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बुजुर्गों को अस्पताल में छोड़ भूल गये परिजन

नीरज अंबष्ट, धनबाद : जिंदगी के आखिरी पड़ाव में बुजुर्ग जब बीमारियों से घिर जाते हैं तो परिजन को उनका ख्याल रखना चाहिए, उनकी सेवा करनी चाहिए. लेकिन आज कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने बुजुर्गों को या तो वृद्ध आश्रम पहुंचा दे रहे हैं या किसी खैराती अस्पताल में भर्ती करा कर छोड़ […]

नीरज अंबष्ट, धनबाद : जिंदगी के आखिरी पड़ाव में बुजुर्ग जब बीमारियों से घिर जाते हैं तो परिजन को उनका ख्याल रखना चाहिए, उनकी सेवा करनी चाहिए. लेकिन आज कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने बुजुर्गों को या तो वृद्ध आश्रम पहुंचा दे रहे हैं या किसी खैराती अस्पताल में भर्ती करा कर छोड़ देते हैं. वृद्ध आश्रम या अस्पताल में कभी-कभार आकर मिल लेते हैं, फिर आने का दिलासा देकर महीनों गायब रहते हैं.

ऐसे में इन बुजुर्गों को देखने वाला कोई नहीं है. वे सरकारी अस्पताल का खाना खाकर दिन-रात बरामदे में लगे बेड पर पड़े-पड़े अपनी मौत का इंतजार करते हैं.आठ साल से अस्पताल के बरामदे में : पीएमसीएच के ऑर्थो विभाग में आठ साल से भर्ती बुजुर्ग धीरेन चंद दत्ता व ढाई साल से भर्ती आग्री दास अस्पताल के तीसरे तल्ले के बरामदे में अपने जीवन के बाकी दिन काट रहे हैं.
धीरेन के लिए तो बेड भी है, लेकिन आग्री दास को जो बेड दिया गया है, उस पर बिस्तर तक नहीं है. उसके शरीर पर कपड़े भी नहीं है. वह निर्वस्त्र पड़ी रहती है. वहां काम करने वाली एक महिला ने बताया कि आग्री को आये दिन कोई न कोई नर्स कपड़े लाकर पहनाती है, लेकिन वह उसे खोल कर फेंक देती है.
भरा पूरा परिवार, लेकिन कोई झांकने तक नहीं आता
पीएमसीएच के ऑर्थो विभाग में भर्ती बलियापुर निपनिया निवासी धीरेन चंद दत्ता का आठ साल पहले पैर टूट गया था. अपना इलाज करवाने के लिए पीएमसीएच आये. पैर का ऑपरेशन हो गया, लेकिन आज तक यह अस्पताल में ही हैं.
इनका भरा-पूरा परिवार है, लेकिन कोई देखने तक नहीं आता है. धीरेन ने बताया कि गांव में उनकी पत्नी और बेटा है. पत्नी कभी देखने तक नहीं आयी, बेटा मुकेश दत्ता पहले कभी-कभी देखने आया करता था, लेकिन वह भी पिछले कई माह से नहीं आया है.
मुंबई से आज तक नहीं आया बेटा
अजीत सिंह की डेढ़ साल पहले तक धैया रोड में साइकिल की दुकान थी. सड़क चौड़ीकरण में दुकान उजड़ गयी. एक दुर्घटना में उनका पैर टूट गया और अभी पीएमसीएच के ऑर्थो विभाग में इलाज करा रहे हैं. अजीत सिंह ने बताया कि उनकी पत्नी की मौत हो चुकी है.
दो बेटा हैं. दोनों मुंबई में किसी कंपनी में काम करते हैं. उन्हें फोन कर इस घटना की जानकारी दी गयी. एक बार एक बेटा आया था और देख कर चला गया. जबकि दूसरा बेटा उन्हें देखने तक नहीं आया. उन्होंने बताया कि ठीक हो जाने के बाद वह फिर से अपनी साइकिल की दुकान खोलना चाहते हैं.
भतीजा को चाहिए बस अंगूठे का निशान
बाघमारा के फुलवाटांड़ की रहने वाली आग्री दास के पति धोबानी दास की कुछ साल पहले मौत हो गयी. इसके बाद सरकार की ओर से आग्री दास को प्रति माह विधवा पेंशन मिलती है.
उनका एक भतीजा रामू दास प्रतिमाह चोरी चुपके आता है और उसके अंगूठे का निशान चेक पर लेकर चला जाता है और पेंशन के पैसे उठा लेता है. कई बार अस्पताल के स्टाफ ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह आज तक पकड़ में नहीं आया. आग्री दास के शरीर में वस्त्र तक नहीं नहीं है. अस्पताल के स्टाफ उसे खाना खिलाने से लेकर नहाने तक का काम करते हैं.

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