25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

एंडोमेट्रिओसिस इलाज में देरी से बिगड़ सकती है बात

ऐसी कितनी ही महिलाएं होंगी, जिनकी शादीशुदा जिंदगी अंदरूनी रोग की वजह से नरक बन चुकी है. वहीं, मां न बन पाने के कारण कई तरह के ताने भी सुनने पड़ते हैं, मगर कितने लोग (पुरुष) ऐसे हैं, जो ऐसी समस्याओं के पीछे छिपे एक स्त्री के दर्द को महसूस कर सकते हैं. इसी दर्द […]

ऐसी कितनी ही महिलाएं होंगी, जिनकी शादीशुदा जिंदगी अंदरूनी रोग की वजह से नरक बन चुकी है. वहीं, मां न बन पाने के कारण कई तरह के ताने भी सुनने पड़ते हैं, मगर कितने लोग (पुरुष) ऐसे हैं, जो ऐसी समस्याओं के पीछे छिपे एक स्त्री के दर्द को महसूस कर सकते हैं. इसी दर्द का नाम है- एंडोमेट्रिओसिस. डॉक्टर्स इसे लाइलाज नहीं बताते, मगर इसका पूर्णत: इलाज बहुत हद तक रोगी की अवस्था पर भी निर्भर करता है. इस पर पूरी जानकारी दे रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.

एंडोमेट्रिओसिस, महिलाओं में हाॅर्मोनल इम्बैलेंस के कारण होनेवाली ऐसी बीमारी है, जो दर्द, अनियमित मासिक धर्म के साथ बांझपन जैसी गंभीर समस्याओं को लेकर आती है. इसकी शुरुआत होने की कोई उम्र नहीं होती. हो सकता है मासिक धर्म के शुरू होने के साथ इसकी शुरुआत हो जाये या पहला बच्चा होने के बाद भी यह बीमारी हो सकती है. शुरू में पेल्विक पेन होने लगता है. दर्द बढ़ने के साथ मल या पेशाब त्यागने के दौरान भी काफी दर्द होता है. मासिक के दौरान दर्द और बढ़ जाता है.

एंडोमेट्रिओसिस की समस्या बढ़ने पर चेहरे पर भी कील-मुंहासे हो सकते हैं. स्किन को पोषण कम हो जाने के कारण वह भी रूखी-रूखी सी लगने लगती है. यह समस्या औसतन 15 साल से 45 साल की उम्र तक होती है. कई बार लड़कियों की समय पर शादी न होने से भी इस समस्या से दो-चार होना पड़ता है. वहीं, अगर शादी हो जाने के बाद यह समस्या सामने आये, तो स्थिति और भी बिगड़ जाती हैं. इसके पीछे बड़ा कारण है, महिलाओं में इसकी वजह से सेक्स के प्रति अनिच्छा और बांझपन.

सेक्स के प्रति अनिच्छा व बांझपन : अब समझनेवाली बात यह है कि आखिर इस रोग में सेक्स के प्रति अनिच्छा क्यों होती है. वैज्ञानिक नजरिये से देखें, तो इस रोग में एब्डॉमिनल कैविटी में डिपॉजिट यानी मासिक धर्म में निकलनेवाला मेंस्ट्रूअल ब्लड (Menstrual blood) शरीर से बाहर निकलने के बजाय अंदर ही अंदर स्प्लिट होकर आसपास के अंगों में जमने लगता है और गांठ का रूप लेने लगता है.

इन गांठों की वजह से आंतों में एक तरह का गाढ़ा और चिपचिपा भूरे रंग का तरल प्रदार्थ बनने लगता है. डॉक्टरों की भाषा में इसे ‘चॉकलेट सिस्ट’ कहते हैं. इस सिस्ट की वजह से सबसे पहले आंत और बच्चेदानी आपस में चिपक जाती हैं. वहीं, इसके बढ़ने पर ये रीढ़ ही हड्डी और फेफड़े तक फैल जाती हैं और अंग भी इसमें चिपक जाते हैं. यही वजह है कि मल-मूत्र त्याग के साथ सेक्स करने में भीषण दर्द होता है. ऐसे में पहली वजह तो यही होती है बच्चा पैदा करने में असमर्थता. अगर किसी तरह से संबंध बना पाना संभव हो भी जाये, तो बच्चेदानी में अंडे बन पाना मुमकिन नहीं होता. इसके आगे अगर कभी अंडे बन भी गये, तो ज्यादा समय तक वह अंडे ठहर नहीं पाते और गर्भपात की स्थिति आ जाती है.

