नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन भुगतान का बोझ छात्रों पर नहीं डाला जा सकता है और सरकार को धन का इंतजाम करना होगा.
अदालत ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय को छात्रावास की पुरानी नियमावली के तहत उन छात्रों को शीत सत्र के लिए पंजीकरण कराने की अनुमति देने को कहा, जिन्होंने अब तक यह नहीं कराया है. अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब जेएनयू की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर (एएसजी) जनरल पिंकी आनंद ने अदालत को बताया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देश पर सभी विश्वविद्यालयों का छात्रावास शुल्क बढ़ा दिया गया, इसलिए कि उन्हें दिहाड़ी/अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करना होता है. एएसजी के साथ उनकी मदद के लिए वकील हर्ष आहूजा और कुशल शर्मा भी थे.
एएसजी ने कहा कि जेएनयू के 90 प्रतिशत छात्रों ने बढ़ा हुआ शुल्क दे दिया है और बाकी 10 प्रतिशत छात्रों को पुराने हॉस्टल मैनुअल के मुताबिक शीत सत्र के लिए पंजीकरण कराने की अनुमति देना उचित नहीं होगा.। इस पर अदालत ने कहा कि जिन्होंने शुल्क अदा कर दिया, कर दिया. अगर 90 प्रतिशत ने शुल्क अदा कर दिया है तब तो आपकी वित्तीय चिंताओं का समाधान हो गया होगा. बाकी धनराशि का आप इंतजाम कर सकते हैं. इसके लिए छात्रों के साथ बातचीत कीजिये. न्यायमूर्ति राजीव शखधर ने कहा कि अनुबंधित कर्मचारियों के वेतन का बोझ सरकारी संस्थानों में छात्रों पर नहीं डाला जा सकता. आपको (विश्वविद्यालय) धन का इंतजाम करना होगा. हो सकता है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय से धन मिल जाये. सरकार सार्वजनिक शिक्षा के लिए धनराशि देती है. वह इससे बाहर नहीं निकल सकती.
उन्होंने नये हॉस्टल मैनुअल के खिलाफ जेएनयू छात्र संघ की याचिका पर जेएनयू, मंत्रालय और यूजीसी को भी नोटिस जारी कर उनका जवाब मांगा. अदालत ने कहा कि आरक्षित श्रेणी के छात्र, जो बाकी 10 प्रतिशत में आते हैं, वो पुरानी नियमावली के मुताबिक पंजीकरण करा सकते हैं और उनका पंजीकरण एक हफ्ते में होना चाहिए. न्यायाधीश ने अदालत के आदेश के बाद पंजीकरण कराने वाले छात्रों पर विश्वविद्यालय को विलंब शुल्क या जुर्माना नहीं लगाने का भी निर्देश दिया. छात्र संघ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अखिल सिब्बल ने अदालत से कहा कि 2018-19 के चुनाव के बाद से विश्वविद्यालय ने छात्र नेताओं के साथ संवाद रोक दिया.
जेएनयूएसयू पदाधिकारियों ने वकील अभिक चिमनी के जरिए दाखिल अपनी याचिका में नए मैनुअल को मंजूरी देने के लिए इंटर हॉस्टल एडमिनिस्ट्रेशन (आईएचए), कार्यकारिणी परिषद और उच्च स्तरीय कमेटी की अलग-अलग बैठकों के ब्योरे को चुनौती दी है. छात्रसंघ का कहना है कि किसी भी चरण में उनकी राय नहीं ली गयी. इस पर अदालत ने जेएनयू से कहा कि उसे हॉस्टल मैनुअल संशोधित करने पर अपनी बैठकों में छात्र संघ के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहिए.