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दिशोम गुरु के जन्मदिन पर विशेष : मुझे जनता से कोई दूर नहीं कर सकता, चुनाव लड़ूंगा

II पंकज कुमार पाठक II दिशोम गुरु शिबू सोरेन आज 75 साल के हो गये. शिबू अलग झारखंड के लिए लड़े. झारखंड की लड़ाई के साथ- साथ उन्होंने झारखंड की परिकल्पना भी की थी, झारखंड कैसा होगा ? क्या अपने सपने का वह झारखंड देखते हैं ? हमने उनसे आंदोलन के पुराने दिनों पर चर्चा […]

II पंकज कुमार पाठक II
दिशोम गुरु शिबू सोरेन आज 75 साल के हो गये. शिबू अलग झारखंड के लिए लड़े. झारखंड की लड़ाई के साथ- साथ उन्होंने झारखंड की परिकल्पना भी की थी, झारखंड कैसा होगा ? क्या अपने सपने का वह झारखंड देखते हैं ? हमने उनसे आंदोलन के पुराने दिनों पर चर्चा की. झारखंड राज्य के संघर्षों के विभिन्न पहलुओं को टटोला. पिछले 18 वर्षों में झारखंड के हालात व वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर चर्चा मेंशिबू सोरेन ने भी बड़े लंबे दिनों के बाद बेबाक हो कर अपनी बातें रखी़ं.

