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नोबेल विजेता अर्थशास्त्रियों ने कहा, गरीबी के खिलाफ लड़ाई कैंसर से लड़ने जैसी, छोटी-छोटी जीत में है सफलता

स्टॉकहोम : नोबेल पुरस्कार से विजेता अर्थशास्त्रियों में अभिजीत बनर्जी, एस्तर डुफ्लो और माइकल क्रेमर का यह मानना है कि गरीबी के खिलाफ लड़ाई कैंसर से लड़ने के समान है. इसे एक बार में किसी बड़े युद्ध में नहीं जीता जा सकता, बल्कि इसके लिए छोटी-छोटी लड़ाइयां जीतने की जरूरत है. वैश्विक स्तर पर गरीबी […]

स्टॉकहोम : नोबेल पुरस्कार से विजेता अर्थशास्त्रियों में अभिजीत बनर्जी, एस्तर डुफ्लो और माइकल क्रेमर का यह मानना है कि गरीबी के खिलाफ लड़ाई कैंसर से लड़ने के समान है. इसे एक बार में किसी बड़े युद्ध में नहीं जीता जा सकता, बल्कि इसके लिए छोटी-छोटी लड़ाइयां जीतने की जरूरत है. वैश्विक स्तर पर गरीबी के उन्मूलन के लिए प्रयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने के बाद उनकी यह धारणा बनी है. तीनों ने मंगलवार को महान वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में स्वीडन के केंद्रीय बैंक द्वारा स्थापित ‘स्वेरिजेस रिक्सबैंक’ पुरस्कार प्राप्त किये.

इस मौके पर सबकी तरफ से डुफ्लो ने कहा कि हम (अनुसंधान से जुड़े) ऐसे अभियान का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हममें से किसी से भी काफी व्यापक है. हमारा मानना है कि पुरस्कार से न केवल इस बात को मान्यता मिलती है कि इस अभियान ने क्या हासिल किया है, बल्कि इसे भी स्वीकृति मिलती है कि इससे भविष्य में क्या हासिल किया जा सकता है. ‘नोबेल प्राइज डॉट ओआरजी’ ने डुफ्ले के हवाले से कहा कि यह अभियान इस धारणा के साथ शुरू हुआ था कि दुनिया में गरीबी के खिलाफ उल्लेखनीय प्रगति हासिल की जा सकती है. इसमें यह विचार था कि वास्तविक दुनिया में बेहतर तरीके से परिभाषित सवालों पर ध्यान और यथासंभव उसके जवाब के जरिये गरीबी के खिलाफ सफलता हासिल की जा सकती है.

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में काम कर रहे बनर्जी और उनकी पत्नी डुफ्लो परंपरागत भारतीय पोशाक में पुरस्कार समारोह में शामिल हुए. 58 साल के बनर्जी कुर्ता, धोती तथा काले रंग की जैकेट पहने हुए थे. वहीं, 47 साल की डुफ्लो नीले रंग की साड़ी, लाल रंग का ब्लाउज पहनी थीं. उनके माथे पर लाल बिंदी थी. वैसे डुफ्लो फ्रांसिसी-अमेरिकी हैं. उन्होंने कहा कि 1990 में 19 लाख लोग अत्यंत गरीबी में थे. 88 लाख बच्चों की मौत पहले जन्मदिन से पहले हुई.

डुफ्ले ने कहा कि हमारा मानना है कि जिस प्रकार कैंसर के खिलाफ लड़ाई है, उसी प्रकार गरीबी के खिलाफ युद्धि एक बड़ी लड़ाई में नहीं जीती जा सकती, लेकिन छोटी-छोटी जीत से हम लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि रास्ते में कई बाधाएं आयेंगी और झटके लगेंगे. उन्होंने कहा कि हमारे दो जुड़े लक्ष्य हैं. पहला, गरीबों के जीवन में सुधार के लिए योगदान तथा दूसरा उनके जीवन जीने के तरीकों को बेहतर तरीके से समझना.

अपने संबोधन में डुफ्लो ने उन लोगों तथा संगठनों का धन्यवाद दिया, जिन्होंने उनके कार्य का समर्थन किया. तीनों अर्थशास्त्री को 90 लाख स्वीडिश क्रोना (6.7 करोड़ रुपये) की पुरस्कार राशि में से बराबर बराबर हिस्सा मिलेगा. अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तीनों विजेता पुरस्कार में मिली राशि को आर्थिक अनुसंधान के लिए दान करेंगे. इससे 15 साल तक अनुसंधान कार्य में मदद मिलेगी.

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