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पीएचसी में मेडिकल कचरा बना मुसीबत अस्पताल में नष्ट करने की नहीं है व्यवस्था

चौसा : एक तरफ सरकार स्वच्छ व सुंदर वातावरण बनाने को लेकर स्वच्छ भारत अभियान के तहत साफ सफाई पर करोड़ों रुपये पानी के तरह खर्च कर रही है. लेकिन चौसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बदइंतजामी के कारण कचरे के ढेर पर खड़ा है. इस कारण आने वाले समय में कचरे के अवशेष से प्राथमिक स्वास्थ्य […]

चौसा : एक तरफ सरकार स्वच्छ व सुंदर वातावरण बनाने को लेकर स्वच्छ भारत अभियान के तहत साफ सफाई पर करोड़ों रुपये पानी के तरह खर्च कर रही है. लेकिन चौसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बदइंतजामी के कारण कचरे के ढेर पर खड़ा है. इस कारण आने वाले समय में कचरे के अवशेष से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र इलाज कराने आये रोगी को इलाज कराने के बजाय संक्रमित बीमारी का साथ में तोहफा मिल सकता है.

गौरतलब है कि रोगी कल्याण समिति की उपेक्षापूर्ण रवैये एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चौसा के अधिकारियों की लापरवाही के कारण अस्पताल के वेस्ट प्रोडक्ट-मेडिकल कचरे को दफनाने या जलाने क बजाय यत्र-तत्र फेंक दिये जाने से संक्रमण की आशंका बनी रहती है. पर्यावरण पर भी इसका असर पड़ता है. पट्टियां व कॉटन में लगे खून को खाकर आवारा कुत्ते आदमखोर हो रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ अस्पताल प्रबंधन इन सबको लेकर अनजान बना हुआ है.
खासकर बारिश के मौसम में इनसे बीमारियों के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. खराब हो चुकी दवाओं (जैविक कचरे) को जला दिया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा. जैविक कचरे के विनष्टिकरण की जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की है. इसका विनष्टिकरण नहीं किया जाना गंभीर मामला है.
गंदगी के लिये नहीं है कूड़ेदान
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चौसा में प्रतिदिन प्रसव के लिए आई महिलाओं के खून से लथपथ कपड़े, रूई समेत अन्य सामग्री को अस्पताल परिसर में यत्र तत्र खुले आसमान के नीचे डाल दिया जाता है, जिसे पशुओं द्वारा तितर-बितर कर सड़कों पर फैला दिया जाता है. लेकिन इसे फेंकने के लिये अस्पताल परिसर में कहीं भी कूड़ेदान की व्यवस्था नहीं है एवं न ही एक निश्चित जगह पर गड्ढा खोद कर कचरे को डाला जाता है.
कचरा में भ्रमण करते हैं आवारा जानवर
प्रयोग में लाये गये सामग्री को एक बड़ा गड्ढा खोदकर दफन करने या फिर इन्सिनेटर का प्रयोग कर उसे नष्ट करने का प्रावधान है. लेकिन अस्पताल में दोनों ही तरीकों में से एक का भी प्रयोग नहीं कर वेस्ट प्रोडक्टों को अस्पताल परिसर में यत्र-तत्र रहने के कारण अावारा कुत्ते इसमें विचरण करते रहते है व कुछ कचरे के अवशेष को इधर उधर फैला देने के कारण लोगों नाक पर रूमाल रखने को मजबूर कर दते है. ऐसी हालत रही तो स्वास्थ्य केंद्र के कचरे से कई तरह के संक्रमित बीमारी फैलने से इनकार नहीं किया जा सकता.
पर्यावरण पर हो सकता है प्रतिकूल असर
वेस्ट प्रोडक्ट को नष्ट नहीं किये जाने का असर पर्यावरण पर भी पड़ता है. इनसे निकले विषाणु हवा में घुल कर पर्यावरण को दूषित करते हैं. वहीं अस्पताल में दाखिल मरीजों एवं सड़कों पर चलने वाले राहगीरों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है.
वेस्ट प्रोडक्ट को खुले में फेंकने से इसका दुष्प्रभाव आमलोगों सहित परिसर में विचरण करने वाले पशुओं पर भी पड़ता है. असाध्य रोग जैसे संक्रमित मरीजों के लिए प्रयोग में लाये गये सिरिंज एवं प्रसव वाले कपड़े आदि से दूसरे व्यक्ति के संक्रमित होने का खतरा बना रहता है.

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