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पूर्णत: ठीक हो सकता है स्टेज जीरो ब्रेस्ट कैंसर

डॉ तरंग कृष्णा ऑन्कॉलोजिस्ट, कैंसर हीलर सेंटर पीतमपुरा, दिल्ली आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि है, जो ब्रेस्ट के किसी भी हिस्से में हो सकती है. यह निप्पल में दूध ले जानेवाली नलियों, दूध उत्पन्न करनेवाले छोटे कोशों और ग्रंथिहीन टिश्यूज में भी हो सकता है. यह महिलाओं की मृत्यु का दूसरा […]

डॉ तरंग कृष्णा
ऑन्कॉलोजिस्ट, कैंसर हीलर सेंटर
पीतमपुरा, दिल्ली
आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि है, जो ब्रेस्ट के किसी भी हिस्से में हो सकती है. यह निप्पल में दूध ले जानेवाली नलियों, दूध उत्पन्न करनेवाले छोटे कोशों और ग्रंथिहीन टिश्यूज में भी हो सकता है. यह महिलाओं की मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है.
स्टेज जीरो या जीरो स्टेज ब्रेस्ट कैंसर का अर्थ यह नहीं कि आपको ब्रेस्ट कैंसर हो ही गया है, बल्कि यह ब्रेस्ट कैंसर का बहुत ही अर्ली स्टेज है. सामान्यत: नॉन-इनवेसिव स्टेज होने से इसके होने का पता ही नहीं चलता और इस अवस्था के साथ 93 से 95 प्रतिशत महिलाएं पांच वर्षों से तक या कई और और भी लंबा बेहद स्वस्थ जीवन जीने में समर्थ होती हैं.
जीरो स्टेज में कैंसर से प्रभावित कोशिकाएं स्तन ऊतकों के आस-पास रहती हैं, मगर दूध बनानेवाली नलिकाओं तक नहीं पहुंचतीं. इसी कारण लक्षणों का पता नहीं चलता और ब्रेस्ट कैंसर बढ़ता जाता है. अगर ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरुआती अवस्था यानी स्टेज जीरो में ही चल जाये, तो पूर्णत: इलाज करना आसान है.
ऑनकॉलोजिस्ट डॉ तरंग कृष्णा के अनुसार, चूंकि स्टेज जीरो ब्रेस्ट कैंसर बहुत छोटा और नॉन-इनवेसिव होता है, इसलिए पता लग पाना मुश्किल होता है.
शरीर के अन्य भागों में भी यह नहीं फैलता. इसमें किसी तरह की गांठ नहीं बनती है. अधिकांश मामलों में इसका पता बायोप्सी या किसी अन्य गांठ की जांच करते समय ब्रेस्ट-इमेजिंग टेस्ट के दौरान चलता है. स्टेज जीरो स्तन कैंसर असल में कैंसर का प्रकार नहीं है, बल्कि एक तरह की ग्रेडिंग है कि मरीज कैंसर से कितना दूर है. जबकि ब्रेस्ट कैंसर का इलाज दर्दनाक, महंगा और बेहद तनाव भरा है.
क्या हैं कारण : इस रोग का स्पष्ट कारण अभी तक पता नहीं लग पाया और न ही कोई विशेष लक्षण सामने आते हैं. जबकि आमतौर पर स्तन पर कोई गांठ-सी बन जाती है या निप्पल से स्त्राव होता है. पारिवारिक इतिहास, उम्र, मोटापा, उच्च स्तन घनत्व, बच्चे न होना, कम शारीरिक श्रम, ज्यादा शराब का सेवन, स्तन में बदलाव, मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं, गर्भनिरोधक गोलियां आदि इस कैंसर के लिए जिम्मेदार होती हैं.
40 वर्ष की आयु के बाद साल में एक बार मैमोग्राफी कराना सही कदम है. साथ ही खुद भी स्तनों का परीक्षण करते रहना चाहिए. ब्रेस्ट कैंसर लाइलाज नहीं है. अगर महिलाओं को इसके लक्षण शुरुआती दौर में ही पता लग जायें, तो निजात पाना बहुत आसान है. महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के प्रति शर्माने की जगह इसके बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए.
दो प्रकार का होता है स्टेज जीरो ब्रेस्ट कैंसर
1. डीसीआइएस (Stage 0 ductal carcinoma in situ) : यह एक नॉन इंवेसिव कैंसर है, जिसमें दूध बनाने वाली नलिकाओं में असामान्य कोशिकाएं पायी जाती हैं. डॉ. तरंग कृष्णा का कहना है कि अगर शुरुआत में ही इसका पता चल जाये तो इलाज संभव है. देर से पता चलने तक यह स्तन के आसपास के ऊतकों में फैल जाता है. महिलाओं में होने वाला ब्रेस्ट कैंसर 75 फीसदी इन्वेसिव डक्टल कार्सिनोमा ही होता है. डीसीआइएस के लिए सर्जरी ही एकमात्र इलाज है.
