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धान बना देगा हरियाणा को राजस्थान जैसा रेगिस्तान?

नयी दिल्ली : धान की वजह से हरियाणा जल्द ही राजस्थान जैसे रेगिस्तान में तब्दील हो जायेगा. हरियाणा के कृषि विभाग के अधिकारियों ने ऐसी आशंका व्यक्त की है. उनका कहना है कि धान की फसल के लिए जिस तरह से भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, वह वक्त दूर नहीं, जब हरे-भरे […]

नयी दिल्ली : धान की वजह से हरियाणा जल्द ही राजस्थान जैसे रेगिस्तान में तब्दील हो जायेगा. हरियाणा के कृषि विभाग के अधिकारियों ने ऐसी आशंका व्यक्त की है. उनका कहना है कि धान की फसल के लिए जिस तरह से भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, वह वक्त दूर नहीं, जब हरे-भरे हरियाणा में भी दूर-दूर तक राजस्थान जैसे रेगिस्तान नजर आने लगे.

अंग्रेजी समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, धान की अत्यधिक पैदावार की चाहत में तेजी से हो रहे भू-जल के अत्यधिक दोहन की वजह से हरियाणा का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है. फलस्वरूप कई जिले ‘डार्क जोन’ में तब्दील हो गये हैं.

अधिकारियों का कहना है कि एक किलो चावल की पैदावार के लिए 2,000 से 5,000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. मिट्टी, धान की बुवाई के समय और धान की बीज के किस्म के हिसाब से पानी की जरूरत होती है. हरियाणा सरकार के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 में इस राज्य में 39.89 लाख टन धान की फसल हुई थी, जो वर्ष 2018 में बढ़कर 45.16 लाख टन हो गयी.

इस दौरान ट्यूबवेल की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ. कुछ हजार ट्यूबवेल की संख्या महज चार साल में बढ़कर 8 लाख तक पहुंच गयी. इनके जरिये भूगर्भ जल का जरूरत से ज्यादा दोहन हुआ. जैसे-जैसे जलस्तर घटता है, कुआं में जलभरण क्षमता भी घट जाती है.

स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि हरियाणा सरकार ने 64 प्रखंडों को डार्क जोन या ड्राई जोन घोषित कर दिया है. इन इलाकों में कूप सूख चुके हैं. स्थिति इतनी विकराल हो गयी है कि नये बोरवेल लगाने के लिए प्रशासन की अनुमति अनिवार्य कर दी गयी है.

इन इलाकों को घोषित किया गया है डार्क जोन

हरियाणा के कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां का जलस्तर बहुत नीचे गिर चुका है. भू-गर्भ जल के री-चार्ज होने की दर काफी कम है. अंगरग्राउंड वाटर जितनी तेजी से री-चार्ज होता है, उससे बहुत अधिक तेजी से पानी निकाला जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दो दशकों में किसानों ने भू-गर्भ जल भंडार से 74 फीसदी पानी निकाल लिये. कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यदि इसी तरह भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन जारी रहा, तो हरियाणा में डार्क जोन घोषित ये इलाके मरुस्थल (रेगिस्तान) बन जायेंगे.

महेंद्रगढ़ जिला की स्थिति सबसे खराब

हरियाणा में जलस्तर की बात करें, तो महेंद्रगढ़ जिला की स्थिति सबसे खराब है. वर्ष 1974 में यहां का जलसत्र 16.11 मीटर हुआ करता था, जो जून, 2018 में 48.54 मीटर रह गया. इन 42 वर्षों में राज्य के जलस्तर में औसतन 10.38 मीटर की गिरावट दर्ज की गयी. सिर्फ पिछले पांच सालों में जलस्तर 2.20 मीटर तक गिर गया है. हरियाणा के 22 जिलों में से आधे जिलों का स्तर एक से छह मीटर तक घट चुका है.

किस जिले में कितना घटा जलस्तर

फतेहाबाद में जलस्तर में 6.17 मीटर की गिरावट दर्ज की गयी है. कैथल में 5.67 मीटर, कुरुक्षेत्र में 5.37 मीटर, पानीपत में 4.40 मीटर, रेवाड़ी में 3.96 मीटर, महेंद्रगढ़ में 3.36 मीटर, सिरसरा में 2.14 मीटर, फरीदाबाद में 2.10 मीटर, सोनीपत में 2.08 मीटर, भिवानी में 1.79 मीटर, पलवल में में 1.48 मीटर, जिंद में 1.39 मीटर और करनाल में 1.12 मीटर तक जलस्तर गिर चुका है.

हरियाणा के लिए नुकसानदेह है धान की फसल

राज्य सरकार भी मानती है कि धान की फसल हरियाणा के लिए बहुत फायदेमंद नहीं है. इसकी वजह से भू-जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है. वहीं, विशेषज्ञ कहते हैं कि खेत की पैदावार बनाये रखने के लिए दहलन और तिलहन की खेती करनी चाहिए, क्योंकि इसमें न्यूनतम खाद की जरूरत होती है. सरकार ने कहा है कि पानी बचाने के लिए स्प्रिंकलर इरिगेशन, माइक्रो स्प्रिंकलर इरिगेशन और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम अपनाने की सख्त जरूरत है.

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