जमशेदपुर : जमशेदपुर में इंडियन साइकेट्रिक सोसाइटी की ओर से आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में बतौर प्रशिक्षक शिरकत कर रहे ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न से आये प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ के जगदीशन का कहना है कि ‘वीडियो गेम बच्चों को हिंसक व तनावग्रस्त बना रहे हैं. बिना ट्रेनर इंटरनेट के इस्तेमाल से पूरी पीढ़ी का भविष्य खतरे में पड़ रहा है. अभिभावकों व शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों पर खास ध्यान दें. मोबाइल व आइपैड के इस्तेमाल के दौरान थोड़ी सी असावधानी बच्चे को मानसिक रूप से बीमार बना सकती है.’
मूल रूप से भारत के चेन्नई शहर के रहनेवाले डॉ के जगदीशन ने स्नातकोत्तर की पढ़ाई झारखंड से की. करीब पंद्रह वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हुए डॉ जगदीशन से मनोचिकित्सा विज्ञान से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर वरीय संवाददाता ब्रजेश मिश्रा ने विस्तार से बात की. पेश है बातचीत के खास अंश:-
शिक्षा में एक तरफ जहां इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है, वहीं दूसरी तरह अभिभावकों को सलाह दी जा रही है कि वह बच्चों को मोबाइल, आइपैड से दूर रखें. सामंजस्य कैसे बैठाया जाये?
जवाब : यह समस्या भारत के लिए नयी है. दुनिया के कई देशों में पहले से इस पर काम हो रहा है. बच्चों की पढ़ाई के साथ तकनीक जुड़ रही है. ऐसे में जरूरी है कि विशेष रूप से इसके लिए ट्रेनर रखे जाएं. स्कूलों में शिक्षकों की भूमिका बदल रही है. इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश करने वाले छात्रों को कुशल मार्गदर्शक की आवश्यकता है.
दुनिया के जिन देशों में पूरी तरह से तकनीक आधारित शिक्षा व्यवस्था लागू है, वहां कैसे सामंजस्य बैठाया जा रहा है?
जवाब : मैं पिछले 15 वर्षों से ऑस्ट्रेलिया में रह रहा हूं. बच्चे आइपैड से पढ़ रहे हैं. शिक्षकों ने इसके लिए समय सारणी तय कर दी है. बच्चों के खेलने से लेकर किताबें पढ़ने तक का टाइम टेबल तय किया गया है. इसका कड़ाई से पालन किया जा रहा. इंटरनेट के इस्तेमाल के समय शिक्षक से लेकर अभिभावक तक सख्त निगरानी
कर रहे हैं.
भारत के स्कूलों के लिए आपका क्या सुझाव होगा?
जवाब : मेरा मानना है कि भारतीय स्कूलों में प्राथमिकता के आधार पर मनोचिकित्सक, तकनीकी प्रशिक्षक तैनात होने चाहिए. विदेश के स्कूलों में मनोचिकित्सकों व मनोविशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं. भारत में भी इसका सुव्यवस्थित ढ़ांचा खड़ा करना होगा.
बच्चों में मोबाइल के प्रति बढ़ता लगाव अधिकांश परिवारों के लिए बड़ी समस्या बन गयी है. इसका स्थायी समाधान क्या है?
जवाब : बच्चे मोबाइल पर कार्टून से लेकर वीडियो गेम तक देख रहे हैं. इसमें से कई वीडियो गेम बच्चों व युवाओं को हिंसा की तरफ मोड़ रहे हैं. उनके लिए यह नशा बन रहा है. परिवार यह देखे कि मोबाइल से वह बच्चों को कैसे दूर रख सकते हैं? लोगों को और अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है. बच्चों के लिए समय निकालना होगा.
कार्यशाला में आपका प्रेजेंटेशन सिजोफ्रेनिया पर है. इसके बारे में कुछ बताएं?
जवाब : मानसिक बीमारियों के सबसे गंभीर विकार में सिजोफ्रेनिया शामिल है. इसका इलाज नहीं होने पर करीब 25 प्रतिशत मरीजों के खुदकुशी कर लेने का खतरा होता है. भारत में विभिन्न डिग्री के सिजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं. सिजोफ्रेनिया के इलाज से वंचित करीब 90 प्रतिशत रोगी भारत जैसे विकासशील देशों में हैं. इससे ढाई करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं. यह बीमारी प्रति एक हजार वयस्कों में से करीब 10 लोगों और ज्यादातर 16-45 आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करती है.