जांच व उपचार : इस रोग से निबट पाना नामुमकिन तो नहीं, लेकिन मुश्किल जरूर है. बीमारी से जुड़े लक्षणों के सामने आते ही सबसे पहले डॉक्टर से संपर्क करें. इलाज कई तरह से संभव है, जो अलग-अलग स्टेज के अनुसार अपनाया जाते हैं. लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह देते हैं. जांच में स्थिति स्पष्ट होने पर इलाज शुरू होता है. स्थिति शुरुआत की है, तो दवाओें से दूर किया जा सकता है. वहीं अगर रोग सेकेंड लेवल तक पहुंच गया है, यानी चॉकलेट सिस्ट में आंतों के पास के कुछ अंग चिपकने शुरू हो गये हैं, तो दूसरे स्तर के इलाज का सहारा लेना होता है. यह इलाज है हार्मोनल ट्रीटमेंट. इसमें ऑपरेशन करके चॉकलेट सिस्ट को साफ किया जाता है. रोगी को सही होने में 15 से 25 दिन लगते हैं. वहीं, अगर स्थिति सेकेंड लेवल से भी ऊपर पहुंच चुकी हो, तो डॉक्टर्स सर्जरी की सलाह देते हैं. बातचीत : रूचि शर्मा, कानपुर

केस स्टडी

23 साल की उमा को कमर के निचले हिस्से में तेज दर्द रहता था. धीरे-धीरे दर्द पीठ व पीछे की ओर शरीर के निचले हिस्से में भी शुरू हो गया. मल त्यागने में भी उसे दर्द होने लगा था. यही नहीं, मासिक धर्म के समय तो दर्द झेल पाना भी मुश्किल हो गया. डॉक्टरी परामर्श पर अल्ट्रासाउंड कराया, तो आंतों और आसपास फैलती हुई एंडोमेट्रिओसिस की गांठें और सिस्ट नजर आयीं. डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी. सिस्ट ज्यादा होने के कारण दो बार ऑपरेशन करके सिस्ट को साफ करना पड़ा. फिलहाल अंदर बननेवाला सिस्ट तो साफ हो गया, लेकिन दोबारा यह समस्या न हो, इसके लिए तुरंत दवाएं शुरू कर दी गयीं. वहीं, ऐसे कुछ मामलों में डॉक्टर तुरंत शादी को बड़ा उपचार मानते हैं. ऐसा मानना है कि शादी के बाद संबंध बनाने से समस्या से निजात मिलने के आसार बढ़ जाते हैं.

बांझपन का कारण हो सकता है एंडोमेट्रिओसिस

एंडोमेट्रिओसिस एक पेनफुल डिसऑर्डर है, जिसमें यूट्रस की लाइनिंग (एंडोमेट्रियम) यूट्रस के बाहर ग्रोथ करने लगती है. आम तौर पर एंडोमेट्रियम पीरियड्स के दौरान महिलाओं के वजाइना से बाहर निकल जाता है. हालांकि, एंडोमेट्रिओसिस के कंडिशन में यह यूट्रस के बाहर यानी फेलोपियन ट्यूब, ओवरी, पेल्विस और बड़ी आंत में फैलने लगता है. यह एंडोमेट्रियम यहां धीरे-धीरे जमकर यूट्रस से जुड़े अन्य अंगों को आपस में जोड़ने लगता है और फाइब्रोसिस का रूप ले लेता है. प्रमुख लक्षणों में पीरिड्स के समय अत्यधिक दर्द, सेक्सुअल इंटरकोर्स के समय दर्द, अत्यधिक ब्लीडिंग, गर्भधारण करने में परेशानी आदि. यह स्थिति इसलिए भी खतरनाक होती है, क्योंकि कुछ महिलाओं में अधिक परेशानी होने के बाद भी कोई लक्षण नहीं दिखता, वहीं कुछ में शुरुआती अवस्था में ही अत्यधिक दर्द होता है. यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि एंडोमेट्रियम टिश्यू का लोकेशन क्या है, यानी वह किस-किस भाग पर और कितनी मात्रा में जाकर जमा हुआ है.

यदि कारणों की बात करें, तो इस पर शोध हो रहा है, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि पीरियड‍्स के दौरान होनेवाली ब्लीडिंग की दिशा उल्टी हो जाने के कारण एंडोमेट्रियम फेलोपियन ट्यूब, ओवरी और पेल्विस आदि में फैल जाता है. कई बार इंडक्शन थेरेपी के दौरान एब्डनोमेन का सेल यूट्रस के सेल में कंवर्ट हो जाता है, इस कारण भी एंडोमेट्रिओसिस होने की आशंका होती है. यह गर्भधारण करने की उम्र तक ही होता है, यानी पीरियड्स शुरू होने से लेकर खत्म होने तक. वैसी लड़कियां, जिन्हें समय से पूर्व पीरियड्स शुरू हो जाएं (10-12 साल की उम्र) या देर से बंद हो (48 के बाद) उन्हें भी एंडोमेट्रिओसिस होने की आशंका होती है. अधिक दुबली लड़कियों को और जिनके शरीर में एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की अधिकता हो, उन्हें भी यह रोग हो सकता है. कई बार समय पर इलाज न होने पर ओवेरियन कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है.

