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जंग – ए – आजादी में बिहार की महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर लिया था हिस्सा

पटना : इतिहास की पुस्तकों को पलटने से पता चलता है कि बिहार में हजारों महिलाओं ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था. इतिहास में मुख्य रूप से उन महिलाओं का नाम दर्ज है जो अगली कतार में थीं.इन्हें अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना और दमन का शिकार बनाया. माना […]

पटना : इतिहास की पुस्तकों को पलटने से पता चलता है कि बिहार में हजारों महिलाओं ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था. इतिहास में मुख्य रूप से उन महिलाओं का नाम दर्ज है जो अगली कतार में थीं.इन्हें अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना और दमन का शिकार बनाया. माना जाता है कि इस जंग में बिहार की महिलाओं की हिस्सेदारी 1916-17 से काफी बढ़ी.
यही वह वक्त था जब गांधीजी के हाथों में राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व आया. इससे पूर्व के आंदोलन में िस्त्रयों की भागीदारी उतनी नहीं थी, जिसके कई कारण थे. गांधीजी ने जब आंदोलन को अहिंसात्मक रूप दिया तो महिलाओं ने इसमें अच्छी भागीदारी निभायी.
अगस्त 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बंबई में आयोजित था. इसमें मौंटेगु – चेम्सफाेर्ड के प्रस्तावों को निराशाजनक बताते हुए बिहार के विख्यात बैरिस्टर हसन इमाम के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल भेजने का निर्णय लिया गया. इसमें हसन इमाम के साथ उनकी पत्नी और बेटी शमी भी गयी थी. जालियावालाबाग हत्याकांड के बाद देश भर में गुस्से की लहर दौड़ गयी. इसके बाद बिहार में जो आंदोलन हुए उसमें महिलाओं ने भी आगे बढ़ कर भाग लिया.
1921 के अक्तूबर में हजारीबाग में बिहार के विद्यार्थियों का सम्मेलन हुआ़ इसकी अध्यक्षता सरला देवी ने की, इसमें उन्होंने सबों से अपील करते हुए कहा कि आप स्कूल- कॉलेजों का परित्याग करें और प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत अागमन पर होने वाले समारोह का बहिष्कार करें. पटना में इस आंदोलन की अगुआई सावित्री देवी ने की थी.
इन्हीं दिनों पटना में अंग्रेज शासन के खिलाफ कई जनसभाएं सावित्री देवी की अध्यक्षता में हुई. पटना में श्रीमती सीसी दास और उर्मिला देवी ने भी बढ़चढ़ कर आंदोलनों का नेतृत्व किया. कुछ दिनों बाद जब राष्ट्रीय आंदोलनों की गति धीमी हो गयी तो बिहार की क्रांतिकारी महिलाओं ने चरखा संभालने का काम किया वे जागरूकता फैलाने का काम करने लगीं.
वे निर्भीकतापूर्वक हर प्रकार के सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेतीं, राष्ट्रीय नेताओं के आगमन पर सभा – सम्मेलनों में उनका साथ देतीं और उनके संकेतों पर लड़ाई के मैदान में कूद पड़ने के लिए हर समय तैयार रहती थीं. गया कांग्रेस के समय उर्मिला देवी ने इसे सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बंबई में आयोजित था
1930 महात्मा गांधी ने देशव्यापी नमक सत्याग्रह का आह्वान किया.
1932 में बिहार और उड़ीसा की सरकार ने अपने अफसरों को आदेश दिया कि महिला सत्याग्रहियों के प्रति कड़ा से कड़ा रुख अपनाया जाये
1933 में गांधी गिरफ्तारी दिवस मनाया गया. इसको लेकर जगह – जगह प्रदर्शन हुए और गिरफ्तारियां हुईं
1942 में जब छात्रों की हड़ताल शुरू हुई तो पटना मेडिकल कॉलेज के छात्रों के साथ यहां के अस्पताल की नर्सों ने भी हड़ताल कर दी.
1942 की इस क्रांति में अंग्रेजों ने क्रूरता के साथ उनका दमन किया. बड़े पैमाने पर महिलाएं गिरफ्तार हुई ं
स्वतंत्रता आंदोलन में जेल जानी वाली बिहार की महिलाएं
विद्यावती देवी पटना एक वर्ष
जानकी देवी गया 11 महीने
सरस्वती देवी गया दो माह
सुरजया देवी गया दो माह
नारायणी देवी नवादा छह माह
तेतरी देवी गया एक वर्ष
राधाकुशन गया दो माह
रामस्वरूप देवी सारण एक वर्ष
सावित्री देवी शाहाबाद दो माह
शांति देवी सारण छह माह
शांति देवी गया छह माह
दुर्ग देवी गया दो माह
जनकदुलारी देवी छपरा तीन माह
शारदा देवी सारण चार वर्ष
सरस्वती देवी सारण तीन वर्ष
रामस्वरूप देवी सारण चार वर्ष
सरस्वती व साधना राजनैतिक कार्यों के अपराध में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थीं
6 अप्रैल 1930 महात्मा गांधी ने देशव्यापी नमक सत्याग्रह का आह्वान किया. इसमें बिहार की महिलाएं आगे बढ़ कर शामिल हुईं और नमक कानून को भंग किया. शाहाबाद जिले में राम बहादुर , बार-एट-लॉ की पत्नी ने सासाराम थाने के सामने नमक बनाकर कानून तोड़ दिया था.
