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पेट रोगों में गरुड़ मुद्रा है फायदेमंद

ओशो सिद्धार्थ औलिया, योग विशेषज्ञ, ओशोधारा सोनीपत पेट संबंधी रोग हृदय और रक्त विकार का भी कारण बनते हैं. पेट संबंधी सभी रोगों में गरुड़ मुद्रा अत्यंत उपयोगी है. इससे शरीर में ऊर्जा और प्राणशक्ति का संतुलन स्थापित होता है. यह पेट के निचले हिस्से से लेकर कंधे तक की सभी कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों […]

ओशो सिद्धार्थ औलिया, योग विशेषज्ञ, ओशोधारा सोनीपत

पेट संबंधी रोग हृदय और रक्त विकार का भी कारण बनते हैं. पेट संबंधी सभी रोगों में गरुड़ मुद्रा अत्यंत उपयोगी है. इससे शरीर में ऊर्जा और प्राणशक्ति का संतुलन स्थापित होता है. यह पेट के निचले हिस्से से लेकर कंधे तक की सभी कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों को ऊर्जा प्रदान करता है. इससे पूरे शरीर में रक्तसंचार तेज होता है. अगर इस मुद्रा को लगाकर हाथों को नाभि के नीचे स्वाधिष्ठान चक्र पर रखा जाये, तो महिलाओं को मासिक धर्म के दिनों में लाभ होगा तथा उन्हें माहवारी के दौरान होनेवाले दर्द से भी छुटकारा मिलेगा. इस मुद्रा में गहरे श्वास के साथ हथेली को नीचे से ऊपर की ओर ले जाने से शरीर के सभी हिस्से स्वस्थ रहते हैं.
कैसे करें : अपनी बायीं हथेली को ऊपर की ओर रखते हुए, उस पर दायीं हथेली को इस प्रकार रखें कि दोनों हाथों की उंगलियां एक-दूसरे को ढकें नहीं. इस स्थिति में दस बार गहरी सांस लें और छोड़ें. इसके बाद हथेलियों को नाभि पर ले आएं और फिर दस बार गहरी सांस लें और छोड़ें. फिर, हथेलियों को नाभि के और ऊपर के हिस्से पर रखें और पुनः 10 बार लंबी सांस लें-छोड़ें. अंत में, यही प्रक्रिया अपनी हथेलियों को सीने पर रखकर दोहराएं. इसके बाद हथेलियों को खोल दें और बायीं हथेली को सीने पर और दायीं हथेली को बायें कंधे की दिशा में रखते हुए पुनः 10 बार गहरी सांस लें-छोड़ें. पूरी प्रक्रिया बमुश्किल चार मिनट में पूरी हो जाती है.
कितनी देर : दिन में तीन बार.

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