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धनबाद की चार सीटों पर निर्णायक होते हैं कोयला मजदूर, सियासत करते हैं प्रभावित

झरिया, निरसा, बाघमारा सीट के समीकरण में रहती है महती भूमिकाधनबाद सीट की सियासत भी करते हैं प्रभावितभूली टाउनशिप में रहते हैं हजारों मजदूर वोटरधनबाद : धनबाद जिले की चार विधान सभा सीटों पर कोयला क्षेत्र के संगठित व असंगठित मजदूरों का वोट निर्णायक साबित होता है. ये सीटें झरिया, निरसा, बाघमारा और धनबाद हैं. […]

झरिया, निरसा, बाघमारा सीट के समीकरण में रहती है महती भूमिका
धनबाद सीट की सियासत भी करते हैं प्रभावित
भूली टाउनशिप में रहते हैं हजारों मजदूर वोटर
धनबाद : धनबाद जिले की चार विधान सभा सीटों पर कोयला क्षेत्र के संगठित व असंगठित मजदूरों का वोट निर्णायक साबित होता है. ये सीटें झरिया, निरसा, बाघमारा और धनबाद हैं. इन संगठित व असंगठित मजदूरों के परिवार में वोटों की संख्या देखें, तो यह तकरीबन दो लाख हो जाती है. इतनी बड़ी संख्या किसी भी प्रत्याशी को प्रभावित करने के लिए काफी है. अभी विधान सभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. ये मतदाता राजनीतिक दलों एवं उनके प्रत्याशियों के लिए भाग्य-विधाता हैं. इन मतों पर सभी प्रमुख दलों की नजरें टिकी हैं. आंकड़ें बताते हैं कि बीसीसीएल में लगभग 44 हजार स्थायी मजदूर हैं, जबकि लगभग साढ़े चार हजार से अधिक संविदा पर कार्यरत मजदूर हैं. निरसा सीट का कुछ भाग इसीएल का कार्यक्षेेत्र है. साथ ही टाटा एवं सेल की कोलियरी में हजारों मजदूर कार्यरत हैं. इस तरह देखें तो पूरे जिले में कम से कम दो लाख मतदाता सीधे कोलियरी क्षेत्र के हैं. मजदूरों की बड़ी आबादी भूली टाउनशिप में रहती है, जो धनबाद सीट में आती है.

इन क्षेत्रों में है इनका प्रभाव
झरिया, निरसा, बाघमारा में मजदूर एकमुश्त जिस दल या प्रत्याशी को अपना समर्थन दे देते हैं, तो वहां का राजनीतिक समीकरण पलट जाता है. धनबाद सदर विधानसभा क्षेत्र में भी मजदूरों की अच्छी संख्या है. एक समय, यहां मजदूर संगठनों की तूती बोलती थी. मजदूर नेता ही ज्यादा समय विधायक बने. नब्बे के दशक के बाद यहां मजदूर नेताओं की पकड़ ढीली पड़नी शुरू हो गयी. खासकर, आर्थिक उदारीकरण के बाद यहां कोयला कंपनियों में मजदूर संगठन कमजोर होते गये. इसका राजनीतिक असर भी पड़ा. धीरे-धीरे मजदूर नेताओं की जगह सामान्य राजनीतिज्ञों ने ले ली.

लालू राज में टूटा मिथक

झरिया विधानसभा क्षेत्र से मजदूर नेता व जनता मजदूर संघ (जमसं) के संस्थापक सूर्यदेव सिंह चार बार तो उनकी पत्नी कुंती देवी दो बार तथा भाई बच्चा सिंह एक बार व पुत्र संजीव सिंह फिलहाल विधायक हैं. इस बार उनकी पुत्रवधू लड़ रही है. यहां से मजदूर नेता एसके राय भी विधायक रहे हैं. 1991 में झरिया विधानसभा में हुए उप चुनाव में राजद की आबो देवी जीती. लालू यादव के राज में यहां मजदूर राजनीति का वर्चस्व टूटा. 1995 के चुनाव में भी आबो देवी जीतीं. उसके बाद हुए हर चुनाव में यहां मजदूर राजनीति से जुड़े नेता ही जीते हैं.

बाघमारा में मजदूर नेताओं का रहा है जोर

बाघमारा विधानसभा क्षेत्र में भी हमेशा मजदूर नेताओं का बोलबाला रहा है. इंटक के ओपी लाल यहां से तीन बार विधायक रहे. झाकोश्रयू के जलेश्वर महतो भी दो बार जीते. दो बार से बाघमारा का प्रतिनिधित्व कर रहे ढुलू महतो भले ही दलीय राजनीति में भाजपा के साथ हों, मजदूर राजनीति एटक की करते हैं. इस क्षेत्र में असंगठित मजदूरों की खासी संख्या है. इस वोट बैंक को केंद्रित कर ही अधिकांश नेता राजनीतिक मुद्दे उठाते रहे हैं. इस बार भी भाजपा ने ढुलू महतो तथा कांग्रेस ने जलेश्वर महतो को यहां से चुनाव मैदान में उतारा हैं. दोनों ही अपनी यूनियन को सक्रिय किये हुए हैं.

निरसा, धनबाद में भी टारगेट पर मजदूर वोट
लाल झंडा के गढ़ में विधायक अरूप चटर्जी मजदूर राजनीति से सीधे जुड़े हैं. वह सीटू से संबद्ध बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के महामंत्री हैं. वहीं भाजपा की तरफ से प्रत्याशी बनीं अपर्णा सेनगुप्ता भी मजदूर राजनीति में सक्रिय हैं. वह जनता मजदूर संघ (कुंती गुट) से जुड़ी हुई हैं. यहां भी मजदूरों के वोट बैंक पर सभी दलों की नजरें हैं. धनबाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक एवं भाजपा प्रत्याशी राज सिन्हा सीधे तौर पर किसी राजनीतिक संगठन से जुड़े हुए नहीं हैं, लेकिन असंगठित मजदूरों के बीच अपनी पैठ बनाने में लगे हैं. यहां के पूर्व विधायक व कांग्रेस प्रत्याशी मो. मन्नान मल्लिक खुद इंटक के बड़े पदाधिकारी हैं. वर्षों से मजदूर राजनीति में सक्रिय हैं. यहां भी कोयला मजदूरों व उनके परिजनों का खास वोट है.

टुंडी-सिंदरी विधान सभा भी अछूती नहीं

नक्सल प्रभावित टुंडी क्षेत्र के भी कुछ मतदान केंद्र कोलियरी इलाकों में पड़ते हैं. पिछले चुनाव में इस क्षेत्र ने चुनाव परिणाम को पलट दिया था. यहां के विधायक राजकिशोर महतो तथा पूर्व विधायक मथुरा प्रसाद महतो भी ट्रेड यूनियन की राजनीति में सक्रिय हैं. सिंदरी तो एक समय उद्योग के लिए ही प्रसिद्ध था. यहां मजदूर संगठनों की खासी ताकत थी. एके राय जैसे मजदूर नेता भी तीन बार यहां से विधायक रहे. बाद के दिनों में यहां मजदूर राजनीति की पकड़ कमजोर पड़ती गयी. हालांकि, आज भी इस क्षेत्र में संगठित व असंगठित क्षेत्र के हजारों मजदूर कार्यरत हैं.

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