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जहां राम की मूर्ति है, वहां नमाज नहीं पढ़ी जा सकती, इसलिए जमीन हिंदुओं को सौंप दें, ताकि वहां मंदिर बन सके

छह दिसंबर 1992 : जब दोनों कौमों के लोगों ने की एक-दूसरे की हिफाजत लखनऊ : छह दिसंबर की तारीख किसे याद नहीं. अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा हुआ था. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पूरे प्रदेश में नफरत की आग लगी थी. उस नाजुक मौके पर कुछ नेक बंदे भी थे, जो अमन के […]

छह दिसंबर 1992 : जब दोनों कौमों के लोगों ने की एक-दूसरे की हिफाजत

लखनऊ : छह दिसंबर की तारीख किसे याद नहीं. अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा हुआ था. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पूरे प्रदेश में नफरत की आग लगी थी. उस नाजुक मौके पर कुछ नेक बंदे भी थे, जो अमन के काम में लगे थे. ये लोग हालात सामान्य होने तक लोगों की मदद करते रहे.

मुस्लिम बहुल इलाके पुराने लखनऊ में शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास रहते हैं. उन्होंने उस दौरान अनेक हिन्दू भाईयों की रक्षा की. उनके लिए भोजन-पानी का इंतजाम किया. इसी तरह इस इलाके में भाजपा से ताल्लुक रखने वाले तारिक दुर्रानी की रक्षा हिन्दू कार्यकर्ताओं ने की. उस हिंसा भरे माहौल में उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षित रखा.

करीब 25 साल पहले की घटना को याद करते हुए अब्बास ने बताया, ‘हम पुराने लखनऊ के नक्खास इलाके में रहते हैं. जब बाबरी मस्जिद गिरायी गयी और इसकी खबरें आने लगीं, तो माहौल तनावपूर्ण हो गया. चारों ओर अल्लाह हो अकबर के नारों की आवाज सुनाई देने लगी.’

वह बताते हैं, ‘हमारे घर का एक दरवाजा मुस्लिम इलाके में खुलता है, तो दूसरा दरवाजा हिन्दू इलाके में. वहां 15 से 20 हिन्दू परिवार रहते थे. जैसे ही बाबरी मस्जिद गिराये जाने की खबर फैली, वह हिन्दू परिवार खौफ में आ गये और उन्हें अपनी जान का खतरा लगने लगा. लेकिन, मेरे पिता के हस्तक्षेप के कारण उन परिवारों और उस इलाके के लोगों के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.’

अब्बास ने दावा कि उनकी मां ने हिन्दू परिवारों के लिए खिचड़ी बनायी. सभी परिवार स्थिति समान्य होने तक वहां पूरी तरह सुरक्षित रहे. अब्बास से जब अयोध्या पर उनके विचार पूछे गये, तो उन्होंने कहा, ‘मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. अदालत के फैसले को सभी को मानना चाहिए.’

शहर की पॉश कॉलोनी सप्रू मार्ग के रहने वाले तारिक दुर्रानी के अनुसार, दिसंबर 1992 में उनकी कॉलोनी में भी स्थिति काफी तनावपूर्ण थी. उप्र भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा से जुड़े तारिक ने बताया, ‘मैं छह दिसंबर को लखनऊ में ही था. मैं भाजपा कार्यालय में पार्टी नेता जीडी नैथानी के साथ बैठा था. तभी बाबरी मस्जिद की खबर आयी. मैं कुछ चिंतित था, क्योंकि माहौल खराब हो रहा था. नैथानी भी मेरे और मेरे परिवार को लेकर चिंतित थे, क्योंकि जिस इलाके में मैं रहता था वहां मैं अकेला मुस्लिम था.’

तारिक ने बताया, ‘उन्होंने कुछ युवाओं को मेरे घर की रक्षा करने की जिम्मेदारी दी. वह युवा अगले चार-पांच दिन तक स्थिति सामान्य होने तक मेरे घर की रक्षा करते रहे.’ 56 साल के व्यापारी दुर्रानी से जब अयोध्या मसले के समाधान के बारे में उनकी राय पूछी गयी, तो उन्होंने कहा, ‘जहां पर मूर्ति स्थापित हो गयी है, वहां कोई मुस्लिम नमाज नहीं पढ़ सकता. इसलिए विवादित स्थल हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए, ताकि वह वहां पर राम मंदिर बना सकें.’

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