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इंजीनियरों का मुहल्ला पटवा टोली हो रहा आबाद

नीरज कुमार, गया : पितृपक्ष मेले के साथ-साथ कई अन्य क्षेत्रों में भी गयाजी यानी मोक्षधाम की ख्याति देश ही नहीं, भारत के कई पड़ोसी देशों में भी विख्यात है. अगरबत्ती उद्योग, केसरिया पेड़ा का उद्योग, तिलकुट उद्योग सहित कई अन्य क्षेत्रों के कारण गयाजी का नाम देश ही नहीं, विदेशों में लोगों के बीच […]

नीरज कुमार, गया : पितृपक्ष मेले के साथ-साथ कई अन्य क्षेत्रों में भी गयाजी यानी मोक्षधाम की ख्याति देश ही नहीं, भारत के कई पड़ोसी देशों में भी विख्यात है. अगरबत्ती उद्योग, केसरिया पेड़ा का उद्योग, तिलकुट उद्योग सहित कई अन्य क्षेत्रों के कारण गयाजी का नाम देश ही नहीं, विदेशों में लोगों के बीच स्थापित है. वहीं, दूसरी तरफ भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली का जिला मुख्यालय होने का भी गयाजी को गौरव प्राप्त है.

यह शहर फल्गु नदी के तट पर बसा है. इसी नदी के पूर्वी तट पर बसे मानपुर प्रखंड का छोटा सा मुहल्ला, जिसे पटवाटोली के नाम से जाना जाता है. मानपुर का यह मुहल्ला कर्णभेदी खट-खटा-खट की आवाज के लिए जाना जाता है, जहां दिन-रात हैंडलूम व पावरलूम चलते रहते हैं. अब हैंडलूम ताे लगभग पूरी तरह समाप्त हाे गया.
कपड़ा बुनाई का काम अब पावरलूम से किया जाता है. यह क्षेत्र पहले भी बिहार का मिनी मैनेचेस्टर के नाम से जाना जाता था. इस पटवा टाेली की पहचान कई क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्तर पर है. इस पटवाटोली में बुनकर उद्योग व पावर लूम स्थापित है. पावरलूम से उत्पादित कपड़े देश के अधिकतर राज्यों में बड़े पैमाने पर बेचे जा रहे हैं. इस उद्योग से करीब 200 से अधिक बुनकर परिवार के लोग जुड़े हैं.
इन परिवारों का मुख्य पेशा पावरलूम से वस्त्रों का उत्पाद तैयार करना है.यदि यह वस्त्र उद्योग यहां नहीं होता, तो देश-विदेश से पितृपक्ष मेला में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्धकर्म, पिंडदान व तर्पण के उद्देश्य से आनेवाले श्रद्धालुओं के धोती, गमछा व चादर के लिए उन्हें काफी कीमत चुकानी पड़ सकती थी.
इस पावरलूम के होने से पिंडदानियों को यह वस्त्र उचित दाम में सुलभ हो रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ इस पटवा टोली को देश को अधिक इंजीनियर देने का भी गौरव प्राप्त है. स्थानीय जानकारों के अनुसार बीते करीब चार दशकों में पटवा टोली ने एक हजार से अधिक इंजीनियर देश को दिया है.
इस उपलब्धि के कारण भी गयाजी के साथ-साथ पटवा टोली की भी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बन गयी है.सरकारी आंकड़ों के अनुसार बीते वर्ष की तुलना में इस साल पितृपक्ष मेले में तीर्थयात्रियों के आने की संख्या में करीब 20 प्रतिशत इजाफा की उम्मीद है. इस वर्ष पितृपक्ष मेले की समाप्ति तक करीब सात लाख पिंडदानियाें के आने की संभावना जतायी जा रही है.
श्राद्ध कर्म के निमित्त गया आने वाले सभी श्रद्धालु वैदिक, आध्यात्मिक व सनातनी धर्म की परंपरा का निर्वहन करते हुए कर्मकांड को पूरा करते हैं. इस विधान के तहत श्राद्धकर्म व पिंडदान का कर्मकांड के लिए सभी पिंडदानियों को कम-से-कम एक गमछा, एक धोती व एक चादर की जरूरत होती है. इसके अलावा अगर सेजिया दान करते हैं, ताे कपड़ाें की संख्या और बढ़ जाती है.
इसमें ताेशक व रजाई भी समाहित हाेता है, जिसके कपड़े भी पटवा टाेली के ही हाेते हैं. कर्मकांड के उपयोग में आनेवाले इन वस्त्रों की खरीदारी में श्रद्धालु एक आंकड़े के अनुसार इस वर्ष करीब 20 करोड़ रुपये खर्च करेंगे. इस साल पितृपक्ष मेले में गमछा, धोती व चादर का 20 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होने की संभावना है.
पटवाटोली पावरलूम उद्योग से जुड़े कारोबारियों के अनुसार इस पावरलूम उद्योग के तैयार गमछे 30 रुपये से लेकर 80 रुपये के बीच बेचे जाते हैं. पिंडदानी अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार इनकी खरीदारी करते हैं. औसतन देखा जाय तो सात लाख श्रद्धालु 40 रुपये के गमछे खरीदते हैं, तो कुल 2. 80 करोड़ रुपये हाेंगे.
धोती की कीमत कारोबारियों द्वारा 60 रुपये से 300 रुपये के बीच प्रति पीस बतलायी गयी है. इसके हिसाब से औसतन प्रति यात्री यदि एक सौ रुपये की धोती खरीदते हैं, तो कुल सात करोड़ रुपये के धोती के कारोबार हाेंगे. वहीं, चादर की कीमत 70 रुपये से 350 रुपये के बीच बतलायी गयी है. यदि प्रति पिंडदानी डेढ़ सौ रुपये की धोती खरीदतें है, तो करीब 10.5 करोड़ रुपये का कारोबार इस मद में हाेगा.
पितृपक्ष मेले में अंटी चादर व झरना चादर की सबसे अधिक मांग होती है. इसके साथ मोटा गमछा व खादी गमछा की भी बड़े पैमाने पर बिक्री होती है.
फलदारी प्रसाद, कपड़ा मिल मालिक
पुरोहित को चढ़ावा में दिये गये वस्त्रों को पुनः बाजार में बेचे जाने से पिछले कई वर्षाें से इन कपड़ाें के कारोबार पर असर पड़ रहा है. फिर भी बिक्री काफी है.
अशोक पटवा, कपड़ा मिल मालिक
पटवाटोली ने दिये एक हजार से अधिक इंजीनियर
दाे दशकों में पटवाटोली से एक हजार से अधिक इंजीनियर देश ही नहीं विदेशों में भी काम कर गयाजी को गौरवान्वित कर रहे हैं. एक सौ से अधिक इंजीनियर विदेशों में काम कर रहे हैं.
दो आइएएस भी हुए हैं, जिनका नाम श्याम राज व पितांबर बताया गया है. दो डीएसपी भी पटवा टोली से हुए हैं, जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में पदस्थापित हैं. इस क्षेत्र से 10 से अधिक डॉक्टर ही बने हैं जो देश के अलग-अलग सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सेवा लोगों को दे रहे हैं.

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