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संस्कृत साहित्य ज्ञान-विज्ञान का भंडार

कमतौल : संस्कृत साहित्य के भीतर ज्ञान और विज्ञान का विपुल भंडार है. आज संस्कृत साहित्य पर शोध कर पश्चिम के देश विज्ञान और तकनीकि में आगे पहुंच रहे हैं. वहां नित्य नये आविष्कार हो रहे हैं, जिनका आधार संस्कृत साहित्य ही है. उपरोक्त बातें मंगलवार को रामऔतार गौतम संस्कृत महाविद्यालय अहल्यास्थान के सभागार में […]

कमतौल : संस्कृत साहित्य के भीतर ज्ञान और विज्ञान का विपुल भंडार है. आज संस्कृत साहित्य पर शोध कर पश्चिम के देश विज्ञान और तकनीकि में आगे पहुंच रहे हैं. वहां नित्य नये आविष्कार हो रहे हैं, जिनका आधार संस्कृत साहित्य ही है. उपरोक्त बातें मंगलवार को रामऔतार गौतम संस्कृत महाविद्यालय अहल्यास्थान के सभागार में यूजीसी प्रायोजित दो दिवसीय संस्कृत में विज्ञान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति डॉ. रामचंद्र झा ने कही. उन्होंने कहा यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम खुद अपने खजाने को भूले पड़े हैं.

संस्कृत साहित्य की अवहेलना कर हमने वस्तुत: अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. देश विदेश में हुए कई शोधाें के अनुसार संस्कृत मस्तिष्क को काफी तीव्र करती है जिससे अन्य भाषाओं व विषयों को समझने में काफी सरलता होती है. साथ ही यह सत्वगुण में वृद्धि करते हुये नैतिक बल व चरित्र को भी सात्विक बनाती है.

विशिष्ट अतिथि पूर्व कुलपति डॉ. उपेन्द्र झा वैदिक ने कहा की भले ही संस्कृत भारत की फिर से बोल-चाल की भाषा नही बन पाये, लेकिन कम से कम अध्ययन के लिये संस्कृत अवश्य ही अनिवार्य किया जाना चाहिये. उन्होंने कहा की सूर्य के एक ओर से 9 रश्मिया निकलती है और सूर्य के चारों ओर से नौ भिन्न भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने और इन 36 रश्मियों के पृथ्वी के आठ वसुओं से टकराने से 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है.
जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने. इस प्रकार ब्रह्मांड से निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है. ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदों से मिलता है. इलाहबाद से आये बतौर सम्मानित अतिथि डॉ. किशोर नाथ झा ने कहा की अंग्रेजी बोलने में बड़ा गौरव अनुभव करने वाले, अंग्रेजी में गिटपिट करके गुब्बारे की तरह फूल जाते है. वे संस्कृत में दोष गिनाते है. उन्हे कुएं से निकलकर संस्कृत की वैज्ञानिकता एवं संस्कृत के विषय में विश्व के सभी विद्वानों का मत जानना चाहिए.
समापन सत्र की अध्यक्षता प्राचार्य भगलू झा ने की. डॉ. दिगम्बर मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया. मंच संचालन संयुक्त रूप से डॉ. अभय शंकर एवं डॉ. नवीन कुमार झा ने किया. इस अवसर पर समन्वयक डॉ. शिव लोचन झा, निरीक्षक डॉ.अशोक कुमार आज़ाद, श्रीकांत दास महंत पातेपुर, डॉ. निहार रंजन सिन्हा, डॉ. राजेंद्र झा वेद प्राध्यापक आदि कई वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये.

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