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Friday, March 29, 2024

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छठ विशेष : सविता का ही दूसरा नाम है छठी मैया, जो बच्चों को अकाल मृत्यु से बचाती हैं

।। निधि तिवारी ।। हर देवता जनमानस में संकट की घड़ी में लहर लेता एक महाभाव है. हर देवी-देवता का चेहरा एक महाभाव के मूर्ती की तरह पढ़ना चाहिए – वीरता, सौंदर्य, न्याय और करुणा की मूर्ती की तरह. हर देवता की एक शक्ति के साथ पूजा होती है. सूर्य की शक्ति का नाम ‘सविता’ […]

।। निधि तिवारी ।।

हर देवता जनमानस में संकट की घड़ी में लहर लेता एक महाभाव है. हर देवी-देवता का चेहरा एक महाभाव के मूर्ती की तरह पढ़ना चाहिए – वीरता, सौंदर्य, न्याय और करुणा की मूर्ती की तरह. हर देवता की एक शक्ति के साथ पूजा होती है. सूर्य की शक्ति का नाम ‘सविता’ भी है. बिहार की लोक-परंपरा में ‘सविता’ का ही एक नाम ‘छठी मइया’ भी है. सूर्य की किरणे ‘चर्म रोग’ का निवारक मानी जाती है और हड्डियों को विटामिन-डी पहुंचाने का सबसे प्रमाणिक स्त्रोत हैं.

बिहार में चेचक एक महामारी के रूप में आता था और बड़ी संख्या में बच्चे काल-कवलित हो जाते थे. छठी मइया या सूर्य शक्ति उसी के निवारक के रूप में मूर्तिमान है. आज भी गांवो में ‘चेचक’ को ‘माई’ का ही स्थान दिया जाता है. पुरुष सतात्मक समाज में इतने बड़े स्तर पर किसी शक्ति (सविता) की पूजा ‘नारी’ के आस्तित्‍व को स्थापित करती है.

वर्तमान में यह पर्व न केवल बिहार, बल्कि प्रत्येक राज्य तथा विदेशो में भी बड़े स्तर पर मनाया जा रहा है. हमारे समाज में अधिकतर पर्व महिलाओं के द्वारा किये जाते हैं. परंतु ‘छठ पर्व’ बड़ी संख्या में पुरुषों के द्वारा भी किया जा रहा है, यह पर्व न केवल एक त्योहार के रूप में, बल्कि यह पर्व प्रकृति के अधिक अनुकूल लगता है. क्योंकि, इसमें अराध्य देवता सूर्य की उपासना की जाती है, जो प्रकृति देवता के रूप में जाने जाते हैं.

बिना किसी पंडित, पुरोहित आदि की मदद लिए सूर्य देवता की आराधना की जाती है. जल स्त्रोतों से मानव का जुड़ाव और उन पर निर्भरता का भी परिचायक है यह पर्व. किसानों के लिए यह पर्व खुशियां लेकर आता है, फसलों की कटाई और मौसमी फलों का प्रसाद के रूप में वितरण आदि. यह पर्व बिना किसी भेद-भाव के, चाहे वह प्राकृतिक स्तर पर हो, समाजिक स्तर पर हो, पुरुष-स्त्री का भेद-भाव के बिना ही यह पर्व एक साथ एक ही स्थान पर मनाया जाता है.

शायद इसीलिए इस पर्व को महापर्व कहा जाता है. छठ गीतों में ‘छठी मइया’ के अतिरिक्त दीनानाथ अर्थात दीनों के नाथ को सर्वाधिक संबोधित किया जाता है. प्रत्येक गीतों में पुत्रों के साथ पुत्रियों को समान रूप से संबोधित किया जाता है. यह पर्व प्रकृति के अनुकूल समभाव के साथ मनाया जाता है.

यह महापर्व पुरुष सतात्मक समाज में ‘शक्ति रुपी देवी सविता, छठी मइया’ की पूजा होना समाज में ‘स्त्री शक्ति’ के महत्व को बताता है. मानव का प्रकृति से गहरे संबंध को दर्शाता है. यह पर्व समाज में शक्ति का अस्तितव किस प्रकार विद्यमान है यह बताता है. अभी भी यह पर्व अपनी मूल भावना के साथ मनाया जाता है. आस्था का यह पर्व अपनी अनेक विशेषताओं के साथ बहुत बड़े स्तर पर मनाया जा रहा है.

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