31.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

छठ गीतों में भी वही पवित्रता है, जो छठ लोकपर्व में है

डॉ नीतू कुमारी नवगीत लोक गायिका आस्था, विश्वास, समर्पण, पवित्रता और सामंजस्य के भाववाला लोकपर्व छठ बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्य तौर पर मनाया जाता है. इस क्षेत्र के लोग जहां-जहां गये,अपनी संस्कृति और इस लोकपर्व को भी अपने साथ लेते गये. इस कारण यह पर्व अब दिल्ली, मुंबई, इंदौर, चेन्नई और […]

डॉ नीतू कुमारी नवगीत
लोक गायिका
आस्था, विश्वास, समर्पण, पवित्रता और सामंजस्य के भाववाला लोकपर्व छठ बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्य तौर पर मनाया जाता है. इस क्षेत्र के लोग जहां-जहां गये,अपनी संस्कृति और इस लोकपर्व को भी अपने साथ लेते गये. इस कारण यह पर्व अब दिल्ली, मुंबई, इंदौर, चेन्नई और चंडीगढ़ जैसी जगहों पर भी मनाया जाने लगा है.
अब ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में भी इन क्षेत्रों के जो नये टेक्नोक्रेट्स बसे हैं, वह अपनी लोक संस्कृति से जुड़े इस पर्व को मनाने लगे हैं. साल में दो बार- चैत्र मास और कार्तिक मास में मनाये जाने वाले इस महापर्व में अधिक चर्चित कार्तिक वाला छठ ही है. आस्था प्रधान इस लोकपर्व में शुद्धता, स्वच्छता और श्रद्धा का विशेष महत्व है. यह स्वच्छता व्यक्तिगत स्तर पर भी दिखती है और सार्वजनिक स्तर पर भी. इसमें घर से लेकर घाट तक की सफाई का ध्यान रखा जाता है और लोग प्रकृति के साथ अपने साहचर्य को बढ़ाते हैं. इस महापर्व में गाये जानेवाले लोकगीतों की भी बड़ी ही समृद्ध परंपरा रही है. छठ के लोकगीतों में वही पवित्रता होती है जो छठ लोकपर्व में है. छठ व्रती, घर की दूसरी महिलाएं तथा घाटों की ओर समूह में जानेवाली महिलाएं पूजा की अलग-अलग रीतियों को संपन्न कराते समय छठ के लोकगीतों को गाती हैं. पूरे वातावरण को पवित्र और छठ मय बनाने में इन लोकगीतों की विशिष्ट भूमिका होती है.
छठ के गीतों में पावन गंगा नदी का विशेष महत्व रहा है. महिलाएं गाती हैं : –
गंगा जी के पनिया ले आईब खोईचा भराईब हो
गंगा नदी पटना से होकर गुजरती है और अधिक-से-अधिक छठव्रती भगवान सूर्य की आराधना गंगा नदी के तट पर ही करना चाहते हैं :
पटना के घाट पर हमहूं अरजिया देबई हे छठी मैया .
हम ना जयबई दूसर घाट
हे छठी मैया ..
एक दूसरे लोकगीत में छठ व्रती महिलाएं और दूसरे लोग गाती हैं:
पटना के घाट पर देबेलू अरघिया हो केकरा लागी,
ए करेलू छठ बरतिया हो केकरा लागी.
छठ करने के लिए आवश्यक सामग्रियों को नदी के घाटों पर ले जाने के लिए दौरा और बहंगी का प्रयोग किया जाता है :
कांच ही बांस के बहंगिया
बहंगी लचकत जाये
बाट जे पूछेले बटोहिया
बहंगी केकरा के जाये
बहंगी छठी माई के जाये .
इस लोकगीत में और कुछ दूसरे लोकगीतों में तोता एक जरूरी पात्र के रूप में आता है और वह बार बार छठ व्रत के फलों को जूठा करने का प्रयास करता है .
केरवा जे फरेला घवद से
ओह पर सुगा मेंडराय
मारबो रे सुगवा धनुष से
सुगा गिरे मुरझाय
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से
आदित होइ न सहाय . .
उत्तर प्रदेश और बिहार की बड़ी आबादी रोजी रोटी के जुगाड़ में शहरों की ओर पलायन करती है. गांव की महिलाएं उम्मीद करती हैं कि उनका पति, बेटा या पिता जो भी हो, वह छठ के अवसर पर घर आएं और संग-संग मिल कर इस महापर्व को मनाएं. एक लोकगीत में ऐसे ही पति-पत्नी का संवाद है:
कातिक में अइह परदेसी बालम
घरे होता छठ
कातिक में आई ये प्यारी रानी
हमहू करब छठ .
चार दिनों की कठिन आराधना के बाद छठ व्रती छठ के दिन बड़ी ही बेसब्री से सूर्यदेव के उगने का इंतजार करती हैं :
चारु पहर राती जल-थल सेइला
सेइला चरन तोहार हे छठी मैया
दर्शन देही ना आपार हे दीनानाथ
दर्शन देही ना आपार .

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें