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दुनिया में बढ़ता शरणार्थी संकट

डॉ अनुज लुगुन सहायक प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि, गया anujlugun@cub.ac.in मध्य अमेरिकी देशों से करीब पांच हजार से ज्यादा लोगों का जत्था पैदल करीब डेढ़ हजार किलोमीटर की यात्रा कर अमेरिका जा रहा है. इनमें बच्चे, औरत सब शामिल हैं. भूखे-प्यासे, नंगे पैर ये किसी उम्मीद की तलाश में निकल पड़े हैं. रास्ते में […]

डॉ अनुज लुगुन
सहायक प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि, गया
anujlugun@cub.ac.in
मध्य अमेरिकी देशों से करीब पांच हजार से ज्यादा लोगों का जत्था पैदल करीब डेढ़ हजार किलोमीटर की यात्रा कर अमेरिका जा रहा है. इनमें बच्चे, औरत सब शामिल हैं. भूखे-प्यासे, नंगे पैर ये किसी उम्मीद की तलाश में निकल पड़े हैं. रास्ते में कहीं-कहीं कुछ संस्थाएं उनके लिए दवा और विश्राम की व्यवस्था कर रही हैं. उनकी आंखों की बेबसी द्रवित करनेवाली है, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें अमेरिका में शरण नहीं दिये जाने की बात कही है.
मैक्सिको की सीमा पर उन्हें रोकने के लिए ट्रंप ने सैनिक भी भेज दिये हैं और कहा है कि यदि वे नियंत्रित नहीं हुए, तो सेना उन पर गोली भी चला सकती है. यह पहली बार नहीं है. शरणार्थी संकट 21वीं सदी में भी हमारी सभ्यता के लिए नासूर बनकर उभर रहा है.
खाड़ी देशों से यूरोप की ओर पलायन का बहुत बड़ा कारण वहां हो रहे युद्ध हैं. आंतरिक अस्थिरता और बाहरी राजनीतिक हस्तक्षेप से खाड़ी देश युद्ध की गिरफ्त में हैं. विस्थापन और पलायन के मामलों में हम उसके कारणों को समझने के बजाय शरणार्थी लोगों को ही समस्या मान बैठते हैं.
हमारे लिए शरणार्थी समस्या बहुत बड़ी समस्या बन जाती है और हम उन्हें अपने शत्रु की तरह देखते हैं. सीरिया और अन्य खाड़ी देशों से पलायन के वक्त जर्मनी में वहां के नागरिक समुदायों के एक हिस्से ने बहुत कट्टरता से शरणार्थियों का विरोध किया था. लेकिन वहां के एक अखबार ने लिखा था कि लोग शरणार्थियों को शर्मनाक समझते हैं, जबकि इसका उल्टा है. लोग इसके दूसरे पक्ष को नहीं देखते हैं.
धनी लोग और उनका लाइफ स्टाइल दरअसल प्राकृतिक संसाधनों की लूट, पर्यावरण का नुकसान, पिछड़ेपन और गरीबी की कीमत पर खरीदा गया है. कोई दावा भी नहीं कर सकता कि पश्चिमी देशों की गलतियां इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं. अखबार ने जर्मनी और यूरोपीय देशों की जिम्मेदारी की बात कही थी. सवाल है कि विकसित या अमीर देश धन कहां से और कैसे जुटाते हैं?
खाड़ी देशों में तेल को लेकर होनेवाली अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बात किसी से छुपी नहीं है. उसी तरह एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ भी होता है.
