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Thursday, March 28, 2024

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पहले इलाज, फिर जरूरी फारमेल्टी

एक निजी कंपनी का कर्मचारी हूं और बारीडीह में रहता हूं. बात गत जनवरी माह की है. मैं लेट नाइट अपना काम खत्म करके कमरे पर पहुंचा था कि अचानक तीन बजे के आसपास मेरे सीने में तेज दर्द होने लगा. पहले मुझे लगा कि गैस की समस्या है, लेकिन धीरे-धीरे दर्द बढ़ने लगा. मुझे […]

एक निजी कंपनी का कर्मचारी हूं और बारीडीह में रहता हूं. बात गत जनवरी माह की है. मैं लेट नाइट अपना काम खत्म करके कमरे पर पहुंचा था कि अचानक तीन बजे के आसपास मेरे सीने में तेज दर्द होने लगा. पहले मुझे लगा कि गैस की समस्या है, लेकिन धीरे-धीरे दर्द बढ़ने लगा. मुझे लगा कि 7-8 डिग्री तापमान होने के बावजूद मुझे पसीना आ रहा है.

सांसें भी बढ़ रही हैं. मैं कमरे में अकेला था इस कारण डर गया कि कहीं यह हार्ट अटैक तो नहीं. तब तक चार बज गये. मैंने अपने एक साथी को फोन किया और उसे परेशानी बतायी. उसने बताया कि आपके कमरे के पास में ही मर्सी अस्पताल है. आप चलिये, मैं भी आता हूं. मैंने तत्काल बाइक ली और अस्पताल पहुंच गया.
मैं सीधे इमरजेंसी में गया और बाहर पड़ी बेंच पर बैठ गया. क्योंकि दर्द इतना ज्यादा था कि मुझसे चला नहीं जा रहा था. तभी वहां से गुजर रही एक नर्स को मैंने इशारे से बुलाया और अपनी बात बतायी. उसने तत्काल मुझे सहारा दिया और पकड़ कर अंदर ले गयी. डॉक्टर को दिखाया. 10 मिनट के अंदर मेरी इसीजी की गयी. इसीजी सामान्य होने पर कुछ इंजेक्शन और दवाएं भी दी. इसके बाद डॉक्टर ने पूछा – आपके साथ कौन है? मैंने कहा-कोई नहीं. तो उन्होंने कहा कि आपको भर्ती होना पड़ेगा.
मैं भर्ती हो गया. डॉक्टर ने मेरी आइडी मांग ली और कहा कि जब आपका साथी आ जाये, तो पैसे जमा करा देना. बाद में मैंने पैसे जमा कराये. मुझे खुशी इस बात की है कि जब मुझे इलाज की जरूरत थी, तो तब डाॅक्टरों ने मेरा इलाज किया. पैसे, डाक्यूमेंटेशन उनके लिए प्राथमिकता नहीं थी. काश! ऐसा सभी अस्पतालों में हो.
ऐसी न हो व्यवस्था
2.30 घंटे बाद भी नहीं मिला पेन किलर
री पत्नी की अचानक तबीयत बिगड़ गयी. मैं उन्हें लेकर मानगो के एक सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल गया. वहां डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने तत्काल उन्हें भर्ती कराने को कहा. मैंने तत्काल जरूरी कार्यवाही पूरी की और पैसे जमा कराये.
पैसे जमा कराने के बाद मैं हेल्प सेंटर गया, तो बताया गया कि बेड खाली नहीं है और 3-4 घंटे इंतजार कीजिए. अब मैं खुद को ठगा सा महसूस कर रहा था. क्योंकि पत्नी दर्द से तड़प रही थी और कोई कुछ भी सुन नहीं रहा था. मैं फिर से डॉक्टर के पास गया और उन्हें परेशानी बतायी. उन्होंने सुझाव दिया कि आप तत्काल इमरजेंसी में लेकर चले जाइए.