लैप्रोस्कोपी से होती है पहचान

पेल्विक पेन होने पर जब गायनोकोलॉजिस्ट अल्ट्रासाउंड कराती हैं, तो छोटे-छोटे दाग दिखते हैं. हालांकि, पूर्ण रूप से इस रोग का पता लगाने के लिए लैप्रोस्कोपी करना पड़ता है. इसमें पेट में एक छोटा-सा छेद कर लैप्रोस्कोपिक कैमरा डाल कर एंडोमेट्रियम टिश्यू के लोकेशन, साइज और उसकी स्थिति का पता लगाया जाता है. इससे कंफर्म हो जाता है कि कितने एंडोमेट्रियम टिश्यू किस-किस अंग पर जाकर जम गये हैं और किन अंगों को आपस में जोड़ दिया है.

ट्रीटमेंट : दो तरह की ट्रीटमेंट या इलाज होते हैं. एक मेडिकल और दूसरी सर्जरी. मेडिकल ट्रीटमेंट के दौरान हॉर्मोनल कॉन्ट्रासेप्टिक का उपयोग किया जाता है, जिससे कि पीरियड्स छह माह तक नहीं होता है. यह दवाई आम तौर पर बर्थ कंट्रोल के लिए दी जाती है, पर वह कभी-कभी लेते हैं, पर इस मामले में इसे छह माह तक लगातार दिया जाता है. इलाज शुरुआत में ही कारगर है. दूसरा है गोनैडोट्रोपिन रीलिजिंग हॉर्मोन (Gn-RH), इसे इन्जेक्शन के रूप में दिया जाता है. इससे शरीर में फीमेल हॉर्मोन की कमी आती है और पीरियड्स आने बंंद हो जाते हैं. इससे एंडोमेट्रियम टिश्यू छोटे होने लगते हैं और धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं. इसमें मरीज की स्थिति मेनोपॉज की हो जाती है. छह माह से साल भर के बाद इस इन्जेक्शन को बंंद कर दिया जाता है. तीन-चार माह बाद पीरियड्स फिर से शुरू हो जाते हैं और महिला फिर से गर्भधारण करने की स्थिति में आ जाती है. एक अन्य थेरेपी भी है, जिसे प्रोजेस्टिन थेरेपी कहते हैं. इसे दो तरह से उपयोग में लाया जा सकता है. पहला है आइयूडी डिवाइस जो बाजार में Mirena नाम से उपलब्ध है, को यूट्रस के अंदर डालकर छोड़ दिया जाता है और दूसरा है कॉन्ट्रिसेप्टिव इन्जेक्शन (Depo-Provera) है. बातचीत व प्रस्तुति : सौरभ चौबे

क्या हैं प्रमुख लक्षण

  • योनी क्षेत्र में ऐंठन और दर्द, विशेष रूप से मासिक धर्म से पहले व उसके दौरान
  • सेक्स के दौरान पीठ के निचले हिस्से में दर्द
  • मल त्यागने या पेशाब त्यागने के दौरान होता है दर्द
  • बांझपन, गर्भपात, चेहरे पर मुंहासे
  • चेहरे पर बालों का उगना
  • तेजी से वजन कम होना
  • दर्द के कारण बुखार आना
  • जी मिचलाना और उल्टियां होना

समाज के लिए बड़ा उदाहरण
इसमें शारीरिक कष्ट के साथ कई महिलाओं को अज्ञानता के कारण सामाजिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती है. इसलिए इस बीमारी के बारे में जागरूकता जरूरी है. यदि लोग एंडोमेट्रिओसिस के बारे में जान लें, तो वे अपनी पत्नी के दर्द और सेक्स के प्रति अनिच्छा को समझ सकते हैं. साथ ही न सिर्फ समय पर इलाज करा सकते हैं बल्कि भावनात्मक तौर पर भी उन्हें सहारा दे सकते हैं. मशहूर मॉडल पद्मलक्ष्मी, जो इस रोग से पीड़ित हैं, ने मशहूर लेखक सलमान रुश्दी से शादी की थी. इस समय वह एंडोमेट्रिओसिस से पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए एक एनजीओ भी चला रही हैं.

