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#WorldDiabetesDay : डायबिटीज बन सकती है इंफर्टिलिटी की वजह, रखें इन बातों का ख्याल

World Diabetes Day: 14 November डॉ पूजा रानीस्त्री रोग विशेषज्ञ, इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल, अरगोरा चौक, रांचीखराब जीवनशैली कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रही हैं. इनमें बांझपन भी एक समस्या है. कुछ दंपती बच्चे की चाहत रखने के बावजूद, इससे वंचित रह जाते हैं. इसके कई चिकित्सकीय कारण हो सकते हैं, लेकिन अक्सर बांझपन का […]

World Diabetes Day: 14 November

डॉ पूजा रानी
स्त्री रोग विशेषज्ञ, इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल, अरगोरा चौक, रांची
खराब जीवनशैली कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रही हैं. इनमें बांझपन भी एक समस्या है. कुछ दंपती बच्चे की चाहत रखने के बावजूद, इससे वंचित रह जाते हैं. इसके कई चिकित्सकीय कारण हो सकते हैं, लेकिन अक्सर बांझपन का दोष महिलाओं को दिया जाता है. हालांकि, काफी लोग शायद यह नहीं जानते कि बांझपन का एक कारण पुरुष का डायबेटिक होना भी हो सकता है.

जब मां हो डायबिटीज से पीड़ित : यदि महिला डायबिटीज से पीड़ित है, तो उस स्थिति में गर्भस्थ शिशु और मां दोनों के लिए खतरे की बात होती है. इससे गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है. यदि गर्भ में बच्चा पूर्णत: विकसित हो जाता है, तो प्रसव के दौरान बच्चों का आकार सामान्य से बड़ा होने की स्थिति में सर्जरी ही प्रसव का एकमात्र विकल्प होता है.

इंसुलिन का असंतुलन खतरनाक
डायबिटीज के टाइप-1 में इंसुलिन का स्तर कम हो जाता है और टाइप-2 में इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है. दोनों में ही इंसुलिन का इंजेक्शन लेना जरूरी होता है. इससे शरीर में ग्लूकोज का स्तर सामान्य बना रहता है. गर्भधारण करने के लिए इंसुलिन के एक न्यूनतम स्तर की आवश्यकता होती है और टाइप-1 डायबिटीज की स्थिति में इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं. इस स्थिति में गर्भधारण करना मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है. दोनों की सेहत पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है. दूसरी ओर टाइप-2 डायबिटीज में शरीर रक्तधाराओं में ग्लूकोज के स्तर को सामान्य बनाये नहीं रख पाता है, क्योंकि शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पाता है. इस स्थिति से निबटने के लिए आहार में परिवर्तन किया जा सकता है और नियमित रूप से व्यायाम का अभ्यास करने से भी इंसुलिन के स्तर को सामान्य बनाया जा सकता है.

इंसुलिन’ हॉर्मोन का एक प्रकार है और इसके असंतुलन से शरीर के अन्य हॉर्मोंस जैसे एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्ट्रॉन और टेस्टोस्टेरॉन का स्तर भी प्रभावित होता है. हॉर्मोंस असंतुलन से महिलाओं में ओवेरियन सिस्ट व बांझपन की समस्या हो सकती है. पुरुषों में शिशन (penis) की कार्यप्रणाली प्रभावित होने से बांझपन हो सकता है. मोटी महिलाओं में टाइप-2 डायबिटीज का खतरा अधिक होता है. मोटापा से इंसुलिन रेजिस्टेंस की स्थिति गंभीर हो जाती है. मोटापे के कारण महिलाओं में पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और डिसमेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा बढ़ जाता है. ये दोनों ही समस्याएं बांझपन का कारण बन सकती हैं.

पुरुषों की फर्टिलिटी : डायबिटीज का असर तंत्रिकाओं पर भी पड़ता है. इससे शिशन सही तरीके से कार्य नहीं कर पाता है. रक्त में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल एक साथ मिलकर इस समस्या को अधिक बढ़ा देता है. मूत्राशय की तंत्रिकाएं अनियंत्रित हो जाती हैं, जिससे स्खलन के समय वीर्य अंदर प्रवेश नहीं होता और शिशन से बाहर ही गिर जाता है. इसकी वजह से उनमें बांझपन की समस्या हो जाती है. साथ ही टाइप-1 डायबिटीज पुरुषों के शुक्राणुओं के डीएनए को भी नष्ट कर देता है और उनके जीवनसाथी के गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है. यदि गर्भधारण हो जाता है, तो स्वस्थ बच्चे के जन्म लेने की संभावना कम होती है.

दवाएं भी वजह : जल्द स्खलन होने या शिशन के सही रूप में कार्य न करने का कारण कुछ दवाएं भी हो सकती हैं, जैसे- डिप्रेशन, अल्सर या ब्लड प्रेशर में ली जाने वाली दवाएं. आप कौन-कौन सी दवाएं पहले से ले रहे हैं इसके बारे में अपने डॉक्टर को जानकारी जरूर दें और साथ ही कोई भी दवा शुरू करने या बंद करने के बारे में डॉक्टर से सलाह लें.

रखें इन बातों का ख्याल

-गर्भावस्था के 12वें हफ्ते तक महिलाओं को प्रतिदिन अतिरिक्त 300 कैलोरी की आवश्यकता होती है. प्रोटीन की मात्रा में भी वृद्धि करनी होती है. खुद को सक्रिय बनाये रखना काफी अहम है. स्वीमिंग, वॉकिंग या साइकलिंग जैसे व्यायाम लाभकारी हैं. लंबे समय तक बैठकर या लेटकर टीवी देखने या कंप्यूटर पर काम करने से बचें.

-गर्भधारण करने से पूर्व अपनी चिकित्सकीय अवस्था के बारे में महिला और पुरुष दोनों जान लें. शरीर में उच्च इंसुलिन प्रतिरोधकता से जुड़े खतरों के बारे में जानकारी लें.

-टाइप-2 डायबिटीज के रोगियों को गर्भधारण करने के लिए इंसुलिन के स्तर सामान्य बनाये रखना जरूरी है. शोधों से यह बात सामने आयी है कि टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित महिला के वजन बढ़ने का खतरा अधिक होता है.

तीन से छह महीने पहले करें प्लानिंग
टाइप-1 डायबिटीज होने की स्थिति में गर्भधारण करने और डायबिटीज को नियंत्रित करने की योजना तीन से छह महीने पहले शुरू कर देनी चाहिए. गर्भधारण से पूर्व डॉक्टर से हर छोटी-से-छोटी चीजें पूछ कर उन पर अमल करें. इससे गर्भधारण करने के बाद पहले आठ मुश्किल हफ्ते में परेशानी नहीं आती है और गर्भस्थ शिशु का विकास सही रूप से होता है.

यदि योजना पर अमल करने से पूर्व ही आपको प्रेग्नेंसी का पता चलता है, तो चिंता करने की बजाय आगे की योजना बनाएं. डॉक्टर की सलाह पर अपना रूटीन तैयार करें. इसमें डाइट और व्यायाम का विशेष ख्याल रखें. खुद से जीवनशैली या व्यायाम में परिवर्तन न करें.

इन्हें अधिक खतरा : यदि उम्र 30 से अधिक हो. परिवार में टाइप-2 डायबिटीज की हिस्ट्री रही हो या फिर पहली गर्भावस्था में जेशटेशनल डायबिटीज की शिकायत रही हो.

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