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महानंद बाबू को आज भी याद है आजादी की पहली सुबह

हरलाखी :आजादी किसे प्यारी नहीं होती कौन ऐसा है जिसे पराधीनता अच्छी लगती है. लेकिन आजादी की कीमत उनलोगों को पता है जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी है. देश की आजादी की पहली सुबह हरलाखी के पिपरौन के यदुनाथ मिश्र ने भी देखी है. आज भी वे अंग्रेजों के सितम को नहीं भूल पाए हैं. […]

हरलाखी :आजादी किसे प्यारी नहीं होती कौन ऐसा है जिसे पराधीनता अच्छी लगती है. लेकिन आजादी की कीमत उनलोगों को पता है जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी है. देश की आजादी की पहली सुबह हरलाखी के पिपरौन के यदुनाथ मिश्र ने भी देखी है. आज भी वे अंग्रेजों के सितम को नहीं भूल पाए हैं. महानंद बाबू बताते हैं की जो खुशी आजादी की सुबह महसूर की वह आज तक नसीब नहीं हुई.

देश जब आजाद हुआ उस वक्त उनकी उम्र 18 वर्ष थी. उस समय वे कोलकाता में 12 रुपये की मासिक मजदूरी पर काम करते थे. उन्होंने कहा कि उस समय सूचना तंत्र इतना विकसित नहीं था. नतीजतन देश की गतिविधियों की जानकारी आमलोगों को नहीं मिलती थी. 15 अगस्त 1947 की सुबह आज भी उन्हें याद है. वे जिनके यहां काम कर रहे थे उन्होंने पैसे देकर लड्डू लाने को कहा.
उन्होंने लड्डू ला दिया. कुछ देर बाद वहां काफी लोग जमा हो गये लोगों को लड्डू बांटा जाने लगा. नौकर थे किसी तरह हिम्मत करके पूछा कि यह लड्डू किस खुशी में बांटी जा रही है. उनके मालिक ने कहा कि देश आजाद हो गया है. यह सुनते ही महानंदा बाबू की आंखों में आंसू से भर गया. वे खुशी से फुले नहीं समा रहे थे.
संपत्ति हो गयी नीलामी
स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के कारण अंग्रेजों ने महानंद बाबू की संपत्ति जब्त कर नीलाम कर दिया था. उनके साथ अन्य कई सेनानियों के नाम वारंट जारी कर गिरफ्तारी के लिए जगह जगह छापेमारी की जा रही है. गिरफ्तारी से बचने के लिए सभी सेनानियों ने मोकामा से ट्रेन पकड़ कर हैदराबाद जाकर आर्मी मे भर्ती हो गये. लेकिन वारंटी होने की भनक लगते ही वहीं से गिरफ्तार कर सिकंदराबाद जेल भेज दिया गया.
जहां तीन महीने जेल में बंद रहने के बाद अंग्रेजी शासन के द्वारा 19 महीने की सजा सुनाकर मधुबनी जेल भेज दिया गया. श्री बाबू बताते हैं कि सजा के दौरान जेल में उनके साथ बेनीपट्टी के निवासी पूर्व मंत्री डॉ वैद्यनाथ झा भी सजा काट रहे थे. जेल से छूटने के बाद घर चलाने के लिए कलकत्ता के भवानीपुर में 12 रुपये मासिक पर नौकरी करने लगे.

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