मन में आनेवाले सवालों के जवाब
क्या है पहला कदम?
ऐसे में इसे रोक पाना मुश्किल है. हालांकि, मासिक धर्म के समय पेट और निचले हिस्सों में दर्द के शुरुआती लक्षण मिलें, तभी डॉक्टर से सलाह लें. सेकेंड-थर्ड स्टेज तक स्थिति ज्यादा घातक हो जाती है.

इलाज का सक्सेस रेट?
इलाज के बाद पूरी तरह से सही होने के चांसेस 50-50 हैं. अगर दवाएं और सर्जरी सूट कर गयी, तो ठीक, वरना उम्र बढ़ने के साथ दवाओं से इसे सिर्फ कंट्रोल किया जा सकता है. वहीं, बांझपन की स्थिति में टेस्ट ट्यूब बेबी का सहारा लिया जा सकता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि रोग में शरीर के अंदर बननेवाले प्रदार्थ के ज्या‍दा फैलने से यह प्रेग्नेंसी के लिए मुख्य रास्ते फेलोपियन ट्यूब्स को ब्लॉक कर देता है. सर्जरी में इन ट्यूब्स को साफ कर खोलने की कोशिश की जाती है, लेकिन न खुल पाने पर बांझपन की स्थिति आ जाती है.

अब तक रिसर्च में क्या?
इसे लेकर दुनियाभर में रिसर्च चलते रहते हैं और असर कारक दवाएं और इन्जेक्शं‍स सामने आते रहते हैं, लेकिन 100 फीसदी सफलता अभी भी नहीं मिली. हां, कारगर उपचार के तौर पर एक इन्जेक्शन है, जिसकी कीमत 5 से 7 हजार रुपये है. 21-21 दिनों के अंतराल पर 3-6 इन्जेक्शंस मरीज को देने होते हैं.

थर्ड स्टेज में सर्जरी क्यों?
इस स्थिति में श्रोणि अंगों में बन चुकी गांठों को खोलने की कोशिश की जाती है. ट्यूब्स को अलग-अलग करके उन्हें साफ किया जाता है. ऐसे में यह पीड़िता के लिए काफी दर्दनाक होता है.

शादी क्यों है उपाय?
इस रोग में बांझपन बड़ी समस्या है. डॉक्टर जब थर्ड स्टेज में सर्जरी करते हैं, तो ट्यूब्स के खुलने के बाद पहली सलाह होती है कि जल्द से जल्द पीड़िता की शादी हो जाये, ताकि वह बेबी कंसीव कर सके. वरना फिर से ट्यूब्स ब्लॉक होने की स्थिति में प्रेग्नेंसी और भी ज्यादा जटिल हो सकती है.

कई कारणों से हो सकता है पेल्विक पेन

Dysmenorrhea महिलाओं में पीरियड्स के दौरान होनेवाला तेज दर्द है. इसे हम मासिक के दौरान होनेवाले दर्द के नाम से जानते हैं. इसमें मुख्य रूप से पेल्विक एरिया में असहनीय दर्द होता है.

मासिक अनियमितता

Dysmenorrhea के प्रमुख कारणों में अनियमित मासिक चक्र सबसे पहला है. यह कई कारणों से हो सकता है.

एंडोमेट्रिओसिस

एंडोमेट्रिओसिस की स्थिति में यूट्रस के बाहर एंडोमेट्रियम का विकास होने लगता है, जो Dysmenorrhea का प्रमुख कारण है.

फाइब्रॉइड्स

महिलाओं के यूटस में हॉर्मोनल या अन्य कारणों से फाइब्रॉइड उत्पन्न होने लगते हैं, जो नॉन कैंसरस होते हैं, पर आगे चल कर यूट्रस के कैंसर का कारण बन सकते हैं.

बांझपन

कई बार महिलाओं को विभिन्न कारणों से गर्भधारण करने में परेशानी होती है, जिसके कारण पेल्विक एरिया में पेन बढ़ जाता है.

पेल्विक एरिया में सूजन

पेल्विक एरिया यानी यूट्रस, ओवरी और सविर्क्स में किसी कारण यदि सूजन हो जाये, तो Dysmenorrhea हो सकता है.

डिप्रेशन

डिप्रेशन महिलाओं में शारीरिक व मानसिक दोनों कारणों से हो सकता है. यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है.

स्ट्रेस या तनाव
कई बार तनाव के कारण भी महिलाओं को पेल्विक एरिया में दर्द हो सकता है. इससे बचने के लिए मेडिटेशन अच्छा उपाय है.

फाइब्रोमाइलगिया

यह एक क्रॉनिक डिसऑर्डर है, जो महिलाओं के मांसपेशियों में दर्द का कारण हो सकता है. हालांकि, इस राेग कारण अभी तक पता नहीं चल सका है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें