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रायसीना डायलॉग : दुनिया के नेताओं ने वैश्विक चुनौतियों पर की चर्चा

नयी दिल्ली : दुनिया की राजनीति पर भारत का वैश्विक सम्मेलन ‘रायसीना डायलॉग’ मंगलवार को शुरू हुआ, जिसमें सात पूर्व राष्ट्राध्यक्षों ने दुनिया के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों पर अपने विचार रखे. इनमें अमेरिका-ईरान के बीच तनाव, अफगान शांति प्रक्रिया और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां भी शामिल हैं. उदघाटन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, डेनमार्क […]

नयी दिल्ली : दुनिया की राजनीति पर भारत का वैश्विक सम्मेलन ‘रायसीना डायलॉग’ मंगलवार को शुरू हुआ, जिसमें सात पूर्व राष्ट्राध्यक्षों ने दुनिया के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों पर अपने विचार रखे. इनमें अमेरिका-ईरान के बीच तनाव, अफगान शांति प्रक्रिया और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां भी शामिल हैं.

उदघाटन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, डेनमार्क के पूर्व प्रधानमंत्री और नाटो के पूर्व महासचिव आंद्रेस रासमुसेन ने कहा कि वह लोकतांत्रिक देशों का एक ऐसा वैश्विक गठबंधन देखना चाहेंगे जो दमनकारी शासकों और सत्ता के खिलाफ खड़ा हो और इस तरह के गठबंधन में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. रासमुसेन ने कहा, मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रशंसक हूं और इस गठबंधन में भारत की भागीदारी महत्वपूर्ण होगी. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन रायसीना डायलॉग में उदघाटन भाषण देने वाले थे, लेकिन अपने देश के विभिन्न हिस्सों में जंगलों में लगी आग के कारण उन्होंने चार दिवसीय दौरा टाल दिया और इसमें अपना वीडियो संदेश भेजा. मॉरिसन ने अपने संदेश में कहा कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत महत्वपूर्ण देश है और रहेगा. उन्होंने कहा, भारत-प्रशांत क्षेत्र दर्शाता है कि भारत की शक्ति और उद्देश्य क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण रहेंगे और साझी रक्षा चुनौतियों को सुलझाने और समर्थन देने में काफी अहम हैं. हिंद महासागर में भारत काफी सक्रिय भूमिका में है.

कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत की विदेश नीति कई पक्षों के साथ व्यापक संपर्क साधने, बहुध्रवीय दुनिया में अपने हितों को आगे बढ़ाने और दुनिया की अच्छाई में योगदान करने की है. उदघाटन सत्र के दौरान न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलन क्लार्क, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर, स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ड, भूटान के पूर्व प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे और दक्षिण कोरिया के पूर्व प्रधानमंत्री हांग सुइंग सू ने वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा की. दुनिया के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौतियों में वैश्वीकरण, एजेंडा 2030, आधुनिक विश्व में प्रौद्योगिकी की भूमिका और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर चर्चा हुई.

उदघाटन सत्र के दौरान अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद पैदा हुए अमेरिका-ईरान तनाव पर भी चर्चा हुई. कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री हार्पर ने कहा कि ईरान की सरकार में बदलाव के बगैर पश्चिम एशिया में शांति संभव नहीं है. हार्पर ने कहा, जलवायु परिवर्तन से लक्ष्यों के माध्यम से नहीं निपटा जा सकता. हमें शून्य उत्सर्जन तकनीक और विकास की जरूरत है. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति करजई ने कहा कि अमेरिकियों को समझना चाहिए कि वे दूसरे को अपनी इच्छा मनवाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. उन्होंने कहा, वे इसे अफगान के साथ नहीं कर सके, तो फिर ईरान के साथ कैसे कर लेंगे? उन्होंने कहा कि बुद्धिमता से काम लिया जाना चाहिए और यह बुद्धिमत्ता अमेरिका को दिखानी होगी.

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को साझा करते हुए न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री क्लार्क ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना जरूरी है, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय सहमति हासिल करना महत्वपूर्ण है. टोबगे ने कहा कि वह बहुपक्षवाद में विश्वास करते हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जलवायु परिवर्तन पर कुछ नहीं कर सका. उन्होंने कहा, अभी तक जलवायु पर यूएनएससी केवल एक प्रस्ताव पारित कर सका है. इसे बदलना होगा. जलवायु सबसे बड़ी चुनौती है.

अफगानिस्तान में शांति के पहलुओं पर बात करते हुए करजई ने उम्मीद जतायी कि सरकार और तालिबान के बीच अंतर अफगान वार्ता होगी. उन्होंने कहा, शांति को लेकर हमें उम्मीद है, हम अफगानी हैं. सहिष्णु लोकतंत्र के समक्ष उनकी बड़ी चुनौतियों में अपने ही देश में उन्हें राजनीतिक विरोध का सामना करना प्रमुख है जो मुख्यत: नयी तकनीक, संगठनों का विषम वितरण और राष्ट्रवाद के उदय के सम्मिलन से उभरा है. हार्पर ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत स्व परिभाषित देश होगा. उन्होंने कहा, भारत पश्चिमी सहिष्णु देशों का केंद्र नहीं होने जा रहा है. वर्तमान सरकार में पहचान व्यापक तौर पर लौट रही है.

रासमुसेन ने कहा कि नाटो पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है और शीत युद्ध समाप्त होने के बाद से और भी मजबूत हुआ है. उन्होंने कहा, नाटो का दायरा और बढ़ना चाहिए जैसे पश्चिम एशिया में. नाटो पश्चिम एशिया में सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित कर सकता है. आईएसआईएस विरोधी गठबंधन का नेतृत्व कर सकता है. रायसीना डायलॉग के पांचवें संस्करण का आयोजन विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन सम्मिलित रूप से कर रहा है. इसमें सौ से अधिक देशों के 700 अंतरराष्ट्रीय भागीदार हिस्सा लेंगे और इस तरह का यह सबसे बड़ा सम्मेलन है.

तीन दिनों तक चलने वाले सम्मेलन में 12 विदेश मंत्री हिस्सेदारी करेंगे जिसमें रूस, ईरान, ऑस्ट्रेलिया, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, एस्तोनिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, लातविया, उज्बेकिस्तान और ईयू के विदेश मंत्री शामिल हैं. ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ की भागीदारी का इसलिए महत्व है कि ईरान के कुद्स फोर्स के कमांडर कासीम सुलेमानी की हत्या के बाद वह इसमें हिस्सा ले रहे हैं. जरीफ और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव मंगलवार की रात को यहां पहुंचेंगे और अगले दिन अपना संबोधन देंगे.

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