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RepublicDay2020: जानिए, संविधान में शामिल मौलिक अधिकारों के मायने क्या हैं

नयी दिल्ली: भारत कल अपना 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. 26 जनवरी 1950 को ही भारत का संविधान लागू हुआ था. हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ में समारोह का आयोजन किया जाता है. संविधान. किसी भी देश को चलाने के लिए सबसे बड़ा स्तंभ होता है. इसमें नागरिकों को दिये जाने […]

नयी दिल्ली: भारत कल अपना 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. 26 जनवरी 1950 को ही भारत का संविधान लागू हुआ था. हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ में समारोह का आयोजन किया जाता है. संविधान. किसी भी देश को चलाने के लिए सबसे बड़ा स्तंभ होता है. इसमें नागरिकों को दिये जाने वाले अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की व्याख्या होती है. चुनी हुई सरकारें इसी के आधार पर अपना काम करती है. आज की स्टोरी में हम बात करेंगे संविधान में नागरिकों को दिये गए मौलिक अधिकारों के विषय में.

मौलिक अधिकारों की अवधारणा क्या है

मौलिक अधिकार दरअसल, मानव सभ्यता का आवश्यक अंग है. इसके बिना जीवन का कोई औचित्य नहीं है. ये अधिकार मनुष्य को प्राकृतिक तौर पर ही मिला है. जैसे कि उसे कैसा जीवन पसंद है. वो क्या बनना चाहता है. अपने जीवन में क्या करना चाहता है. उसे बोलने की आजादी, मित्रता की आजादी, अध्ययन की आजादी. ये सारी चीजें किसी भी मनुष्य को प्राकृतिक तौर पर ही मिली होती हैं. हालांकि जब मानव सभ्यता के आरंभिक आधुनिक युग में राजवंशो और साम्राज्यवादी शासनों का बोलबाला था तब आम नागरिकों को ये प्राकृतिक अधिकार नहीं मिले थे.

लोग अपनी मर्जी से बोल नहीं सकते थे. रोजगार नहीं कर सकते थे. कहीं आ-जा नहीं सकते थे. लोगों को गुलामों की तरह बेचा जाता था. उन्हें अपनी जिंदगी, अभिव्यक्ति यहां तक कि अपने शरीर तक में अपना अधिकार नहीं मिलता था. काम के घंटे तय नहीं थे और ना ही वोट डालने का अधिकार था.

वर्षों तक लोगों को नहीं मिला था अधिकार

भारत में तो ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं कि दलितों और आदिवासियों को दिन में कहीं आने-जाने की मनाही थी. सार्वजनिक स्थानों पर जाने की मनाही थी. वो ना तो शिक्षा हासिल कर सकते थे और ना ही मंदिरों में जा सकते थे. यहां तक कि उन्हें सार्वजनिक जलाशयों के इस्तेमाल तक कि अनुमति नहीं थी. औपनिवेशिक शासन के दौरान किसानों को अपनी मर्जी से फसल उगाने की अनुमति नहीं थी. फसल उगा लिया तो मर्जी के हिसाब से ना तो बेचने की अनुमति थी और ना ही अपने लिये इस्तेमाल करने की.दक्षिण भारत में तो अमानवीयता की पराकाष्ठा पार गयी. केरल में एक खास समुदाय की महिलाओं को अपना स्तन ढकने तक की आजादी नहीं दी गयी थी.

इसलिए जब भारत को आजादी मिली तो संविधान निर्माताओं ने मनुष्य को प्राकृतिक तौर पर हासिल अधिकारों को व्यवस्थित ढंग से संविधान में प्रमुखता से शामिल करने का फैसला किया. इसकी रूपरेखा आयरलैंड के संविधान से ली गयी.

आईए जानते हैं कुछ मौलिक अधिकारों को

तो चलिए, जान लेते हैं कि भारतीय संविधान में शामिल मौलिक अधिकार कौन से हैं और इसकी पूरी व्यवस्था क्या है. संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है. इसके अलग-अलग अनुच्छेदो में विभिन्न मौलिक अधिकारों का सविस्तार उल्लेख किया गया है. अनुच्छेद 14 से 19 तक नागरिकों की स्वतंत्रता और समानता का जिक्र किया गया है. जिसके मुताबिक नागरिकों को स्वतंत्रता के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार, अपनी मर्जी से किसी भी धार्मिक विश्वास को मानने का अधिकार आदि दिया गया है.

इसके अलावा समानता के अधिकार के अंतर्गत, धर्म-जाति-संप्रदाय-मूलवंश के आधार पर भेदभाव के बिना सबको शिक्षा और सरकारी सेवाओं में समानता का अधिकार तथा सामाजिक स्तर पर भी समानता का मौलिक अधिकार दिया गया है. लोग सरकार चुनते हैं इसलिए उनका हक बनता है कि वो किसी भी सरकारी योजना, नीति या गतिविधि की आलोचना कर सकें. लिख सकें और बोल सकें. इसलिए संविधान में अनुच्छेद 19 में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व क्या है

सभा करने की तथा भाषण देने की भी स्वतंत्रता दी गयी है. बीते वर्ष आधार कार्ड के मसले पर संशय के बाद सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हर व्यक्ति को अधिकार है कि वो जिन बातों को साझा नहीं करने चाहता उन्हें इसका हक दिया जाये. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को भी मौलिक अधिकार माना. ऐसा इसलिए किया गया है ताकि लोग अपने निजी और सार्वजनिक जिंदगी मेंं सकारात्मकता के साथ अपनी और राष्ट्र की बेहतरी के लिये काम कर सकें. नागरिक होने के नाते सुरक्षित और सुकून महसूस कर सकें. अपने व्यक्तित्व के विकास तथा बेहतर जिंदगी के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर सकें.

आलोचना कर सकें और सही चुनने का विवेक हासिल कर सकें. किसी को भी ऐसा ना लगे कि उसे पर्याप्त नहीं मिला, और ना ही ऐसा लगे कि एक मनुष्य और नागरिक होने के नाते उसके साथ सही और समान व्यवहार नहीं किया गया.

मौलिक अधिकारों का किसी भी राष्ट्र की उन्नति और विकास में महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि यदि सभी नागरिकों को समान अवसर मिलेगा तो वो अपनी प्रतिभा का संपूर्ण उपयोग कर पाएंगे. जब अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग कर पाएंगे तो बेहतर मानव संसाधन के तौर पर विकसित होंगे और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें.

कैसे सुरक्षित रहेंगे हमारे मौलिक अधिकार

इसलिए, जब हम कल 71वां गणतंत्र दिवस मनाएंगे तो जरूर सोचना होगा कि नागरिकों को मिलने वाला मौलिक अधिकार कहीं दबा ना दिया जाए. शासन-सत्ता की अंधी दौड़ में कहीं मौलिक अधिकारों का गला ना घोंट दिया जाए. किसी को भी ऐसा ना लगे कि उसके साथ न्याय नहीं हुआ. क्योंकि मौलिक अधिकारों में एक तत्व प्रमुखता से शामिल किया गया है जो न्याय के समक्ष समानता और संरक्षण पर आधारित है.

जाहिर है कि नागरिकों में चेतना जिंदा रहेगी. आलोचना करने का अधिकार याद रहेगा और वो इसका उपयोग सकारात्मक रूप से व्यक्तित्व, समाज और राष्ट्र के निर्माण में करेंगे.

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