जगह-जगह शराबंदी आंदोलन और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार होने लगा. इसी बीच हजारीबाग जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा सरस्वती देवी और हजारीबाग कॉलेज में फिजिक्स के प्राध्यापक की बेटी साधना देवी गिरफ्तार कर ली गयीं. यह राजनैतिक कार्यों के अपराध में गिरफ्तार होने वाली बिहार की पहली महिलाएं थीं.
सरस्वती देवी को छह माह के कारावास की सजा सुनायी गयी. जुलाई 1930 में गिरिडीह की एक महिला मीरा देवी सत्याग्रह आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार हुईं. वह गिरफ्तार होने वाली तीसरी महिला थीं. पटना में इस दौरान स्त्रियों के आंदोलन का नेतृत्व श्रीमती हसन इमाम कर रही थीं.
गांधी जी के आह्वान पर अपने आभूषणों का किया दान
1921 के सत्याग्रह की समाप्ति के बाद गांधीजी ने रचनात्मक कार्यक्रमों पर जोर दिया. इसके पीछे अगले आंदोलनों के लिए भारतीयों को एकजुट करना था. इसमें भी उन्हें बिहार की महिलाओं का काफी सहयोग मिला. इस सिलसिले में गांधीजी जब बिहार आये तब तक देशबंधु चितरंजन दास की मृत्यु हो चुकी थी.
उन्होंने देशबंधु स्मारक कोष के लिए अर्थ – संग्रह आरंभ किया. जमेशदपुर, रांची, देवघर समेत बिहार के कई शहरों की यात्रा की. जहां भी गये वहां महिलाओं ने सैकड़ों की संख्या में उपस्थित होकर न सिर्फ उनका स्वागत किया बल्कि देश के लिए अपने आभूषणों को दान कर दिया.
पटना में श्रीमती हसन इमाम के नेतृत्व में महिलाओं ने िनकाला था विशाल जुलूस
पटना में हुए आंदोलन में विंध्यवासिनी देवी का भी महत्वपूर्ण योगदान था. इस आंदोलन ने इतना जोर पकड़ा कि पटना के जिलाधिकारी को उनका मुकाबला करने के लिए महिला पुलिस भर्ती करनी पड़ी. श्रीमती हसन इमाम के साथ उनकी बेटी शमी काफी सक्रिय थीं. वे कॉलेज के छात्रों के बीच जाकर उन्हें आजादी की लड़ाई में शरीक होने के लिए आमंत्रित करती थीं. श्रीमती हसन इमाम ने पटना की महिलाओं को साथ लेकर विदेशी वस्त्रों के खिलाफ विशाल जुलूस निकाला जिसमें तीन हजार से ज्यादा महिलाएं थीं.
पटना में इन्होंने अंग्रेज सरकार की नाकों दम कर रखा था. सरकार ने इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की. पटना में हो रहे महिलाओं के आंदोलनों का असर दूसरे जिलों पर भी पड़ा. मुंगेर में एक कुलीन मुस्लिम परिवार की महिला श्रीमती शाह जुबैर ने इन प्रदर्शनों से प्रभावित होकर पर्दे को त्याग दिया और विदेशी वस्त्रों के खिलाफ आंदोलन में कूद पड़ीं.
गौरीदास को अंग्रेजों ने बताया था खतरनाक महिला
राजेंद्र बाबू की पत्नी और बहन भी थीं आंदोलन में
4 जनवरी 1933 को गांधी गिरफ्तारी दिवस मनाया गया. इसको लेकर जगह – जगह प्रदर्शन हुए और गिरफ्तारियां हुईं. 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया जिसमें गिरफ्तार कुल लोगों में आधी महिलाएं थीं. इसमें डाॅ राजेंद्र प्रसाद की पत्नी रावंशी देवी, पटना जिला कांग्रेस की चंद्रावती देवी भी शामिल थीं.
इन्हें अदालत ने 15 महीने के कठिन कारावास की सजा सुनायी. सत्याग्रह का यह दौर 1934 तक चला. 1942 के भारत छोड़ों आंदोलन में भी बिहार की महिलाओं ने बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया. छह अगस्त 1942 को जब छात्रों की हड़ताल शुरू हुई तो पटना मेडिकल कॉलेज के छात्रों के साथ यहां के अस्पताल की नर्सों ने भी हड़ताल कर दी. तब डॉ राजेंद्र प्रसाद के बीच – बचाव के बाद उनकी हड़ताल समाप्त हुई थी.
पटना स्थित महिला चरखा समिति से जुड़ी महिलाओं ने अगस्त क्रांति को व्यापक बनाने में बड़ा योगदान दिया. छह अगस्त को ही महिलाओं का एक बड़ा जुलूस निकला. डाॅ राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी की अध्यक्षता में महिलाओं की एक सभा हुई. जिसमें सुंदरी देवी, राम प्यारी देवी आदि ने भाषण दिये. 12 अगस्त को भी उन्होंने एक जुलूस निकाला.
इसमें धर्मशीला लाल, बार – एट – लॉ भी शामिल हुईं और गिरफ्तार की गयीं. पटना के बाहर विभिन्न जिलों में भी महिलाओं ने अगस्त क्रांति में आगे बढ़ कर हिस्सा लिया. 1942 की इस क्रांति में अंग्रेजों ने क्रूरता के साथ उनका दमन किया. बड़े पैमाने पर महिलाएं गिरफ्तार हुई. आंदोलन को दबाने के लिए बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ बलात्कार हुए. गोरे सिपाहियों द्वारा बलात्कार की कई घटनाएं राज्य भर में हुई . इन सब के बावजूद महिलाओं ने बड़ी ही बहादुरी से अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आंदोलन जारी रखा.
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