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सिख विरोधी दंगा : जस्टिस संजीव खन्ना ने सज्जन कुमार की अपील पर सुनवाई से खुद को किया अलग

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित मामले में उम्र कैद की सजा पाये कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार की अपील पर सुनवाई से सोमवार को खुद को अलग कर लिया. सज्जन कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे रखी है. […]

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित मामले में उम्र कैद की सजा पाये कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार की अपील पर सुनवाई से सोमवार को खुद को अलग कर लिया. सज्जन कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे रखी है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष सज्जन कुमार की अपील सूचीबद्ध थी.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायमूर्ति खन्ना इसकी सुनवाई नहीं करना चाहते. इसके साथ ही, पीठ ने सज्जन कुमार की अपील ऐसी उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश दिया, जिसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना सदस्य नहीं हों. सज्जन कुमार की अपील पर शीर्ष अदालत ने 14 जनवरी को केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जवाब मांगा था और इसे आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.

शीर्ष अदालत ने सज्जन कुमार की अपील विचारार्थ स्वीकार करते हुए उनकी जमानत याचिका पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा था. पीठ ने सज्जन कुमार को अपनी अपील के पक्ष में इस मामले से संबंधित तारीखों का लंबा-चौड़ा विवरण भी दाखिल करने की अनुमति दे दी थी. हाईकोर्ट के 17 दिसंबर, 2018 के फैसले के निर्देशानुसार, सज्जन कुमार ने 31 दिसंबर, 2018 को अदालत में समर्पण कर दिया था. हाईकोर्ट द्वारा उम्र कैद की सजा सुनाये जाने के बाद सज्जन कुमार ने कांग्रेस की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया था.

दरसअल, सज्जन कुमार को एक-दो नवंबर, 1984 को दक्षिण पश्चिम दिल्ली के राजनगर पार्ट-एक में पांच सिखों की हत्या और राज नगर पार्ट-दो में एक गुरुद्वारा जलाने की घटना के संबंध में यह सजा सुनायी गयी है. हाईकोर्ट ने इस मामले में पांच अन्य दोषियों (कांग्रेस के पूर्व पार्षद बलवान खोखड़, नौसैना के सेवानिवृत्त अधिकारी कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और पूर्व विधायक महेन्द्र यादव तथा किशन खोखड़) को निचली अदालत द्वारा सुनायी गयी अलग-अलग अवधि की सजा भी बरकरार रखी थी.

गौरतलब है कि तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा गोली मार कर हत्या करने की घटना के बाद दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे हुए थे, जिनमें 2700 से अधिक सिखों की हत्या कर दी गयी थी.

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