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सीओपीडी में संतुलित आहार जरूरी, हेल्दी फैट को भी करें शामिल

रूपाली कुमारी चीफ डायटीशियन, जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल, पटना ठंड के समय में सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पौष्टिक एवं ऊर्जा से भरपूर ऐसे आहार की जरूरत होती है, जो बायोएक्टिव कंपोनेंट से भरपूर हों और जिनमें एंटी-बायोटिक, एंटी-इंफ्लामेटरी एवं एंटी-ऑक्सीडेंट्स के गुण […]

रूपाली कुमारी
चीफ डायटीशियन, जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल, पटना
ठंड के समय में सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पौष्टिक एवं ऊर्जा से भरपूर ऐसे आहार की जरूरत होती है, जो बायोएक्टिव कंपोनेंट से भरपूर हों और जिनमें एंटी-बायोटिक, एंटी-इंफ्लामेटरी एवं एंटी-ऑक्सीडेंट्स के गुण हों. हालांकि, उन्हें अधिक कैलोरी नहीं दे सकते. मरीजों की कैलोरी उनके बीएमआई व स्थिति के हिसाब से दे सकते हैं. यदि वजन ज्यादा है, तो उसे नियंत्रित करना जरूरी है. बढ़ा हुआ वजन इस रोग में परेशानी बढ़ा सकता है.
वजन बढ़ने से हृदय एवं फेफड़ों पर अधिक भार पड़ता है. इसकी वजह से वह अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाते हैं. ब्रेड, चीनी, कोल्ड ड्रिंक आदि से परहेज करें. कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट को आहार में शामिल करें, जैसे- साबूत अनाज, छिलके वाली दाल, ओट्स, साग आदि.
नमक नियंत्रित रखें : नमक की जगह पर हर्ब्स का प्रयोग करें, जैसे- काली मिर्च, पुदीना इत्यादि. सोडियम के साथ पोटैशियम को बैलेंस रखना जरूरी है. पोटैशियम के लिए टमाटर, केला, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि ले सकते हैं.
चीनी से परहेज : मेटाबॉलिज्म के दौरान कार्बोहाइड्रेट फैट की तुलना में अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड प्रोड्यूस करता है. इसलिए ज्यादा मात्रा में मीठा न लें.
विटामिन सी है फायदेमंद : अमूमन लोग ये सोचते हैं कि नीबू खाने से सर्दी हो जायेगी, क्योंकि यह खट्टा होता है. पर नीबू न सिर्फ ठंड में बल्कि सीओपीडी में भी फायदेंमंद है. इसमें विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है.
विटामिन-सी और विटामिन-इ एवं बीटा कैरोटीन एंटीऑक्सीडेंट रिच फूड माने जाते हैं. यह फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. ये फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं. विटामिन-सी युक्त आहार इम्यून सिस्टम को बढ़ाता है. सीओपीडी मरीजों में सांस से जुड़ी इन्फेक्शन होने का जोखिम ज्यादा होता है. विटामिन-सी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर इसके असर को कम करने में सहायक होता है.
ताजे फल : ताजे फल एवं सब्जियों में फायटोन्यूट्रिएंट्स एवं एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं, जो फेफड़ो के अंदरूनी मसल्स को स्वस्थ रखते हैं एवं फेफड़ों में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं. इसलिए ताजे फलों एवं सब्जियों को भरपूर मात्रा में शामिल करें.
हेल्दी फैट शामिल करें :
हेल्दी फैट जैसे- ऑलिव ऑयल, बादाम , तीसी, अखरोट, चिया सीड्स, फैटी फिश इत्यादि में हेल्दी फैट पाये जाते हैं. ये सभी ओमेगा-3 फैटी एसिड के अच्छे स्रोत हैं. ओमेगा-3 फैटी एसिड को वंडर न्यूट्रिएंट कहा जाता है. यह फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है.
इसमें एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होता है. डेजर्ट्स जैसे- गाजर का हलवा, खीर इत्यादि में ड्राइ फ्रूट्स का इस्तेमाल करें. सलाद और सूप में ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करें. इससे स्वाद एवं खाने की गुणवत्ता को बढ़ जायेगी. यदि वजन अधिक हो, तो सैचुरेटेड फैट से दूर रहें, जैसे- मक्खन, दूध का क्रीम, घी इत्यादि.
दूध कैल्शियम का अच्छा स्रोत है. दूध का सेवन क्रीम हटाकर करें. यदि दूध से एलर्जी हो, तो सोया मिल्क ले सकते हैं. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं. सोया मिल्क, टोफू, सोया दही आहार में शामिल करें.
सीओपीडी में फेफड़ों की नलिकाएं कमजोर हो जाती हैं. उनमें सूजन भी आ जाती है. इसलिए श्वसन तंत्र से जुड़े शरीर के अंदरूनी मसल्स को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जिससे कि मसल्स मजबूत रहें.
ब्रीदिंग एक्सरसाइज से मसल्स मजबूत होते हैं. प्रोटीन की जरूरत तो समान्य होती है, पर सीओपीडी के मरीज जरूरत के अनुसार प्रोटीन नहीं ले पाते हैं. इनके आहार में तीनों समय में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन होनी चाहिए. मछली, सोयाबीन, दालें और अंडा प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. इन्हें नियमित तौर पर अपने आहार में शामिल करें.

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