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कभी झामुमो के लिए मर मिटने को तैयार थे सुनील अब उसी को मिटाने में जुटे

आनंद जायसवाल, दुमका : दुमका से चुनाव जीत कर झामुमो के किले को ध्वस्त करनेवाले भाजपा के प्रत्याशी सुनील सोरेन कभी शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के लिए मर-मिटने को तैयार थे. जामा के तरबंधा में 6 अप्रैल 1972 को सुफल सोरेन व पकु मरांडी के घर में जन्मे सुनील जब कॉलेज की शिक्षा हासिल […]

आनंद जायसवाल, दुमका : दुमका से चुनाव जीत कर झामुमो के किले को ध्वस्त करनेवाले भाजपा के प्रत्याशी सुनील सोरेन कभी शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के लिए मर-मिटने को तैयार थे. जामा के तरबंधा में 6 अप्रैल 1972 को सुफल सोरेन व पकु मरांडी के घर में जन्मे सुनील जब कॉलेज की शिक्षा हासिल कर रहे थे, उसी वक्त उन्होंने झामुमो का दामन थाम लिया था.

झारखंड आंदोलन से प्रेरित और दबे कुचले आदिवासियों को समस्याओं के जाल से निकालने तथा प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सुनील ने लोगों को जागरूक करने के लिए राजनीति में भागीदारी निभानी शुरू की.
राजनीति में दिलचस्पी पहले से थी, सो उन्होंने राजनीति शास्त्र विषय से स्नातक की पढ़ाई शुरू भी की थी, पर द्वितीय वर्ष के आगे वे नहीं पढ़ सके. झामुमो के कट्टर समर्थक रहे सुनील को जामा प्रखंड सचिव का भी दायित्व मिला. शिबू सोरेन के वे काफी करीबी बन गये. शिबू सोरेन के पुत्र दुर्गा सोरेन को जामा विधानसभा क्षेत्र से जीताने के लिए सुनील ने झामुमो में रहते प्रतिबद्धता भी दिखायी थी.
दो बार दुर्गा सोरेन को विधानसभा तक पहुंचाने में उनकी भूमिका अहम मानी जाती रही थी. 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में उनके क्रियाकलापों पर झामुमो ने सवाल उठाया. ऐसी स्थिति पैदा हुई कि सुनील की राजनीतिक जीवन ने गुरुजी के खिजुरिया आवास से ही करवट ले ली. खुद व मतदाताओं के साथ हुए विश्वासघात को उन्होंने मुद्दा बनाया और झामुमो को सबक सिखाने का संकल्प लिया.
2005 में जामा से दुर्गा सोरेन को हराया था
2005 तक महज नौ-दस महीने में भाजपा पर इतना विश्वास उन्होंने जमा लिया कि जामा विधानसभा क्षेत्र से शिबू सोरेन के पुत्र दुर्गा सोरेन के खिलाफ प्रत्याशी बना दिये गये. जीत हासिल हुई तो पांच साल में कैराबनी, चिकनियां, डांडो, सितुवा में हाई स्कूलों के निर्माण से लेकर कई सिंचाई योजनाओं को उन्होंने मूर्त रूप दिलायी. भ्रष्ट राजनीति से जनता को निजात दिलाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे संताल युवा विधायक सुनील सोरेन पर भाजपा ने आगे इतना विश्वास जताया कि बेटे को हराने के बाद पिता के सामने लोकसभा चुनाव में खड़ा किया.
किला कमजोर करने में सुनील लगे रहे. पहले और दूसरे प्रयास क्रमश: 2009 और 2014 में वे जीत के नजदीक तो पहुंचे, पर जीत नहीं सके. इस बार के चुनाव में शिबू सोरेन के गढ़ में भाजपा ने केंद्र व राज्य सरकार की विकास योजनाओं, कल्याणकारी कार्यक्रमों और कुशल चुनावी रणनीति से ऐसी किलाबंदी की कि झामुमो ध्वस्त हो गया.
2004 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा में कराया था योगदान
30 जून 2004 को हूल दिवस के दिन बाबूलाल मरांडी की उपस्थिति में सुनील एक फुटबॉल मैच के दौरान भाजपा में शामिल हो गये. बाबूलाल ने शिबू के किले को ध्वस्त करने के लिए एक सिपाही के रूप में सुनील को भाजपा में शामिल किया था. सुनील भी उनकी उम्मीद पर खरा उतरने लगे.

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