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लोकसभा चुनाव: बिहार में कांग्रेस अधिक सीटें छोड़ने के मूड में नहीं, 10 सीटें मिलने की उम्मीद

राष्ट्रीय स्तर पर बन रही रणनीति पर चलेगी प्रदेश इकाई पटना : राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस 2019 की राजनीतिक परिस्थितियों को भांप कर बिहार में सीट शेयरिंग की तैयारी में जुटी है. प्रदेश इकाई के नेताओं को भरोसा है कि राजद इस बार 27 की जगह 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार देगा. वहीं, कांग्रेस को […]

राष्ट्रीय स्तर पर बन रही रणनीति पर चलेगी प्रदेश इकाई

पटना : राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस 2019 की राजनीतिक परिस्थितियों को भांप कर बिहार में सीट शेयरिंग की तैयारी में जुटी है. प्रदेश इकाई के नेताओं को भरोसा है कि राजद इस बार 27 की जगह 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार देगा. वहीं, कांग्रेस को कम से कम 10 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का मौका मिलेगा. शेष सीटों को सहयोगियों के बीच बांट दी जाये, ताकि महागठबंधन की ताकत भी बनी रहे. पार्टी नेताओं का कहना है कि भाजपा के विकल्प व राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण उसकी सीटें कम हुईं, तो कार्यकर्ताओं की ऊर्जा कम पड़ जायेगी. पार्टी के पास ऐसा सोचने के पीछे ठोस वजह भी है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद अभी जेल में हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को झटका लगा है. कांग्रेस ने बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
विधानसभा चुनाव में राजद को देंगे तवज्जो
प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि लोकसभा की जितनी सीटें उसके हिस्से में कम आयेंगी, उसका नुकसान संगठन पर पड़ेगा. जिन सीटों पर प्रत्याशी होंगे उसे छोड़कर शेष सीटों पर पार्टी कार्यकर्ता उदासीन हो जायेंगे. अगर राजद को कुछ अधिक सीटों की जरूरत है, तो उसे विधानसभा में पूरा किया जायेगा. पार्टी नेताओं का कहना है कि इस बार भाजपा सवर्ण आरक्षण का बड़ा राजनीतिक लाभ लेने में जुटी है. राजद ने इसका विरोध कर उन तबकों में असंतोष पैदा कर दिया है, जबकि इस बार कांग्रेस की नजर ऐसे तबकों के वोट पर ज्यादा थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद को चार तो कांग्रेस को दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था. जानकारों का मानना है कि 2004 लोकसभा चुनाव के जख्म अब तक कांग्रेस का पीछा कर रहे हैं, जब राजद ने उनको सिर्फ चार सीटें देकर मना लिया था. 2009 के लोकसभा चुनाव में तब राजद को इसका सबक मिल गया था. उस वक्त राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बिहार के राजनीति के शहंशाह माने जाते थे. 2009 में राजद को 22 लोकसभा सीटों की जगह सिर्फ चार सीटों पर संतोष करना पड़ा था और लालू प्रसाद 2009 के लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र की सीट भी हार गये थे. 2009 में छपरा सीट लालू प्रसाद इसलिए बचा सके कि वहां कांग्रेस का प्रत्याशी ही तय नहीं हुआ था.
महागठबंधन में फंस सकता है सीटों का पेच
धार्मिक तौर पर ही नहीं, राजनीतिक तौर पर भी अब खरमास समाप्त हो गया है. महागठबंधन में अब सीट शेयरिंग को जल्द ही अंतिम रूप दिया जायेगा. महागठबंधन के सबसे बड़े दल राजद के सामने सहयोगियों को संतुष्ट करना बड़ी चुनौती होगी. सूत्रों पर भरोसा करें तो राजद 22 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ेगा. बताया जा रहा है कि जल्द ही महागठबंधन के नेताओं की सीट शेयरिंग को लेकर अहम बैठक होगी. राजद महागठबंधन का सबसे बड़ा प्लेयर है, इसलिए वह सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगा. वहीं, कांग्रेस का भी हौसला तीन राज्यों में जीत के बाद बुलंद है. चर्चा और सूत्रों पर यकीन करें तो राजद ने अपने सुप्रीमो के निर्देशन में सीट शेयरिंग का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है. बैठक में राजद इस ब्लू प्रिंट को रखेगा. राजद 22 सीटों पर चुनाव लड़ेगा. जबकि, कांग्रेस को आठ से 10 और रालोसपा को 4 सीटें मिल सकती हैं. हम, मुकेश सहनी, माकपा और भाकपा को एक-एक सीट मिल सकती है.

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