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शिवत्व धारण करने की प्रेरणा का पर्व

मुकेष ऋषि समूची सृष्टि शिव की रचना है. इसके कण-कण में, चर-अचर में, जड़-चेतन में शिव की शक्ति समायी है. तीनों त्रिलोक यानी धरती, आकाश, पाताल में शिव की सत्ता विद्यमान है. शिव ही सृष्टि की मूलभूत शक्ति है, जिसके अभाव में यह सृष्टि श्मशान तुल्य है. शिव अजन्मा हैं, अविनाशी हैं, अनादि और अनंत […]

मुकेष ऋषि

समूची सृष्टि शिव की रचना है. इसके कण-कण में, चर-अचर में, जड़-चेतन में शिव की शक्ति समायी है. तीनों त्रिलोक यानी धरती, आकाश, पाताल में शिव की सत्ता विद्यमान है. शिव ही सृष्टि की मूलभूत शक्ति है, जिसके अभाव में यह सृष्टि श्मशान तुल्य है. शिव अजन्मा हैं, अविनाशी हैं, अनादि और अनंत हैं. अंतर्यामी, करुणा-दया के सिंधु हैं, दुःखहर्ता, कल्याण के अधिष्ठाता हैं. निर्विकार, निर्विकल्प, निर्मल, अमल, निर्बीज, निराकार, साकार, स्थूल, सूक्ष्म दोनों स्वरूपों में हैं.

वह परमगुरु, सदाशिव, आदिगुरु हैं. शिव त्यागी, वैरागी, अनासक्त, विरक्त, संन्यासी, तपस्वी, अहंकार-शून्य, भभूति लपेटे दिगंबर, औघड़, अघोरी, दीनदयाल, जगत के स्वामी व दाता हैं. शिव सर्वज्ञ, सत्य, सनातन हैं. वह जीव के अंदर भी हैं और बाहर भी यानी सर्वत्र, सर्वव्यापी हैं. जो अपनी सत्ता व शक्ति के प्रभाव को स्थापित करने के लिए महाशिवरात्रि के पर्व पर प्रेरणा जन-जन को देते हैं.

शिवरात्रि में ‘शिव’ शुभत्व व देवत्व का परिचायक है, तथा ‘रात्रि’ का अर्थ अंधकार है. जीव के जीवन में जो अंधकार है, उसे जीव के अंदर शिवत्व, देवत्व, शुभत्व का जागरण दूर करता है. जड़ता, पशुता, सुषुप्ति की स्थिति में परिवर्तन करना ही शिव की अभीष्ट प्रेरणा व प्रयोजन है. इसके बिना मानव आजीवन अज्ञान व अंधकार में भटकता रह जाता है. असत्य, अधर्म, हिंसा, अत्याचार, भोगी, विलासी, कामी, आलसी, निद्रा, असुरता, असहाय, दयनीय, दुर्दिन स्थिति में जीवन जीता है.

उसी स्थिति से ऊपर उठने के लिए शिवत्व के जागरण, शिव से प्रेम करने के लिए महाशिवरात्रि मनायी जाती है. शिव के प्रेम में निमग्न होकर असत्य की जगह सत्य, अधर्म की जगह धर्म, अज्ञान की जगह ज्ञान, अंधकार की जगह प्रकाश, कुकर्म की जगह सत्कर्म से प्रेम करें और शिव की कल्याणकारी वृत्ति को अपने जीवन में स्थापित करें तभी शिवरात्रि पर्व की सार्थकता है.

शिव का स्वरूप तरह-तरह के विलक्षण ज्ञान से परिपूर्ण है, जिसे समझ लेने से जीवन की जटिल समस्याओं का समाधान संभव है. शिवलिंग का अर्थ ब्रह्मांड की व्यापकता से है.

शिव की पूजा करनेवालों को ब्रह्मांड के सभी जीव-जंतुओं को शिव का स्वरूप मानकर उससे प्रेम करना चाहिए और उन्हें दुःख-कष्ट नहीं देना चाहिए, तथा उसकी रक्षा करना ही शिव पूजा का असली धर्म है. शिव के मस्तक पर स्थापित चंद्रमा मस्तिष्क की शांति, क्रोधरहित होने का संदेश देता है. शिव की जटा में विराजमान गंगा मस्तिष्क में पवित्र, निर्मल, स्वच्छ ज्ञान अर्जित करके ज्ञान का भंडारी बनने का प्रेरक है.

गले में लिपटी सर्पमाला वैरी को गले लगाकर प्रेम करने, भूत-प्रेत का समूह ठुकराये समूहों को अपने साथ रखकर सहयोग करने की शिव-वृत्ति है.

कमर में लिपटी बाघछाला शक्ति का दुरुपयोग न करके उसे अपने अधीन ही रखना शिव की कल्याणकारी भावना है. त्रिशूल यानि तीन शूल- लोभ, मोह, अहंकार पर नियंत्रण रखने से जीवन सफल, सार्थक बनना संभव है. बेलपत्र सतोगुण, रजोगण, तमोगुण का रूप है. पार्वती जी का बेलपत्र खाकर तपस्या करने का अर्थ है कि सत, रज, तम से परे होकर ही शिव से प्रेम करना व शिव को प्राप्त करना संभव है.

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