अभी लैटिन और मध्य अमेरिकी देशों से हो रहे पलायन का बहुत बड़ा कारण वहां की आंतरिक अस्थिरता और बढ़ता हुआ अपराध है. होंडुरास, ग्वाटेमाला, अल साल्वाडोर या मैक्सिको जैसे देशों में अपराध की दर बहुत ज्यादा है. आंकड़ों से लगता है वहां की अर्थव्यवस्था और प्रशासन पर आपराधिक गिरोहों का नियंत्रण है. हत्या, मानव तस्करी और बाल यौन उत्पीड़न कारोबार बन गया है.
वनडर्बिल्ट यूनिवर्सिटी के जोनाथन हिस्की के आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में अल साल्वाडोर में चार हजार लोग आपराधिक गिरोहों द्वारा मारे गये हैं, जबकि वहां कोई युद्ध नहीं चल रहा है. सबसे बड़ा गैंग एमएस-13 माना जाता है. अल साल्वाडोर उसका सबसे बड़ा पनाहगाह है. उसी तरह 18- स्ट्रीट गैंग मेक्सिको का सबसे बड़ा अापराधिक गिरोह है.
इन गिरोहों की शाखाएं मध्य अमेरिका और लैटिन अमेरिकी देशों में हैं. इन गिरोहों ने होंडुरास को दुनिया के सबसे खतरनाक जगहों में से एक बना दिया है. वहां की सरकारों का इन पर नियंत्रण नहीं है. माना जाता है कि ये सरकारों को फंडिंग करते हैं. यह स्थिति तब है, जब अमेरिका इन देशों को आर्थिक मदद देता है और उसकी खुफिया एजेंसी सीआईए इन देशों पर कड़ी नजर रखती है. फिर अपराध कैसे फल फूल रहे हैं?
मशहूर लेखक एदुआर्दो गालेआनो कहते हैं कि अमेरिकी देशों की अर्थव्यवस्था गुलाम अर्थव्यवस्था है. बाजारवादी अर्थव्यवस्था और उनकी नीतियों ने उनकी स्वायत्तता और संप्रभुता को लगभग खत्म कर दिया है.
इन देशों में अमीरी-गरीबी का फर्क बहुत तेजी से उभरा है. वैश्वीकरण ने न केवल सस्ते श्रमिकों की भीड़ पैदा कर दी, बल्कि उनके बीच की प्रतिस्पर्धा ने हिंसा को जन्म दिया. अन्याय और हिंसा यहां सबसे कुशलता से बनाये जानेवाले उत्पाद हैं. गालेआनो के अध्ययन बेलगाम बढ़ती अमीरी और गरीबी के बीच की खाई को इसकी वजह मानते हैं.
लैटिन अमेरिका और मध्य अमेरिका से उठनेवाली वामपंथी आवाज पर अमेरिका और सीआईए की कड़ी नजर होती है. वे किसी भी तरह उसे उभरने नहीं देते, न ही वहां अपराध का उन्मूलन उनके एजेंडे में है. मध्य अमेरिका से हो रहे पलायन की वजहें इससे मुक्त नहीं हैं, न ही पलायन की जिम्मेदारी से अमेरिकी नीतियां खुद को मुक्त मान सकती हैं.
दुनिया में बढ़ रही अमीरी-गरीबी की खाई शरणार्थी संकट का कारण बन रही है. विश्व बैंक भी इस बात को मानता है. विश्व बैंक के निदेशक रहते हुए जेम्स वोलफेंसन ने कहा था कि दुनिया अगर इसी तरह चलती रही, तो अमीरी-गरीबी की गैर-बराबरी आनेवाली नस्लों पर टाइम बम की तरह फटेगी. ऐसे संकट को हम अपने देश में भी देख सकते हैं.
हमारे यहां बिहारी मजदूरों के साथ होनेवाला व्यवहार इसका उदाहरण है. हम दिल्ली और बस्तर के बीच की गैर-बराबरी और उससे पैदा हो रहे संकट को देख सकते हैं.
खनन के क्षेत्र अति पिछड़े क्षेत्र होते हैं, लेकिन खनन करनेवाले अत्यधिक अमीर होते हैं. खनन क्षेत्र में पैदा होनेवाले संगठित गिरोह इसके परिणाम हैं. रोहिंग्या मुसलमानों का सवाल इससे अलग नहीं है. संसाधनों की हिस्सेदारी की वजह से ही स्थानीय समुदाय शरणार्थियों को स्वीकार नहीं करते हैं. राजनीति की अवसरवादिता इस संकट को और वीभत्स बना देती है.

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