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चित्रगुप्त पूजा आज, कण-कण में समाहित हैं ब्रह्मा से उत्पन्न चित्रांश

डॉ प्रणव कुमार बब्बू जाति के बजाय कर्म, धर्म और समर्पण ही कायस्थों का मूल मंत्र है. पौराणिक मान्यता और परंपरा की बात करें तो कायस्थ एक उच्च श्रेणी की जाति है. हिंदुस्तान में रहनेवाले सवर्ण हिंदू चित्रगुप्तवंशी क्षत्रियों को ही कायस्थ कहा जाता है. एक समय था- जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों […]

डॉ प्रणव कुमार बब्बू
जाति के बजाय कर्म, धर्म और समर्पण ही कायस्थों का मूल मंत्र है. पौराणिक मान्यता और परंपरा की बात करें तो कायस्थ एक उच्च श्रेणी की जाति है. हिंदुस्तान में रहनेवाले सवर्ण हिंदू चित्रगुप्तवंशी क्षत्रियों को ही कायस्थ कहा जाता है. एक समय था- जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था.
कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं. सब राजवंशों की संतानें हैं. कुछ जगह पुराणों और इतिहास में कायस्थों को प्रजापीड़क और शूद्र की कोटि में स्थान दिया गया है. परंतु, शिक्षा और आर्थिक स्थिति सही होने के कारण आधुनिक भारत में इन्हें सामान्य कोटि में रखा गया है. इन्हें आर्थिक और राजसेवक के रूप में अत्यंत ख्याति प्राप्त हुई. यही वर्ग श्री चित्रगुप्तजी का वंशज है. इस वर्ग को 13 उप वर्गों में विभाजित किया गया है. 12 वर्ग श्रीचित्रगुप्त की पत्नियों, देवी शोभावती और देवी नंदिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर हैं. कायस्थों के इस वर्ग की उपस्थिति वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है.
कहा जाता है कि ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र). तब यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने में सहायता मांगी. फिर ब्रह्मा 11,000 वर्षों के लिए ध्यान साधना में लीन हो गये और जब उन्होंने आंखें खोलीं, तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात, स्याही, पुस्तक तथा कमर में तलवार बांधे पाया. तब ब्रह्मा जी ने कहा ‘हे पुरुष! क्योंकि तुम मेरी पूरी काया से उत्पन्न हुए हो. इसलिए तुम्हारी संतानों को कायस्थ कहा जायेगा. जैसा कि तुम मेरे चित (शरीर) में गुप्त रूप से (विलीन) आये, इसलिए तुम्हें चित्र श्री चित्रगुप्तजी को महाशक्तिमान क्षत्रिय के नाम पर संबोधित किया गया है.’
पद्म पुराण के अनुसार, श्री चित्रगुप्तजी महाराज का परिवार इस तरह उल्लेखित है. श्री चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुए, पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा/नंदिनी जो सूर्य के पुत्र श्राद्धदेव की कन्या थी, इनसे चार पुत्र हुए. दूसरी पत्नी ऐरावती/शोभावति धर्मशर्मा (नागवंशी क्षत्रिय) की कन्या थी, इनसे आठ पुत्र हुए. अत: कायस्थ की 12 शाखाएं हैं – श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीकि, अस्थाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अंबष्ठ, निगम, कर्ण व कुलश्रेष्ठ. श्री चित्रगुप्तजी महाराज के बारह पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की बारह कन्याओं से हुआ. वर्तमान में कायस्थ राजनीति और कला के साथ विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक विद्यमान हैं.
लेखक झारखंड प्रदेश अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के अध्यक्ष हैं

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