अगर स्तन के बहुत सारे हिस्सों में डीसीआइएस होता है, तो कैंसर को जड़ से बाहर निकालने के लिए मेस्टकटॉमी ही एकमात्र इलाज है. ब्रेस्ट रिमूव नहीं किये जाते हैं, तो उस स्थिति में डीसीआइएस के ब्रेस्ट-कंसर्विंग सर्जरी के बाद एक्सटरनल बीम रेडिएशन दी जाती है, ताकि दुबारा कैंसर न हो.
2. एलसीआइएस (Stage 0 Lobular carcinoma in situ) : यह तब होता है जब आसामन्य कोशिकाएं लोब्यूल्स में विकसित हो जाती हैं. ये कोशिकाएं कैंसर जनित नहीं होती हैं. लेकिन जिन महिलाओं में यह रह जाती हैं, उन्हें भविष्य में कैंसर होने का खतरा बना रहता है. इन महिलाओं को नियमित रूप से मैमोग्राफी कराते रहना चाहिए, साथ ही इन्हें हार्मोन थेरेपी मेडीकेशन (टेमोकक्सफिन) लेने की भी सलाह ली जाती है. एलसीआइएस को सामान्य रेडिएशन थेरेपी से ठीक नहीं किया जा सकता है.
सही साइज की ब्रा पहनें
अध्ययन के मुताबिक दस में से आठ महिलाएं ऐसी होती हैं, जो गलत ब्रा पहनने के कारण स्तन कैंसर का शिकार होती हैं. गलत ब्रा पहनने से आरामदायक महसूस नहीं करती हैं, जिसकी वजह से कंधे, बांह और बैक पेन की समस्या होती है. क्या आप जानती हैं कि आपके ब्रा का साइज हमेशा बदलता रहता है. जब भी आपका वजन बढ़ता या कम होता है, तो ब्रा का साइज भी बदल जाता है. इसलिए सही साइज का ब्रा ही इस्तेमाल करें.
ब्रेस्ट कैंसर का संबंध मोटापे से भी
उम्र और लंबाई के अनुपात में अधिक वजन होने से इसकी आशंका बढ़ जाती है. अगर आपका वजन मेनोपॉज होने के बाद बढ़ा है, तो समझिए खतरा बढ़ गया है. दरअसल, एडिपोज टिशू, जो मोटापे के लिए भी जिम्मेदार हैं, एस्ट्रोजन का उत्पादन भी करते हैं. शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा ही ब्रेस्ट कैंसर के लिए उत्तरदायी होती है. नियमित व्यायाम करने से वजन कम रहता है और ब्रेस्ट कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है. हर दिन कम से कम आधे घंटे तक एक्सरसाइज जरूर करें.
इनपुट : सुमन बाजपेयी, दिल्ली
खान-पान का ख्याल
स्वस्थ आहार का सेवन न करने से शरीर में पौष्टिक तत्वों की कमी हो जाती है, जो स्तन कैंसर का कारण हो सकती है. अनियमित खान-पान, एल्कोहल और स्मोकिंग की आदतों के कारण शहरी महिलाएं ज्यादा ग्रस्त हो रही हैं. खानपान में कुछ चीजों को शामिल करके आप खतरे को कम कर सकती हैं, जैसे- विटामिन-सी युक्त फल, जैसे संतरा, नीबू आदि.
बीटा कैरोटीन व प्लांट केमिकल. गाजर, चुकंदर, टमाटर को सलाद के रूप में प्रयोग करें. प्याज और लहसुन का सेवन जरूर करें. इनमें मौजूद सल्फर, ट्यूमर की ग्रोथ कम करने में सहायक होता है. विशेषज्ञों के अनुसार, अगर आप शराब, बियर या मिक्स्ड ड्रिंक पीती हैं, तो आप ब्रेस्ट कैंसर का शिकार आसानी से बन सकती हैं.
स्वयं परीक्षण करें
ध्यान दें कि कहीं आपके स्तनों में गांठ या उसमें दर्द की समस्या तो नहीं. स्तनों का जरूरत से ज्यादा कठोर होना, उनमें बेवजह दर्द होना, निप्पल से तरल पदार्थ का स्त्राव, आकार में परिवर्तन या जलन होने पर डॉक्टर से जरूर संपंर्क करें.
हर माह मासिक धर्म के एक सप्ताह के बाद अपने ब्रेस्ट की स्वयं जांच करें. अपनी गाइनेकोलॉजिस्ट से घर में ब्रेस्ट परीक्षण की सही तकनीक सीखें. 20 से 40 साल की उम्र के दौरान हर साल डॉक्टर के पास जाकर एक बार जांच अवश्य कराएं, ताकि ब्रेस्ट कैंसर का पता जल्द चल सके. 40 साल की उम्र के बाद तीन साल में एक बार मैमोग्राम अवश्य कराएं.

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