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ये है अस्थमा मुद्रा, दमा मरीजों के लिए लाभदायक

मां ओशो प्रिया संस्थापक, ओशोधारा सोनीपत दमा श्वसन नली में म्यूकस जमा हो जाने के कारण होता है, जिसके कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है और सूजन के कारण श्वसन नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं. इस कारण रोगी की सांस की लंबाई घट जाती है और सीने में जकड़न महसूस होता है. सर्दी, धूल-मिट्टी […]

मां ओशो प्रिया
संस्थापक, ओशोधारा
सोनीपत
दमा श्वसन नली में म्यूकस जमा हो जाने के कारण होता है, जिसके कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है और सूजन के कारण श्वसन नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं. इस कारण रोगी की सांस की लंबाई घट जाती है और सीने में जकड़न महसूस होता है.
सर्दी, धूल-मिट्टी व प्रदूषण के कारण इस रोग में परेशानी बढ़ जाती है. यह रोग शरीर की गर्मी और शीतलता के बीच के असंतुलन का परिणाम है. सुबह-शाम खुली हवा में 15-15 मिनट का अनुलोम-विलोम इस असंतुलन को ठीक करता है. अस्थमा रोगी को हमेशा दायीं करवट ही आराम करना चाहिए. गर्म तासीरवाली चीजों का सेवन करना चाहिए, बशर्ते कि बवासीर की समस्या न हो.
दमे के रोगी को चाहिए कि वह एक-एक घंटे पर बायीं नासिका को बंद करे और सिर्फ दायीं नासिका से दो-तीन मिनट के लिए सांस ले और छोड़े. दमा के रोगियों के लिए लिंग मुद्रा, अपानवायु मुद्रा, प्राण मुद्रा और सूर्य मुद्रा भी लाभकारी है, सबसे असरदार है- अस्थमा मुद्रा. पिछले अंक में हमने जिस श्वसनी मुद्रा का जिक्र किया है, यदि उसके बाद अस्थमा मुद्रा की जाये तो लाभ तुरंत होता है.
कैसे करें : दोनों हाथों की मध्यमा उंगलियों को मोड़ कर उनके नाखूनों को आपस में मिला लें. शेष उंगलियों को सीधा और एक-दूसरे से थोड़ा अलग रखें.
कितनी देर : 5-5 मिनट पांच बार.

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