25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

धनबाद : …..और बिना कोई पैसे खर्च किये ही एके राय पहुंच गये थे लोकसभा

संजीव झा न बैनर, न होर्डिंग्स, केवल दीवार लेखन कर जीत ली थी जंग खूब हुआ था प्रचलित ‘एक वोट, एक मुठ्ठी चावल’ का नारा धनबाद : खुद जेल में बंद. समर्थक भी जुनूनी. न बैनर, न पोस्टर, न कोई होर्डिंग्स. केवल दीवार लेखन व घर-घर प्रचार कर बड़े-बड़े विरोधियों को परास्त कर एके राय […]

संजीव झा
न बैनर, न होर्डिंग्स, केवल दीवार लेखन कर जीत ली थी जंग
खूब हुआ था प्रचलित ‘एक वोट, एक मुठ्ठी चावल’ का नारा
धनबाद : खुद जेल में बंद. समर्थक भी जुनूनी. न बैनर, न पोस्टर, न कोई होर्डिंग्स. केवल दीवार लेखन व घर-घर प्रचार कर बड़े-बड़े विरोधियों को परास्त कर एके राय चुनाव जीत लोकसभा पहुंच गये. धनबाद से तीन बार सांसद तथा सिंदरी से तीन बार विधायक रह चुके श्री राय का स्वास्थ्य अब ठीक नहीं रहता. वे पिछले एक दशक से चुनावी राजनीति से दूर हैं.
अपना पूरा जीवन आम जनता व समाज सेवा के लिए समर्पित करने वाले श्री राय आज एक पार्टी कार्यकर्ता के घर पाथरडीह में रहते हैं. जब तक स्वास्थ्य ठीक था, तब तक पुराना बाजार स्थित पार्टी के कार्यालय में ही सादगी के साथ रहे. कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. चुनाव हारने के बाद आज तक पूर्व सांसद या पूर्व विधायक को पेंशन के रूप में मिलनेवाली एक फूटी-कौड़ी तक नहीं ली. पूर्व सांसद को मिलने वाली अन्य सुविधाएं भी कभी नहीं ली.
1967 से शुरू हुआ चुनावी सफर: मूल रूप से केमिकल इंजीनियर श्री राय पहला चुनाव वर्ष 1967 में सिंदरी विधानसभा सीट से माकपा प्रत्याशी के रूप में लड़े और जीते. इसके बाद वर्ष 1969, 1972 में भी सिंदरी से विधायक चुने गये.
आपातकाल के विरोध में आंदोलन के कारण जेल में रहते हुए श्री राय मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) प्रत्याशी के रूप में वर्ष 1977 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े. गैर कांग्रेसी दलों ने उनका समर्थन किया था. पिछले 47 वर्षों से श्री राय के सहयोगी रहे पंचम प्रसाद उर्फ राम लाल कहते हैं कि 1977 के चुनाव में उनलोगों के पास कोई पैसा नहीं था. चुनाव लड़ने के लिए एक संचालन समिति गठित की गयी. बीसीसीएल, एफसीआइ सिंदरी तथा बोकारो स्टील कारखाना के मजदूर प्रचार करते थे. उस समय कार्यकर्ता रंग का डिब्बा व ब्रश लेकर खुद दीवार लेखन करने निकल जाते थे. सिर्फ सिंदरी व बोकारो में एक-एक प्रचार गाड़ी निकली थी. बाकी स्थानों पर घर-घर जाकर ही प्रचार किया गया था. कोई खर्च नहीं हुआ.
मासस नेता बाद में भी जब भी चुनाव लड़े, तो कभी धनबल का सहारा नहीं लिया. मासस की तरफ से कभी बूथ खर्च तक नहीं दिया गया. श्री राय प्रचार करने भी खुद किसी की बाइक के पीछे बैठ कर ही जाते थे. चार पहिया वाहनों से प्रचार करने से परहेज करते रहे. उनका मानना था कि चुनाव जीतने के लिए धन-बल नहीं जन-बल की जरूरत होती है.
बूथों पर खिचड़ी से चलता था काम
श्री लाल बताते हैं कि श्री राय गांव-गांव में जाकर लोगों से एक वोट तथा एक मुठ्ठी चावल मांगते थे. आम जनता से मिलने वाले चावल को वहीं के किसी कार्यकर्ता को देते थे. उस चावल से खिचड़ी की व्यवस्था होती थी. मतदान के दिन गांव में कार्यकर्ता खिचड़ी खाकर ही काम करते थे.
कभी बूथ खर्च बोल कर एक पैसा भी किसी को नहीं दिये. चुनाव लड़ने के लिए भी कभी उद्योगपतियों, व्यवसायियों से चंदा नहीं लिया. मजदूर ही चंदा कर राशि देते थे. वह पैसा भी श्री राय खुद नहीं लेते थे. बल्कि पार्टी के अन्य नेता लेते व खर्च करते थे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें