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अमेरिका-चीन में छिड़ा ट्रेड वार, दुनिया भर की अर्थव्यवस्था सहमी, भारत में भी चिंता गहरायी

वाशिंगटन/नयी दिल्ली:अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि द्विपक्षीय व्यापार में अब चीन का पहले जैसा प्रभुत्व नहीं रहेगा. उसके प्रभुत्व के कारण अमेरिकी व्यापार को घाटा हुआ है.अमेरिका ने चीन से वस्तुओं के आयात पर भारी कर लगा दिया है और चीन ने भी बदले की कार्रवाई करते हुए ऐसा कदम उठाया […]

वाशिंगटन/नयी दिल्ली:अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि द्विपक्षीय व्यापार में अब चीन का पहले जैसा प्रभुत्व नहीं रहेगा. उसके प्रभुत्व के कारण अमेरिकी व्यापार को घाटा हुआ है.अमेरिका ने चीन से वस्तुओं के आयात पर भारी कर लगा दिया है और चीन ने भी बदले की कार्रवाई करते हुए ऐसा कदम उठाया है. ट्रंप ने उम्मीद जतायी है कि ऐसे कदम से वह चीन अमेरिका से उचित व्यापारिक व्यवहार करेगा. मालूम हो कि अमेरिका को पिछले साल चीन से व्यापार 500 अरब डॉलर का घाटा हुआ था.

चीन और अमेरिका के बीच छिड़े ट्रेड वार से वैश्विक अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचने की संभावना है. दिग्गज अर्थशास्त्रियों के मुताबिक पिछले सप्ताह जिस तरह की वैश्विक गतिविधियां देखी गयी हैं, उससे नये खतरे पैदा हो सकते हैं. बता दें कि पिछले दिनों ट्रंप ने भारत और चीन को खरी – खरी सुनाई थी और चीन पर 60 अरब डॉलर का शुल्क लागू करने के संकेत दिया था. चीन पर 60 अरब डॉलर का शुल्क लागू करके उसने अमेरिका के साथ ट्रेड वार का संकेत दिया है.

उधर ट्रंप के इस अप्रत्याशित कदम से इस मामले में चीनी वाणिज्य मंत्रालय का कहना है कि "100 से अधिक उत्पादों पर बढते उत्पाद शुल्क की श्रेणी में सूअर का मांस, वाइन (शराब) और स्टील की पाइपों समेत 128 अमेरिकी उत्पादों से शुल्क रियायतें हटाई जाएंगी."
भारतीय उद्योग जगत ने जतायी चिंता
वाणिज्य एवं उद्योग संगठन एसोचैम ने आज कहा कि यदि वैश्विक व्यापार युद्ध आगे खिंचता है और इसका फैलाव हुआ तो इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था विशेषकर निर्यात पर पड़ सकता है. एसोचैम ने यहां जारी वक्तव्य में कहा, ‘‘ यदि दुनिया के देशों में शुल्क युद्ध आगे चलकर पूरी तरह से वैश्विक व्यापार युद्ध में तब्दील हो जाता है तो, इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी व्यापक असर पड़ सकता है.
इससे देश का निर्यात प्रभावित होगा, चालू खाता घाटे पर दबाव बढ़ेगा और सकल घरेलू उत्पाद( जीडीपी) की वृद्धि गति धीमी पड़ सकती है.’ संगठन ने कहा कि अमेरिका द्वारा उठाये जा रहे कदमों से सीधे भारत पर कोई असर नहीं होगा लेकिन इसका कुल मिलाकर कारोबारी धारणा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. उसने कहा, ‘‘ यदि भारत अपने आयात पर प्रतिक्रियात्मक कदम उठाने का निर्णय लेता है, तब भी हमारा निर्यात अधिक प्रभावित होगा क्योंकि विदेशी मुद्रा विनिमय की दरों में घटी- बढ़ी तेज होगी.’ एसोचैम ने सरकार को वैकल्पिक योजना बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि इसमें मुख्य व्यापारिक भागीदारों के साथ द्विपक्षीय व्यापार को और खुला बनाया जाना होना चाहिए ताकि देश को संरक्षणवादी उपायों के प्रभाव से बचाया जा सके.
क्या कहते हैं अर्थशास्त्री
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस तरह के डेवलेपमेंट दुर्भाग्यपूर्ण है. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित राबर्ट शिलर और जोसेफ स्टीग्लिटज ने कहा कि कोई भी कंपनी लंबे समय से इस बात की प्लानिंग करती है कि वैश्विक बाजार में कैसे काम किया जाये. कंपनियां स्किल वर्कफोर्स हायर करती है और सालों तक काम करने के बाद एक तरीका विकसित हो जाता है. ट्रेड वार होने से कंपनियों को फिर से रिडिस्कवर करना होगा. भविष्य में कंपनियों के ग्रोथ पर इसका असर पड़ सकता है. अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है और फेडरल रिजर्व बैंक ब्याज दरों को बढ़ा सकता है.

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