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सरकार ने विवाद के बाद नयी शिक्षा नीति के संशोधित मसौदे से हिंदी का उपबंध हटाया

नयी दिल्ली/चेन्नई : नयी शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले को लेकर उठे विवाद के बाद मसौदे को संशोधित करते हुए केंद्र ने गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाना अनिवार्य किये जाने के विवादित प्रावधान को सोमवार को हटा दिया. तमिलनाडु में द्रमुक और अन्य दलों ने नयी शिक्षा नीति के मसौदे में […]

नयी दिल्ली/चेन्नई : नयी शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले को लेकर उठे विवाद के बाद मसौदे को संशोधित करते हुए केंद्र ने गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाना अनिवार्य किये जाने के विवादित प्रावधान को सोमवार को हटा दिया. तमिलनाडु में द्रमुक और अन्य दलों ने नयी शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फॉर्मूले का विरोध किया था और आरोप लगाया था कि यह हिंदी भाषा थोपने जैसा है. उन्होंने केंद्र के फैसले का स्वागत किया है.

बहरहाल, नयी शिक्षा नीति के संशोधित मसौदे में कहा गया है कि जो छात्र पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाओं में से एक या अधिक भाषा बदलना चाहते हैं, वे ग्रेड 6 या ग्रेड 7 में ऐसा कर सकते हैं, जब वे तीन भाषाओं (एक भाषा साहित्य के स्तर पर) में माध्यमिक स्कूल के दौरान बोर्ड परीक्षा में अपनी दक्षता प्रदर्शित कर पाते हैं. पहले के मसौदे में समिति ने गैर हिंदी प्रदेशों में हिन्दी की शिक्षा को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया था. तमिलनाडु ने हिंदी थोपने का हमेशा से विरोध किया है. साल 1965 में राज्य में उस प्रस्ताव के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए थे कि हिंदी भारत की एकमात्र आधिकारिक भाषा होगी. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी ने रविवार को कहा कि त्रिभाषा फॉर्मूले के नाम पर दूसरों पर कोई भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए.

देश की नयी शिक्षा नीति के मसौदे से अनिवार्य हिंदी शिक्षण के विवादास्पद प्रावधान को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए द्रमुक ने कहा कि इससे पता चलता है कि पार्टी संरक्षक दिवंगत एम करुणानिधि जिंदा हैं. अपनी पार्टी के पदाधिकारियों, सांसदों और विधायकों की बैठक की अध्यक्षता करने के बाद द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन ने एक ट्वीट में कहा, ऐसे समय में जब हम थलैवर (नेता) कलैनार (दिवंगत करुणानिधि) की जयंती मना रहे हैं, केंद्र सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने संबंधी प्रावधान को वापस लिये जाने से पता चलता है कि कलैनार अभी जीवित हैं. वह करूणानिधि की विरासत का हवाला दे रहे थे. उन्होंने कहा, आइये हम हिंदी को जबरन थोपने का विरोध कर हमेशा अपनी मातृभाषा तमिल की रक्षा करें. द्रमुक आज करुणानिधि की 95वीं जयंती मना रही है. उनका पिछले साल अगस्त में निधन हो गया था.

पार्टी की बैठक के कुछ घंटे पहले उन्होंने कहा कि वह तमिलनाडु में पांच दशकों से द्विभाषी फॉर्मूले को खतरे में डालने वाले किसी भी फैसले का लोकतांत्रिक तरीके से पुरजोर विरोध करेगी. उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को आगाह करते हुए कहा था कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू करने की कोशिश कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है. दिग्गज द्रविड़ नेता और पार्टी के संस्थापक सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व में 1967 में सत्ता में आने के बाद 1968 से राज्य में तमिल और अंग्रेजी का द्विभाषी फॉर्मूला चल रहा है. भाजपा के सहयोगी दल पीएमके ने आरोप लगाया कि यह सिफारिश हिंदी थोपने के लिए की गयी और वह इस प्रस्ताव को वापस लेने की मांग करती है.

ऑस्कर पुरस्कार विजेता संगीतकार एआर रहमान ने केंद्र के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने ट्वीट किया, नयी शिक्षा नीति के मसौदे में सुधार किया गया. बहुत अच्छा समाधान. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिल्ली में कहा, यह मसौदा रिपोर्ट है ना कि अभी कोई नीति. हमने विभिन्न पक्षकारों की राय मांगी है. समिति ने पहले के मसौदे में सुधार किया है और कुछ बदलाव किये हैं. कांग्रेस नेता एवं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में तीन भाषाओं के फार्मूले का सोमवार को जबर्दस्त विरोध किया. उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा को थोपना और कुछ नहीं, बल्कि राज्यों पर नृशंस हमला है. सिद्धरमैया ने कहा, हमारी राय के खिलाफ कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए. तीन भाषाओं की कोई जरूरत नहीं है. अंग्रेजी एवं कन्नड़ पहले से हैं. वे काफी हैं. कन्नड़ हमारी मातृ भाषा है, इसलिए प्रमुखता कन्नड़ को दी जानी चाहिए.

मैसुरु में उन्होंने संवाददाताओं से यह भी कहा कि कर्नाटक के जल, भूमि एवं भाषा के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा. सिद्धरमैया ने इस बात पर जोर देते हुए कि हिंदी को जबरन लागू किए जाने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए. कहा, अगर वे तीन भाषा की नीति बना रहे हैं तो यह जबरन लागू करने जैसा होगा. उन्होंने कहा, या हमने हिंदी की मांग की. अगर यह हमारी सहमति के बिना किया जायेगा तो यह जबरन होगा. यह एकतरफा फैसला होगा. हम भी विरोध करेंगे.

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