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धनबाद की 29.37 हजार एकड़ भूमि शामिल है प्रतिबंधित सूची में

संजीव झा, धनबाद : धनबाद जिले में 29,378 एकड़ भूमि प्रतिबंधित सूची में शामिल है. पिछले लगभग दो वर्ष से इन जमीनों की खरीद-बिक्री लगभग नहीं हाे पा रही है. इस फैसले से धनबाद में ही सैकड़ाें प्राेजेक्ट लटक गये हैं. सरकार ने अब कहा है : उपायुक्त की अनुमति से ही प्रतिबंधित सूची से […]

संजीव झा, धनबाद : धनबाद जिले में 29,378 एकड़ भूमि प्रतिबंधित सूची में शामिल है. पिछले लगभग दो वर्ष से इन जमीनों की खरीद-बिक्री लगभग नहीं हाे पा रही है. इस फैसले से धनबाद में ही सैकड़ाें प्राेजेक्ट लटक गये हैं. सरकार ने अब कहा है : उपायुक्त की अनुमति से ही प्रतिबंधित सूची से प्लॉट बाहर किये जा सकते हैं. जानकार कहते हैं : सरकार के इस फैसले से लाेगाें काे राहत नहीं मिलनेवाली. जमीन बेचने के लिए इन खातों के भूमि मालिकों को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा.

कहां, किस खाते की कितनी जमीन : झारखंड में गैर मजरुआ आम, गैर मजरुआ खास, गैरमजरुआ जंगल-झाड़, गैर उपयोगी खाते की जमीन प्रतिबंधित सूची में शामिल है. मार्च 2018 में नेशनल जेनेरिक डॉक्यूमेंट रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एनजीडीआरएस) सॉफ्टवेयर लागू होने के बाद सभी तरह के गैरआबाद खाते की जमीन का निबंधन बंद हो गया. इसमें वह जमीन भी शामिल है, जो सरकार ने रैयतों को जमीन के बदले दिया था.
अधिकृत सूत्रों के अनुसार धनबाद अंचल में 191.4 एकड़, झरिया में 113.91 एकड़, गोविंदपुर में 2364.61 एकड़, निरसा में सबसे ज्यादा 14702.40 एकड़, बलियापुर में 487.74 एकड़, तोपचांची में 1352.02, बाघमारा में 5673.45 एकड़, टुंडी में 799.17 एकड़ और पूर्वी टुंडी में 3694 एकड़ सरकारी भूमि है. इसमें सभी तरह की भूमि शामिल है. जिला प्रशासन की तरफ से इस संबंध में रिपोर्ट राज्य के भू-राजस्व विभाग तथा धनबाद व गोविंदपुर निबंधन कार्यालय के सहायक निबंधक को भेजी गयी है.
नये सिरे से खुलेगा रिकॉर्ड : सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंधित सूची की जमीन की रजिस्ट्री के लिए उपायुक्त की अनुमति के नये नियम के बाद भी भू-धारकों को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगी. उन्हें उपायुक्त के न्यायालय में आवेदन देना होगा. इसके आधार पर उक्त जमीन का रिकॉर्ड खुलेगा.
इसकी जांच पहले संबंधित अंचल के अंचलाधिकारी करेंगे. सीओ के बाद यह मामला डीसीएलआर के यहां जायेगा. डीसीएलआर की अनुमति के बाद यह संचिका एसडीएम के यहां जायेगी. वहां से अपर समाहर्ता से होते हुए संचिका उपायुक्त सह जिला निबंधक के यहां जायेगी. उपायुक्त की अनुमति के बाद ही जमीन की खरीद-बिक्री हो पायेगी.
पहले से जिनकी जमाबंदी है, उन्हीं को मिलेगी अनुमित : सरकार के नये आदेश में एक शर्त और भी है. उपायुक्त सह जिला निबंधक वैसी ही गैर मजरुआ नेचर की प्रतिबंधित जमीन की बिक्री का आदेश देंगे, जो पहले किसी के नाम से बंदोबस्त हुई है. जिसका लगान रसीद कटता रहा हो. वह भी ऑनलाइन खतियान में चढ़ा हुआ हो. बदलेन के तहत मिली सरकारी जमीन के भू-धारकों को बताना होगा कि उन्हें किसी शर्त पर जमीन मिली थी.
सैकड़ों प्रोजेक्ट अधर में लटका
गैरमजरुआ खास का चार जिलों में हुआ सर्वाधिक दुरुपयाेग
नये आदेश से राहत नहीं मिलनेवाली, लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा
क्या है गैरमजरुआ आम
गैरमजरुआ आम की जमीन किसी भी शर्त पर किसी को बंदोबस्त नहीं की जा सकती. इसमें सार्वजनिक उपयोग के लिए छोड़ी गयी जमीन आती है, जिसका इस्तेमाल तालाब, सड़क, खेल मैदान आदि के लिए किया जाता है.
विशेष परिस्थितियों में इस नेचर की जमीन को ग्रामसभा की सहमति के बाद अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के भूमिहीनों को दी जा सकती है. राजा व जमींदारों को भी इस खाते की जमीन की बंदोबस्ती का अधिकार नहीं था. सर्वे में इस खाते की वैसी जमीन जिसका प्राकृतिक स्वरूप बदल गया है, उसका नेचर बदला जाता है.
अंचलवार प्रतिबंधित जमीन का ब्यौरा
अंचल गैर मजरुआ गैर मजरुआ गैर मजरुआ
खास आम जंगल-झाड़
धनबाद 56.94 19.45 00.00
झरिया 113.91 00.00 00.00
गोविंदपुर 849.98 974.47 213.44
निरसा 2414.00 5141.00 833.00
बलियापुर 441.68 00.00 46.06
तोपचांची 841.92 00.00 81.38
बाघमारा 1732.39 464.00 451.54
टुंडी 242.04 393.14 163.99
पूर्वी टुंडी 608.00 00.00 2195.00
धनबाद, रांची, बोकारो में दुरुपयोग
सूत्रों के अनुसार भू-राजस्व विभाग द्वारा गठित एक कमेटी ने अपनी जांच में पाया था कि गैर मजरुआ खास नेचर की जमीन का सबसे ज्यादा दुरुपयोग धनबाद, बोकारो, रांची एवं हजारीबाग में हुआ. इन चार जिलों में हजारों एकड़ भूमि की खरीद-बिक्री सादे हुक्मनामे या पट्टा पर हुई. गैर मजरुआ खास में पूर्व के राजा या जमींदार को किसी को भी जमीन बेचने या बंदोबस्त करने का अधिकार था, लेकिन इसमें रजिस्ट्री की शर्त थी.
बिहार भूमि सुधार कानून बनने के बाद 01.01.1946 को आधार मान कर गैरमजरुआ खास की जमीन को वैध करार दिया गया. इसके आड़ में ही इन चारों जिलाें में अस्सी के दशक में सबसे ज्यादा जमीन बेचे गये. अंचलाधिकारियों से सांठ-गांठ कर रैयती प्रमाणपत्र के जरिये लोगों ने कोयला कंपनियों में नौकरी भी ली व मुआवजा भी लिया.
जमीन की अवैध खरीद-बिक्री राेकने की दृष्टि से यह जरूरी हाे सकता है, लेकिन इससे गेहूं के साथ घुन के भी पिस जाने का अंदेशा भी है. इस तरह के जेनरल ऑर्डर से वाजिब हकवाले रैयताें काे भी परेशान हाेना पड़ता है.
महेश पाेद्दार, सांसद, राज्यसभा

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