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सुप्रीम कोर्ट का सवाल – पटाखों पर ही पाबंदी क्यों, ऑटोमोबाइल से भी होता है प्रदूषण

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सवाल किया कि लोग पटाखा उद्योग के पीछे क्यों पड़े हैं, जबकि ऐसा लगता है कि इसके लिए वाहन प्रदूषण कहीं अधिक बड़ा स्रोत हैं. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र से जानना चाहा कि क्या उसने पटाखों और आॅटोमोबाइल से होनेवाले प्रदूषण के बीच कोई […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सवाल किया कि लोग पटाखा उद्योग के पीछे क्यों पड़े हैं, जबकि ऐसा लगता है कि इसके लिए वाहन प्रदूषण कहीं अधिक बड़ा स्रोत हैं. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र से जानना चाहा कि क्या उसने पटाखों और आॅटोमोबाइल से होनेवाले प्रदूषण के बीच कोई तुलनात्मक अध्ययन कराया है.

न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने पटाखा निर्माण उद्योग और इसकी बिक्री में शामिल लोगों का रोजगार खत्म होने पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा, हम बेरोजगारी बढ़ाना नहीं चाहते हैं. पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी से जानना चाहा, क्या पटाखों से होनेवाले प्रदूषण और आॅटोमोबाइल से होनेवाले प्रदूषण के बारे में कोई तुलनात्मक अध्ययन किया गया है? ऐसा लगता है कि आप पटाखों के पीछे भाग रहे हैं, जबकि प्रदूषण में इससे कहीं अधिक योगदान शायद वाहनों से होता है. पीठ ने कहा, आप हमें बेरोजगारी पर अंकुश लगाने के बारे में भी कुछ बतायें. हम लोगों को बेरोजगार और भूखा नहीं रख सकते. ऐसे क्षेत्र हैं जहां पटाखों का इस्तेमाल किया जा सकता है. पीठ ने कहा, हम उन्हें (रोजगार गंवानेवालों को) पैसा नहीं दे सकते. हम उनके परिवार को सहारा नहीं दे सकते. यह बेरोजगारी है.

पीठ ने यह सवाल भी किया कि पटाखों के निर्माण पर पाबंदी कैसे लगायी जा सकती है यदि यह कारोबार वैध है और लोगों के पास कारोबार करने का लाइसेंस है. पीठ ने टिप्पणी की, किसी ने भी अनुच्छेद 19 (जो कहता है कि नागरिकों को कोई भी पेशा अपनाने या नौकरी, कारोबार या व्यापार करने का अधिकार है) के संबंध में इस पहलू को नहीं परखा. यदि व्यापार कानूनी है और आपके पास इसके लिए लाइसेंस है तो आप कैसे इसे रोक सकते हैं? आप लोगों को कैसे बेरोजगार कर सकते हैं? न्यायालय देश भर में पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था. याचिका में दलील दी गयी है कि इनकी वजह से प्रदूषण में वृद्धि होती है.

शीर्ष अदालत ने पिछले साल कहा था कि दीवाली और दूसरे त्योहारों के अवसर पर देश में लोग शाम आठ बजे से दस बजे तक पटाखे चला सकते हैं. न्यायालय ने सिर्फ हरित पटाखों के निर्माण और बिक्री की अनुमति दी थी जिनमें आवाज कम होती है और हानिकारक रसायनों की मात्रा भी कम होती है. इस मामले में सुनवाई के दौरान मंगलवार को अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ने पीठ से कहा कि पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पेसो) और दूसरी विशेषज्ञ एजेन्सियां ने प्रयोग किया और उन्होंने हरित पटाखों में प्रयुक्त होनेवाले मिश्रण का फार्मूला पेश किया है. इन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट के इस्तेमाल के बारे में नाडकर्णी ने कहा कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन और शीर्ष अदालत ने भी इससे पहले नाइट्रेट पर प्रतिबंध लगा दिया था. उन्होने कहा कि पटाखों से होनेवाले प्रदूषण को देखने के मकसद से ही परीक्षण में इसका इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने सीएसआईआर और नीरी की बैठक की कार्यवाही के विवरण का हवाला दिया और कहा कि पेसो द्वारा संवद्धिर्त फार्मूले की उत्पादन के लिए मंजूरी 21 मार्च तक देने का लक्ष्य रखा गया है.

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता गोपाल शंकरनाराण्यान ने वायु और ध्वनि प्रदूषण का मुद्दा उठाते हुए कहा कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी में वार्षिक प्रदूषण का 2.5 फीसदी त्योहारों के दौरान कुछ दिन पटाखे चलाने की वजह से होता है. पीठ ने जब पटाखा निर्माण और इनकी बिक्री से जुड़े लोगों का रोजगार खत्म होने का मुद्दा उठाया तो अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ने कहा कि इसी वजह से हरित पटाखों की अवधारणा सामने आयी है. शंकरनारायणन ने भी कहा कि शीर्ष अदालत ने पटाखों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का कोई आदेश नहीं दिया है. पीठ को यह भी बताया गया कि वाहनों से होनेवाले प्रदूषण के साथ ही पराली जलाने की वजह से होनेवाले वायु प्रदूषण का मुद्दा भी न्यायालय में लंबित है. इस मामले में अब तीन अप्रैल को आगे सुनवाई होगी.

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