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नेताओं को फाइलों में उलझा कर रखते हैं अफसर
नेताओं को अफसर फाइल में उलझा कर रखते हैं. अफसर दिन भर फाइल बनाते रहते है़ं ये फाइल से झारखंड नहीं सुधरने वाला़ अफसरों को जंगल में भेजना होगा़ दो-चार गांव हर महीने पैदल घूमे़ं स्कूलों में जा कर देखे कि मास्टर है कि नही़ं मास्टर है, तो पढ़ने वाला है कि नही़ं अस्पताल में दवा है कि नही़ं लेकिन यह सब झारखंड में नहीं हो रहा है़ आदिवासी-मूलवासी के गांव में अफसर-मंत्री को रात- दिन गुजारना होगा़ इनका दर्द समझना होगा़. उनका दर्द तो उनके बीच ही जाकर समझ में आयेगा.
भाजपा की सरकार ने झारखंड के लोगों को कुछ नहीं दिया़ नौकरी भी बाहर के लोगों को दिया गया़ भाजपा मेरे लिए कोई चुनौती नहीं है़ हम अपने राजनीति में बहुत कुछ देखा है़ बहुत कुछ सहे है़ं शिबू सोरेन ने बहुत संघर्ष किया है़ झारखंड की जनता ने हमेशा मेरा साथ दिया है़.
मुझे जनता के बीच से कोई नहीं हटा सकता चुनाव लड़ूंगा
शिबू सोरेन ने प्रभात खबर डॉट कॉम से विशेष बातचीत में कहा, मैं हमेशा से जनता के बीच रहा हूं और उन्हीं के बीच रहना चाहता हूं. आने वाले लोकसभा चुनाव में मैं उम्मीदवार बनूंगा और चुनाव लड़ूंगा. अभी कई काम ऐसे हैं, जिसे पूरा करना है. झारखंड के विकास को लेकर अबतक क्या काम हुआ ? ना नये स्कूल बने, ना कॉलेज. जो काम हुआ यहां के मूलवासियों के लिए नहीं. यहां की नौकरी बाहर के लोगों के लिए है. यहां के लोगों का तो नुकसान ही हुआ है और यह तबतक होगा जबतक यहां के लोग शिक्षित नहीं होंगे. सबकुछ तो यहां के लोगों का है, जमीन उनकी जंगल उनका खनिज संपदा उनकी.
यहां की खनिज संपदा से देश चल रहा है, हमें क्या मिला
आदिवासियों के विकास और उनके लिए बनायी गयी योजनाओं पर शिबू सोरेन ने कहा, केंद्र और राज्य सरकार को यहां के लोगों पर ध्यान देना चाहिए. यहां के मूलवासियों के लिए विशेष योजना होनी चाहिये. यहां की खनिज संपदा से जब देश चल सकता है, तो यहां के लोगों को भी इसमें हिस्सा मिलना ही चाहिए. केंद्र और राज्य सरकार दोनों कुछ नहीं कर रही. धनबाद में कोयला आज से तो निकल नहीं रहा है अभी सैकड़ो साल और निकलेगा इतना कुछ देने वालों को क्या मिला ?
राजनीतिक फैसला हेमंत पर छोड़ा है
राजनीतिक महागठबंधन पर शिबू ने कहा, मैंने पार्टी का पूरा फैसला हेमंत पर छोड़ दिया है, मेरी उम्र हो गयी है उन्हें जिम्मेवारी सौंपी है, हमारा फैसला इस पर निर्भर करता है कि जनता क्या चाहती है, चारों ओर से उठ रही आवाजों पर भी ध्यान देना होगा.
अशिक्षा दूर करना बेहद जरूरी है
शिबू सोरेन ने झारखंड के विकास की परिकल्पना का जिक्र करते हुए कहा, जबतक लोग शिक्षित नहीं होंगे तबतक विकास संभव नहीं है. शिक्षित होकर ही लोग अपने हित में फैसला ले सकते हैं. आदिवासियों ने हड़िया , दारु को भी अपनी संस्कृति से जोड़ लिया है, इसलिए इससे दूर नहीं हो पा रहे हैं. मैंने अशिक्षा दूर करने के लिए रात में क्लास चलवायी थी. हम सभी शिक्षा के महत्व को समझते हैं.
झारखंड मांगने से नहीं मिला, लड़कर मिला है
झारखंड का सपना इतनी आसानी से पूरा नहीं हुआ, मांगने से नहीं मिला लड़ना पड़ा है. कई लोगों ने जान दी है, जो लोग इसके लिए लड़ रहे थे वह निडर थे. जानते थे, इस आंदोलन में उनकी जान जा सकती है. सब एक आवाज पर साथ आ जाते थे.
आंदोलन का दौर याद करते हुए शिबू कहते हैं, मैंने देखा कि कैसे गोलियों का जवाब आदिवासी अपनी पारंपरिक हथियार से देते थे. गोली चलती थी, तो पीछे नहीं हटते थे, आगे बढ़ते रहते थे. मैंने अपने कई साथियों को खोया है. कई लोग आज भी जुड़े हैं साथ आते हैं, मिलते हैं.
जंगल से अपने रिश्ते का जिक्र करते हुए शिबू सोरेन ने कहा, मैं सिर्फ जंगलों में घूमा नहीं हूं, वहीं पैदा हुआ हूं.
आंदोलन की कई कहानियां है . मैंने महाजनी शोषण के खिलाफ लड़ाई शुरू की, लड़ाई सरकार के खिलाफ हो गयी. मैंने सरकार ही अलग करने की लड़ाई शुरू कर दी . कई लोग नेता बने लेकिन अलग राज्य का मुद्दा नहीं उठा सके. दिल्ली से लेकर बिहार तक घेराबंदी थी. मैंने अपना हिस्से का पूरा काम कर लिया है. अब आगे का काम लोग देखें
सवर्ण आरक्षण का फैसला सही है
शिबू सोरेन राजनीतिक हलचल पर भी विशेष नजर रखते हैं. सुबह पांच बजे उठते हैं योग करते हैं, खेती बारी में ध्यान देते हैं और धूप में बैठकर अखबार पढ़ते हैं. उन्होंने सवर्ण आरक्षण के सवाल पर कहा, मैंने अखबारों में पढ़ा सरकार ने सही फैसला लिया है. अपने दौर का एक किस्सा याद करते हुए बताते हैं कि जब मैं मुख्यमंत्री था तो मैंने सिर्फ आरक्षित बच्चों को साइकिल देने का फैसला पलट दिया था. मैं नहीं चाहता था कि बच्चों के मन में भेदभाव के बीच पैदा हों. बच्चे तो बच्चे हैं अगर वह देखेंगे कि उनके दोस्त को मिला और उन्हें नहीं, तो भेदभाव होगा.
जब वृद्ध महिला ने कुछ सिक्के शिबू को थमाये थे
शिबू पश्चिमी सिंहभूम में एक सभा कर रहे थे, तभी मुट्ठी में कुछ पैसे लिये महिलाएं पहुंची और उनके हाथों में रख दिया. शिबू उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वह हमें वापस आने का भाड़ा देती थीं बिल्कुल वैसे ही जैसे मेहमानों को विदा करते हैं. अगर उनसे वह ना लें तो वह नाराज हो जाती थीं.
उनसे पैसे लेना उनका प्यार, आशीर्वाद है, आज सरकारें उनसे बातचीत के बाद उनकी तकलीफ समझती है जब हम दौरा करते थे तो सबसे पहले देखते थे कि खेतों तक पानी पहुंच रहा है या नहीं, इस बार खेती कैसी हुई. लोगों को खेती करना सिखाया कि कैसे पारंपरिक खेती के अलावा दूसरे फसल भी हो सकते हैं.

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