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बिहार के गया का हाल: पांच साल बाद भी प्रदेश की इन पांच लोकसभा सीटों पर बदला कुछ भी नहीं

कंचनगया: नजरिया जरूर बदला पर आइना वही रह गया. जी हां मैं बात कर रहा हूं गया, औरंगाबाद, नवादा, सासाराम व काराकाट संसदीय सीट की. वर्ष 2014 के संसदीय चुनाव में भी एनडीए के उम्मीदवार ने ही जीत दर्ज की थी और अब 2019 में भी एनडीए के ही उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. […]

कंचन
गया:
नजरिया जरूर बदला पर आइना वही रह गया. जी हां मैं बात कर रहा हूं गया, औरंगाबाद, नवादा, सासाराम व काराकाट संसदीय सीट की. वर्ष 2014 के संसदीय चुनाव में भी एनडीए के उम्मीदवार ने ही जीत दर्ज की थी और अब 2019 में भी एनडीए के ही उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. लेकिन, तब मुखौटा भाजपा थी और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी के संकल्प हैं. इस बार विकास, राष्ट्रवाद व देश की सुरक्षा यही मुख्य मुद्दे थे, जिस पर जनता ने प्रचंड जीत दिलायी है. कहीं काेई क्षेत्रीय मुद्दे. सामाजिक या फिर जातीय समीकरण नहीं रहे.

गया संसदीय सीट से दो बार भाजपा के हरि मांझी सांसद रहे. इस बार एनडीए के सीट बंटवारे में भाजपा की जगह जदयू को यह सीट मिली आैर जदयू से विजय मांझी ने हिंदुस्तानी अवाम माेर्चा (सेक्यूलर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी काे पटखनी दे दी. जीतन राम मांझी 2014 में भी गया संसदीय सीट से जदयू की टिकट पर चुनाव लड़े थे आैर तीसरे नंबर पर रहे थे. उधर आैरंगाबाद संसदीय सीट पर फिर काेई परिवर्तन नहीं हुआ. सुशील कुमार सिंह 2009 में जदयू से ताे 2014 में भाजपा से जीत कर संसद पहुंचे थे. इस बार हैट्रिक मारते हुए वह तीसरी बार जीत दर्ज करते हुए संसद पहुंच रहे हैं. उनके प्रतिद्वंद्वी रहे हम के उपेंद्र प्रसाद काे हार का सामना करना पड़ा. नवादा संसदीय क्षेत्र में भी जहां 2009 में भाेला सिंह भाजपा से सांसद रहे ताे 2014 में गिरिराज सिंह काे भाजपा ने माैका दिया और उन्हाेंने जीत दर्ज की थी. एनडीए के सीट बंटवारे में इस बार नवादा सीट लाेक जनशक्ति पार्टी के खाते में गयी आैर यहां से चंदन कुमार सिंह उम्मीदवार बनाये गये.

उन्होंने राजद की विभा देवी काे मात दिया और जीत दर्ज की. इस क्षेत्र के लिए चंदन नये उम्मीदवार थे जिन पर मोदी फंडा का जादू चला. सासाराम संसदीय क्षेत्र में छेदी पासवान ने भी दूसरी बार जीत दर्ज की. 2014 में भी वह भाजपा से जीते थे और इस बार भी भाजपा से ही जीत दर्ज किये. लेकिन, तब भाजपा लहर और अब मोदी लहर ने उन्हें संसद तक पहुंचाया. काराकाट संसदीय सीट में भी कुछ बदला नहीं है. सिर्फ चेहरा बदल गया. 2009 में जदयू से चुनाव जीते महाबली सिंह 2014 में तीसरे नंबर पर रहे थे. 2014 में एनडीए में शामिल रहे रालाेसपा के उपेंद्र कुशवाहा ने जीत दर्ज की थी और राजद की कांति सिंह दूसरे नंबर पर रही थीं.

इस बार पुन: वह जदयू से उम्मीदवार हैं, जिन्होंने जीत दर्ज की है. 2014 में जदयू एनडीए के साथ नहीं थी. इस बार एनडीए में है, जिसका लाभ महाबली सिंह को मिला. कुल मिलाकर एनडीए 2014 में भी इन्हीं पांचों सीटों पर थी और इस बार भी. लेकिन, तब भाजपा फोकस थी और इस बार मोदी फैक्टर है. या यूं कह लें कि मोदी वेव है. इस बार विकास, राष्ट्रवाद व देश की सुरक्षा थे मुख्य मुद्दे, जिन पर जनता ने एनडीए के घटक दलों को प्रचंड जीत दिलायी है.

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