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आपके बच्चों को मोटा बना रहे फ्लोर क्लीनर्स, जानें कैसे

नेशनल कंटेंट सेल-रिसर्च: कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में छपी रिपोर्ट हम सभी अपने घर के फर्श को चमकदार बनाये रखना चाहते हैं. इसके लिए बाजार में मौजूद तमाम तरह के फ्लोर क्लीनर्स से घरों की सफाई करते हैं, ताकि घर चमके भी और महके भी. लेकिन, हाल ही में हुई एक रिसर्च के मुताबिक, फ्लोर […]

नेशनल कंटेंट सेल
-रिसर्च: कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में छपी रिपोर्ट

हम सभी अपने घर के फर्श को चमकदार बनाये रखना चाहते हैं. इसके लिए बाजार में मौजूद तमाम तरह के फ्लोर क्लीनर्स से घरों की सफाई करते हैं, ताकि घर चमके भी और महके भी. लेकिन, हाल ही में हुई एक रिसर्च के मुताबिक, फ्लोर क्लीनर्स बच्चों के मोटापे की वजह बन रहे हैं.

जी हां, शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि घरों में साफ-सफाई के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले कीटाणुनाशक और अन्य केमिकल बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ा सकती हैं. एक नये अध्ययन में दावा किया गया है कि फिनायल, हारपिक, लाइजोल और इस तरह के अन्य उत्पाद बच्चों के ‘गट माइक्रोब्स’ (मानव के पाचन तंत्र में रहने वाले सूक्ष्म जीव) में बदलाव कर बच्चों में वजन बढ़ने की प्रवृत्ति को बढ़ा सकते हैं.

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कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में इस बारे में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है. इस अध्ययन के लिए कनाडा की अल्ब्रेटा यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने 3-4 महीने की आयु के 757 शिशुओं के ‘गट माइक्रोब्स’ का विश्लेषण किया. अध्ययन के दौरान घरों में इस्तेमाल किये जाने वाले कीटाणुनाशक, सफाई सामग्री व अन्य पर्यावरण हितैषी उत्पाद के प्रभावों का विश्लेषण करते हुए बच्चों का वजन मापा गया. पाया गया कि घरों में कीटाणुनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल किये जाने से तीन-चार माह की आयु वाले बच्चों के ‘गट माइक्रोब्स’ में बदलाव आया.

डिटर्जेंट और अन्य उत्पाद भी खतरनाक

अध्ययन के दौरान घरों में इस्तेमाल किये जाने वाले कीटाणुनाशक, सफाई सामग्री और अन्य पर्यावरण हितैषी उत्पाद के प्रभावों का विश्लेषण करते हुए बच्चों का वजन मापा गया. डिटर्जेंट और सफाई में इस्तेमाल होने वाले अन्य उत्पादों का भी बच्चों पर ऐसा ही प्रभाव पड़ा.

हफ्ते में एक बार इस्तेमाल भी हानिकारक
यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा में पैड्रियाटिक की प्रो अनिता कोजीरस्कीज ने बताया कि घरों में उपयोग होनेवाले कीटाणुनाशक का हफ्ते में एक बार भी प्रयोग हानिकारक है. इससे तीन-चार महीने के बच्चों में ‘लैक्नोस्पीरेसी’ माइक्रोब पैदा हो जाता है. यह एक नन-पैथोजेनिक बैक्टीरिया है जिसका आसानी से पता नहीं लगाया या सकता. ऐसे बच्चे जब तीन साल के होते हैं, तब इनका बॉडी मास इंडेक्स अन्य बच्चों की तुलना में अधिक होता है.

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