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काराकाट में विकास के मुद्दे हैं पीछे जातीय समीकरण पर हर निगाह

ओमप्रकाशदाउदनगर : धान का कटोरा कहे जाने वाले काराकाट लोकसभा क्षेत्र में बड़ी राजनीतिक तपिश के बीच चुनावी सरगर्मी तेज है. लेिकन, क्षेत्र के विकास के मुद्दे पीछे हैं. वैसे तो इस लोकसभा क्षेत्र से 27 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन बात मोदी पक्ष और विपक्ष की ही हो रही है. इस बार एक […]

ओमप्रकाश
दाउदनगर : धान का कटोरा कहे जाने वाले काराकाट लोकसभा क्षेत्र में बड़ी राजनीतिक तपिश के बीच चुनावी सरगर्मी तेज है. लेिकन, क्षेत्र के विकास के मुद्दे पीछे हैं. वैसे तो इस लोकसभा क्षेत्र से 27 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन बात मोदी पक्ष और विपक्ष की ही हो रही है. इस बार एक बार फिर महागठबंधन से रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा और जदयू के महाबली सिंह के बीच टक्कर है.

भाकपा-माले के राजाराम सिंह और सपा के घनश्याम तिवारी चुनावी जंग को रोचक बना रहे हैं. मंगलवार को सासाराम में प्रधानमंत्री की चुनावी सभा के बाद एनडीए अपने को भारी मान रहा है. वहीं जातियों की गोलबंदी की कोशिश कर उपेंद्र कुशवाहा समर्थकों को भरोसा है कि जनता उनका साथ देगी.
इस बार काराकाट की राजनीतिक परिस्थितियां बदली हुई हैं. कुशवाहा बहुल इस सीट वर तीन प्रमुख कुशवाहा उम्मीदवार मैदान में हैं. रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा, जदयू के महाबली सिंह और भाकपा-माले के राजाराम सिंह इसी समाज से आते हैं. 2014 में रालोसपा एनडीए में थी और 2019 के चुनाव में वह महागठबंधन में है.
बदली राजनीतिक परिस्थिति में उपेंद्र कुशवाहा जहां लगातार दूसरी बार प्रतिनिधित्व करने का लक्ष्य लेकर महागठबंन की ओर से चुनाव मैदान में उतरे हैं, वहीं महाबली सिंह एक बार पुनः अवसर मिलने की उम्मीद के साथ एनडीए गठबंधन से चुनाव मैदान में हैं. हालांकि 2014 के चुनाव में ये जदयू प्रत्याशी के रूप में तीसरे स्थान पर रहे थे.
भाकपा माले का भी है वोट बैंक
वैसे विकास के मुद्दों के बजाय क्षेत्र के जातीय समीकरण पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. अप्रत्यक्ष रूप से जातीय समीकरण को ही साधने का प्रयास किया जा रहा है. एनडीए गठबंधन को जहां मोदी फैक्टर और एनडीए के परंपरागत वोट का भरोसा है,
वहीं महागठबंधन को महागठबंधन से जुड़े दलों के वोट बैंक का भरोसा है. नजरें खासकर कुशवाहा जाति के वोट पर टिकी हुई है. माना यह जा रहा है कि वोट बैंक की राजनीति के बीच कुशवाहा जाति का वोट चुनाव परिणाम में निर्णायक साबित हो सकता है.
वैसे भाकपा माले का भी अपना एक अलग वोट बैंक है. स्वराज पार्टी (लो.) के नंदकिशोर यादव ने भी मुकाबले को और रोचक बना दिया है. सपा ने घनश्याम तिवारी को उम्मीदवार बनाया है. बसपा प्रत्याशी को भी कम कर इसलिए नहीं आंका जा सकता. निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनावी परिणाम को उथल-पुथल करने में भूमिका निभा सकते हैं.
वोट बैंक को संभाले रखना चुनौती
एनडीए व महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए परंपरागत वोट को अपने पाले में बनाये रखने की बड़ी चुनौती है. इन दोनों के स्वजातीय वोटरों के साथ-साथ दलित-महादलित एवं अतिपिछड़ा वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं. फिलहाल, इस भीषण गर्मी में प्रत्याशी एवं उनके समर्थक खूब पसीना बहा रहे हैं.
अब वोट के महज चंद दिन रह गये हैं, मतदाताओं की आवाज मुखर होने लगी है. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाये रखना चुनौती है. 27 प्रत्याशियों में से कई ऐसे प्रत्याशी हैं, जो खेल भी बिगाड़ सकते हैं.
वर्ष 2009 में प्रमुख दलों के प्रत्याशियों को मिले वोट
1- जदयू (एनडीए)1,96,946
2- राजद 1,76,463
3- कांग्रेस71057
4- सीपीआईएमएल37493

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