वहां तत्काल इलाज शुरू हो जायेगा और बेड मिलते ही शिफ्ट कर लेना. मैं दौड़ा-दौड़ा इमरजेंसी गया, ताे वहां भी निराशा ही हाथ लगी. इमरजेंसी के इंचार्ज ने कहा कि यहां आप मरीज को नहीं लिटा सकते हैं. मैं वापस हेल्प सेंटर गया और अपने पैसे वापस मांगे कि मुझे इलाज नहीं कराना है. काफी देर विवाद होने के बाद मुझे बेड दिया गया, तब जाकर इलाज शुरू हो सका. ऐसी व्यवस्था अस्पतालों में नहीं होनी चाहिए. यह बेहद शर्मनाक है.
सामुदायिक भवनाें में खुले सरकारी क्लीनिक
आबादी लगातार बढ़ रही है, लेकिन उसके अनुपात में अस्पतालाें में सुविधायें नहीं बढ़ रही हैं. यह गंभीर विषय है. निजी अस्पताल इमरजेंसी में बेड नहीं हाेने पर साफ हाथ खड़े कर देते हैं.
एमजीएम अस्पताल में डॉक्टर अत्याधिक लाेड हाेने के बाद भी किसी भी तरह एडजस्ट कर इलाज शुरू कर देते हैं. पूरा काेल्हान जमशेदपुर की मेडिकल व्यवस्था पर निर्भर है. माैसमी बीमारियाें के कारण अस्पतालाें में भीड़ बढ़ जाती है. अटल क्लीनिक से लाेगाें काे फायदा हाे रहा है.
उसी तरह सामुदायिक केंद्राेें में यदि आेपीडी की शुरुआत हाे, ताे बेहतर कदम हाेगा. अस्पताल हैं, ताे सुविधाअाें की कमी आैर बेड की कमी है, यह दूर हाेनी चाहिए. लाेग अस्पताल में अच्छे डॉक्टर से इलाज के लिए नहीं बल्कि बेड दिलाने के लिए पैरवी करते हैं, ऐसी व्यवस्था तकलीफ देती है.
सरयू राय, मंत्री, खाद्य आपूर्ति
मुहल्लाें में खुले क्लीनिक, परामर्श व दवायें भी मिले
सिंहभूम चेंबर अॉफ कॉमर्स समेत कई संगठनाें से जुड़े मुरलीधर केडिया ने कहा कि यह सच है कि जमशेदपुर में मेडिकल व्यवस्था दुरुस्त नहीं है. यही कारण है कि संपन्न लाेग छाेटी-छाेटी बीमारियाें तक का इलाज कराने के लिए कटक से लेकर सीएमसी वेल्लूर तक का मुश्किल भरा सफर करते हैं.
माैसमी बीमारियां साल भर नहीं रहती, लेकिन जब इनका सीजन आता है, ताे मरीजाें की बाढ़ सी आ जाती है. सरकार काे चाहिए कि शहर के आस-पास मानगाे, कदमा-साेनारी, बिरसानगर, मनीफीट-जेम्काे, राहरगाेड़ा-बारीगाेड़ा, गाेविंदपुर, जुगसलाई, बागबेड़ा, सुंदरनगर आदि क्षेत्राें में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खाेले, जहां डॉक्टराें की व्यवस्था हाे. उन्हें बेहतर परामर्श के साथ-साथ दवा भी मिल सके, जिससे उसकी आधी बीमारी का समाधान का मार्ग प्रशस्त हाे जाये.
मुरलीधर केडिया, समाजसेवी
अच्छे डॉक्टर का ठहराव शहर में हो
जमशेदपुर में बेहतर स्वास्थ्य सेवा की कमी है. अगर समीक्षा की जाये, तो पायेंगे कि यहां अच्छे डॉक्टर टिक ही नहीं पाते हैं. यह जमशेदपुर ही नहीं बल्कि देश के अन्य टियर टू या फिर टियर थ्री शहरों की समस्या है. डॉक्टर अगर नहीं टिकेंगे, तो आप चाहे नये अस्पताल भी बना लें, स्थिति में सुधार नहीं होने वाला है.
जमशेदपुर के अस्पताल अब सिर्फ रेफरल अस्पताल बन गये हैं. इलाज के लिए लोगों को दूसरे शहरों में रेफर किया जाता है. जिस प्रकार से शहर के अस्पतालों में बेड की समस्या उत्पन्न हो रही है, इससे निजात दिलाने के लिए अस्थायी तौर पर यह प्रयास भी की जा सकती है.
विकाश सिंह, समाजसेवी
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