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देवघर : ठगी की हाइटेक तकनीक से पुलिस के भी उड़ जाते हैं होश

संजीत मंडल देवघर : जामताड़ा, देवघर, गिरिडीह, धनबाद व दुमका सहित अन्य जगहों के साइबर अपराधी डिजिटल इंडिया का खूब फायदा उठा रहे हैं. ये लोग डिजिटल तकनीक के सहारे कैसे लोगों के खाते से पैसे उड़ा लेते हैं, ये जानकर पुलिस के होश उड़ जाते हैं. क्योंकि आज तक साइबर ठगी की तकनीक की […]

संजीत मंडल
देवघर : जामताड़ा, देवघर, गिरिडीह, धनबाद व दुमका सहित अन्य जगहों के साइबर अपराधी डिजिटल इंडिया का खूब फायदा उठा रहे हैं. ये लोग डिजिटल तकनीक के सहारे कैसे लोगों के खाते से पैसे उड़ा लेते हैं, ये जानकर पुलिस के होश उड़ जाते हैं. क्योंकि आज तक साइबर ठगी की तकनीक की तह तक पुलिस नहीं पहुंच पायी है. अच्छे-अच्छे साइबर एक्सपर्ट परेशान हैं.
जबकि पुलिस ने पिछले एक साल में 300 से अधिक साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया है. लेकिन आज तक उनके मुंह से पुलिस तकनीक नहीं उगलवा पायी. बस ऊपर-ऊपर की बातें ही पुलिस जान पाती है. जैसे एटीएम की क्लोनिंग करके निकाल लिये पैसे, अॉनलाइन मार्केटिंग के जरिये ठगी कर लिया, पासवर्ड और एटीएम नंबर आदि की जानकारी मांग कर निकाल लिया पैसा… आदि आदि. नतीजा है कि साइबर अपराधी पकड़े तो जाते हैं
लेकिन जिनके खाते से राशि की निकासी हो गयी है, 99 फीसदी लोगों के पैसे वापस ला पाने में पुलिस सफल नहीं हो रही है. लोगों का जो पैसा चला गया सो चला गया, लोग मन मसोस कर रह जाते हैं. पुलिस बस साइबर अपराधियों को जेल भेज कर, चंद एटीएम, पैन कार्ड, आधार कार्ड, बैंक खाता, कुछ नकद, कार या कुछ सामान आदि जब्त करके उस फाइल को बंद कर देती है.
पैसे उड़ाने की तकनीक की तह तक नहीं पहुंच पायी पुलिस, समय पर सूचना मिल भी जाये, तो भी नहीं होती रिकवरी
साइबर एक्सपर्ट से आगे की सोचते हैं साइबर अपराधी
पुलिस को साइबर ठगी की कुछ तकनीक साइबर अपराधियों से प्राप्त हुए हैं. लेकिन इस तकनीक को जानने के बाद भी पुलिस ये गुत्थी नहीं सुलझा पायी है कि आखिर पैसे कैसे ट्रांसफर हो जाते हैं. ये बात पुलिस के साइबर एक्सपर्ट की समझ से भी परे है. कई बार साइबर एक्सपर्ट जागरूकता अभियान के लिए निकले.
जिले में घूम-घूमकर जागरूकता अभियान चलाया कि ठगी की जानकारी सही समय पर मिल जाये, तो आपकी राशि आपको वापस मिल सकती है. लेकिन वह सब कहने की ही बात रह गयी. समय पर सूचना उपलब्ध करा देने के बाद भी साइबर एक्सपर्ट राशि की रिकवरी करा पाने में फेल रहे हैं. कइयों ने तो महीनों पहले निकासी की सूचना दी, लेकिन आज तक राशि नहीं आ पायी है. कुल मिलाकर कहा जाये, तो साइबर अपराधियों की तकनीक के आगे साइबर एक्सपर्ट, पुलिस का साइबर सेल भी बेबस है.
साइबर ठग सॉफ्टवेयर से निकालते हैं डिटेल
सिम का क्लोन तैयार करने में मोबाइल चुराने वाले गिरोह भी इनका सहयोग करते हैं. जब किसी का मोबाइल चोरी हो जाता है, तो जब तक आप सिम को ब्लॉक नहीं कराते या नया सिम लेते हैं, तब तक सॉफ्टवेयर के जरिये साइबर ठग सारी डिटेल निकाल लेते हैं. अगर आपने बैंक से मोबाइल नंबर को लिंक कराया होगा, तो भी सॉफ्टवेयर के जरिये इसका विवरण निकाला जा सकता है.
एटीएम कार्ड की कैसे होती है क्लोनिंग
एक गिरफ्तार साइबर अपराधी के अनुसार, वे लोग एटीएम मशीन में पिन होल कैमरा लगा देते हैं. जैसे ही खाता धारक मशीन में एटीएम कार्ड डाल कर अपना पिन नंबर डालता है, नंबर की तस्वीर कैमरे में आ जाती है.
यह व्यवस्था केवल एटीएम में ही नहीं, बल्कि ई-पॉश मशीन, मॉल अथवा दूसरे शॉपिंग कांप्लेक्स में काम करनेवालों की मिलीभगत से स्कैनर डिवाइस के जरिये भी होती है. इससे भी ग्राहक का पिन कोड नंबर अपराधियों को मालूम हो जाता है. पिन नंबर मिलते ही साइबर अपराधी क्लोन एटीएम कार्ड मशीन में डाल कर स्कैनर से और पिन होल कैमरा से मिले पिन नंबर को डाल कर पैसे की निकासी कर लेते हैं. अपराधी सिर्फ पिन नंबर ही नहीं, एटीएम कार्ड का पूरा इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्राप्त कर लेते हैं और खाता धारकों की राशि अपने खाते में ट्रांसफर करा लेते हैं.
ऑनलाइन मार्केटिंग के नाम पर ऐसे करते हैं ठगी
साइबर अपराधियों का यह गिरोह नामी-गिरामी कई ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनियों के नाम पर अवैध तरीके से ठगी कर रहे हैं. पेटीएम, फ्लिपकार्ट, शॉपक्लूज, क्लब फैक्ट्री, लाइम रोड, वॉनिक्स, टीवी 18 होम शॉप जैसी कंपनियों के खरीदारों का डाटा फर्जी तरीके से प्राप्त कर जाली मोबाइल नंबरों से इन खरीदारों को फोन करते हैं.
खरीदारी की एवज में कार, मोटरसाइकिल एवं अन्य महंगे सामानों को लाॅटरी के रूप में उनके नाम से निकलने का झांसा देकर रजिस्ट्रेशन के रूप में एक निश्चित धनराशि फर्जी बैंक खाते में मंगवाते हैं. उसके बाद उन पैसों को एटीएम तथा नेट बैंकिंग द्वारा निकाल लेते हैं.
कैसे होता है पैसा ट्रांसफर
साइबर अपराधी पैसे की निकासी की हर तकनीक की जानकारी रखते हैं. ये साइबर ठग नये सिम से गूगल के प्ले स्टोर पर जाकर पेटीएम वॉलेट, भीम एप या पेज एप जैसे अप्लीकेशन डाउनलोड करते हैं. ऐसे अप्लीकेशन में पासवर्ड की जगह अंगूठा या अंगुलियों के निशान ही पर्याप्त हैं. पहले से क्लोन किये हुए रबर स्टांप का इस्तेमाल मोबाइल एप के ऊपर रख कर करते हैं और ट्रांजेक्शन के लिए खाता नंबर या दूसरा पेटीएम आइडी डालते हैं, जिस पर रकम ट्रांसफर कर लेते हैं.

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