप्लाइ नालंदा से लेकर पटना तक के विभिन्न सरकारी कार्यालयों के कैंटीन में होती है.
फिलहाल उनके बनाये प्रॉडक्ट्स का स्वाद आपको पटना विद्युत भवन, नालंदा जिला पंजीयन एवं परामर्श केंद, नालंदा समाहरणालय तथा बिहारशरीफ अनुमंडल कार्यालय के कैंटीन में चखने को मिल जायेगा. सुधा बताती हैं कि- ”पहले हम अपने सामान को लोकल दुकानदारों को भी बेचते थे, लेकिन अब सारे सामानों की आपूर्ति इन कार्यालयों में ही हो जाती है. अतिरिक्त कुछ बच ही नहीं पाता. वैसे भी हम मार्केट से कम रेट पर अपना सामान बेचते हैं और इसकी क्वालिटी भी अच्छी होती है. इस वजह से ऑडर मिलने में दिक्कत नहीं आती. अब तक जो भी ऑर्डर मिला है, वह ‘जीविका’ के सहयोग से ही मिला है.”
बेहतर काम के लिए मिला किसान सम्मान
सुधा बताती हैं- ”इस व्यवसाय की कुल कमाई में से 1% लाभांश हमें ग्राम संगठन को, 5% ग्राम अधिकारी को और 300 रुपये का अंशदान अन्य संबंधित संस्था को देना होता है. बाकी बचे पैसों में से हर महिला को हर महीने तीन से चार हजार रुपयों का शुद्ध मुनाफा होता है.”
सुधा अब तक राजगीर महोत्सव, पटना सरस मेला और केरल महोत्सव में लोगों को अपने बनाये लड्डू, पेड़े और नमकीन का स्वाद चखा चुकी हैं. पटना और राजगीर मेले में उन्हें क्रमश : 2015-16 में ‘किसान सम्मान’ भी मिल चुका है.
जानें क्या है ‘जीविका’ : वर्ष 2007 में विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से बिहार रूरल लाइवलिहुड प्रोजेक्ट यानी ‘जीविका’ शुरू किया गया. इसका उद्देश्य ग्रामीण समुदाय खासकर गरीब तबके के लोगों को उनके जीविकोपार्जन के लिए समुचित अवसर उपलब्ध कराना है.
इसके अंतर्गत बिहार के 38 जिलों के कुल 534 प्रखंडों में विभिन्न चरणों में संचालित किया जाना है. 10 साल की अवधि के दौरान राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत 1.25 करोड़ लक्षित ग्रामीण परिवारों को लगभग 10 लाख स्वयं सहायता समूहों, 65000 ग्राम संगठनों एवं 1600 संकुल स्तरीय महासंघों में संगठित किये जाने का लक्ष्य है.

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