36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

आतंक पर लगाम लगाये पाकिस्तान

आकार पटेल लेखक एवं स्तंभकार aakar.patel@gmail.com वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा पाकिस्तान को फिर चार माह की मोहलत दी गयी है, ताकि वह धन शोधन एवं आतंकवाद का वित्तपोषण रोकने पर कड़ाई से अमल कर सके. जून 2018 में जब उसके द्वारा मजबूत कार्रवाई हेतु एक अवधि तय की गयी थी, तब से उसने […]

आकार पटेल

लेखक एवं स्तंभकार

aakar.patel@gmail.com

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा पाकिस्तान को फिर चार माह की मोहलत दी गयी है, ताकि वह धन शोधन एवं आतंकवाद का वित्तपोषण रोकने पर कड़ाई से अमल कर सके. जून 2018 में जब उसके द्वारा मजबूत कार्रवाई हेतु एक अवधि तय की गयी थी, तब से उसने इन मोर्चों पर कुछ प्रगति तो दर्शायी, पर अधिकतर कसौटियों पर वह खरा नहीं उतर सका. एफएटीएफ ने कहा कि ‘अब तक इस दिशा में पाकिस्तान द्वारा किये गये अधिकतर कार्यों ने 27 कार्रवाई बिंदुओं में से केवल पांच को ही संबोधित किया है, जबकि कार्यसूची के शेष हिस्से पर उसने कमोबेश प्रगति ही की है.’

पिछले दिनों एफएटीएफ की बैठक में इन दोनों मुद्दों पर असहयोगी देशों की सूची (ग्रे लिस्ट) में पाकिस्तान को बरकरार रखते हुए आइसलैंड, मंगोलिया तथा जिम्बाब्वे को उसमें डाला गया. उसकी काली सूची में सिर्फ दो देश, ईरान एवं उत्तरी कोरिया हैं.

पाकिस्तान से एफएटीएफ की अपेक्षा थी कि वह ‘यह प्रदर्शित करना जारी रखेगा कि उसके प्राधिकारी नकदी के वाहकों (कैश कूरियरों) की पहचान करते हैं और नकदी के अवैध स्थानांतरण पर काबू पाते हुए आतंकवाद के वित्तपोषण हेतु हो रहे इन वाहकों के इस्तेमाल की जोखिम समझते हैं.’

कैश कूरियर उन नेटवर्कों के हिस्से होते हैं, जो दक्षिण एशिया में नकदी के सामान्य प्रवाह से बाहर काम करते हैं, जिनमें हीरों के व्यापार का वित्तपोषण भी शामिल है. यदि भारत या पाकिस्तान इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई करें, तो भी मजबूती से स्थापित ऐसी प्रणालियों से छुटकारा पाना उनके लिए आसान नहीं होगा.

पाकिस्तान उन समूहों में विभेद कर पाने में समर्थ नहीं है जो मजहब, समाज सेवा एवं सामुदायिक सेवा के साथ ही हिंसा से भी संबद्ध हैं. वहां लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की अपने संबद्ध मजहबी निकायों के जरिये सामुदायिक सेवा में भी बड़ी मौजूदगी है.

जब भी वहां कोई बाढ़ या भूकंप आता है, तो प्रभावित आबादी के लिए यही समूह बड़ी तादाद में अपने स्वयंसेवक तथा राहत सामग्रियां भेजते हैं. इससे वे किसी उम्मीदवार को अपना समर्थन देकर, नीति तथा कानून निर्माण में दखल देकर और उसके अलावा राष्ट्रीय नजरिया तय करने जैसी गतिविधियों के द्वारा सियासत में आसानी से घालमेल कर सकते हैं. यह खतरनाक है और पाकिस्तान द्वारा इसका मुकाबला किया जाना चाहिए, मगर कालेधन की तरह इसे भी नियंत्रित कर पाना कठिन है.

अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 को हुए आतंकी हमले और खासकर भारत की संसद पर हुए आक्रमण के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने देवबंदी एवं सलाफी समूहों के विरुद्ध कार्रवाई की, जिसका असर तुरंत दिखा.

कश्मीर में आतंकी तथा उससे संबद्ध हिंसक घटनाएं समाप्त होने लगीं. वर्ष 2001 में 4 हजार मौतों के साथ ये वहां चोटी पर थीं. मगर उसके बाद लगातार घटते हुए ये वर्ष 2002 में 3 हजार, वर्ष 2004 में 1 हजार, वर्ष 2008 में पांच सौ और वर्ष 2009 में तीन सौ ही रह गयीं. उसके बाद वे फिर बढ़ने लगीं. पिछले वर्ष की 450 मौतें 12 वर्षों में सर्वाधिक थीं.

भारत ने नियंत्रण रेखा पर बाड़ खड़ी कर दी है. जम्मू और कश्मीर के अधिकारियों एवं पुलिस का कहना है कि अब घुसपैठियों का बाहर से अंदर आना अथवा अंदर से बाहर जाना अत्यंत कठिन है. इसका अर्थ यह हुआ कि वर्तमान में पाकिस्तान की भूमिका सीमित रह गयी है और स्थानीय लोग आतंकी प्रशिक्षण पाने उस पार नहीं जा सकते. तब ये निश्चित रूप से भारतीय राज्य के विरुद्ध संघर्ष करने को प्रतिबद्ध कश्मीरी हैं, जिन्होंने हमारी सेना को परेशानी में डाल रखा है.

खुद के द्वारा संपोषित इन समूहों के विरुद्ध कार्रवाई का नतीजा पाकिस्तान में तुरंत ही महसूस किया जाने लगा. वे जिस हिंसा का निर्यात करते आ रहे थे, उसने अब पाकिस्तान के अंदर ही सर उठाना शुरू कर दिया.

वर्ष 2000 में जब मुशर्रफ ने उन्हें कुचलने की कोशिशें कीं, तो पाकिस्तानी शहरों में आतंकी घटनाओं का विस्फोट-सा हो गया. मुशर्रफ के हटने के एक साल बाद, वर्ष 2009 में 11 हजार मौतें हुईं. उसके बाद इसमें क्रमशः कमी आती गयी. वर्ष 2010 में 7 हजार, 2013 में पांच हजार, 2016 में एक हजार और पिछले साल 600 मौतें हुईं. वर्तमान वर्ष पिछले दो दशकों में पाकिस्तान का सबसे शांतिपूर्ण वर्ष होगा.

भारत की सरकारें जनता को हमेशा बताती रही हैं कि सारा आतंकवाद पाकिस्तानी शैतानी का नतीजा है. यदि हम यह यकीन करते हैं कि कश्मीर में बढ़ती हिंसक घटनाओं के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है, तो फिर हमें यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि इस हिंसा में कमी के लिए भी वही जिम्मेदार है.

मगर हम यह नहीं मानते. तथ्य है कि आज कश्मीर में जो भी हिंसा है, वह लगभग पूरी तरह स्थानीय है. यह दरअसल कश्मीर में दशकों से चली आ रही भारतीय नीतियों, मीडिया द्वारा कश्मीरियों के विरुद्ध फैलायी गयी नफरत, भारतीय न्यायपालिका द्वारा कश्मीरियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा से इनकार और हमारे द्वारा उनके मानवाधिकारों पर सहानुभूतिपूर्ण विचार से मनाही का ही नतीजा है.

यदि आगामी फरवरी में पाकिस्तान को पिछले दशकों के दौरान उसकी गलतियों के लिए काली सूची में डाल भी दिया जाता है, तो इससे आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को कोई राहत नहीं मिलनेवाली है, यह तसल्ली भले ही मिल जाये कि हमारा दुश्मन अपमानित हुआ.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें