25.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

हारी हुई लड़ाई लड़ता विपक्ष

नवीन जोशी वरिष्ठ पत्रकार naveengjoshi@gmail.com लोकसभा चुनावों में मिली बड़ी पराजय को पीछे छोड़कर विपक्ष के पास ‘अजेय’ नरेंद्र मोदी यानी भाजपा को घेरने का एक अच्छा अवसर हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव थे. चंद महीनों बाद उसे झारखंड, बिहार और दिल्ली में इस अवसर को और बड़ा बनाने का मौका भी मिलनेवाला था. […]

नवीन जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
naveengjoshi@gmail.com
लोकसभा चुनावों में मिली बड़ी पराजय को पीछे छोड़कर विपक्ष के पास ‘अजेय’ नरेंद्र मोदी यानी भाजपा को घेरने का एक अच्छा अवसर हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव थे. चंद महीनों बाद उसे झारखंड, बिहार और दिल्ली में इस अवसर को और बड़ा बनाने का मौका भी मिलनेवाला था.
यह ‘था’ इसलिए कि हालात बता रहे हैं कि विपक्ष यह अवसर अब खो बैठा है. वह अपने में ही घिर कर रह गया है. यही हाल उत्तर प्रदेश का है, जहां ग्यारह विधानसभा सीटों के उप-चुनाव में भाजपा की मोर्चेबंदी के सामने बिखरा हुआ विपक्ष टिक नहीं पा रहा.
बीते लोकसभा चुनाव की तरह विपक्ष के पास भाजपा के खिलाफ मुद्दों की कमी नहीं है. आर्थिक मंदी तेजी से पांव पसार रही है और देश-दुनिया के अर्थशास्त्री चिंताजनक बयान दे रहे हैं. पहले से जारी बेरोजगारी को बंद होते कारखाने भयावह बना रहे हैं. कृषि और किसान का हाल सुधरा नहीं है.
महंगाई बढ़ रही है. सामाजिक वैमनस्य और नफरती हिंसा का दौर थम नहीं रहा. आलोचना और विरोध का दमन बढ़ा है. इस सबके बावजूद विपक्ष भाजपा सरकार को जनता के सामने कटघरे में खड़ा करना तो दूर, इन्हें बहस का मुद्दा भी नहीं बना पा रहा. भाजपा के नेता एक ही हथियार से विपक्ष की बोलती बंद कर दे रहे हैं.
आश्चर्य हो सकता था, लेकिन अब नहीं होता कि महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कश्मीर सबसे बड़ा मुद्दा क्यों है. भाजपा के स्टार प्रचारकों के चुनाव भाषण यह भ्रम पैदा कर रहे हैं कि चुनाव कश्मीर में हो रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी मंच से ललकार रहे हैं कि हिम्मत है, तो विपक्ष कहे कि कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा वापस दिलायेंगे, अनुच्छेद 370 बहाल कर देंगे. अमित शाह, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, सभी मोदी सरकार के कश्मीर फैसलों को सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रहे हैं. कांग्रेस पर लांछन लगा रहे हैं कि वह कश्मीर और सीमा पर हमारे सैनिकों को शहीद होते देखती रही और एक फैसला नहीं ले सकी.
विपक्ष इसका कोई जवाब नहीं दे पा रहा. जो जवाब वह दे सकता है, उसका उल्लेख करने का साहस नहीं बचा. हालात ऐसे बना दिये गये हैं कि जनता का बहुमत सरकार के फैसलों के साथ है. उग्र हिंदू-राष्ट्रवाद पर कश्मीर का ऐसा तड़का लगा दिया गया है कि सारा देश एक तरफ और कश्मीर एक तरफ हो गया है. कई विपक्षी नेता भी पार्टी लाइन से हटकर कश्मीर पर सरकार के साथ हो गये थे. ऐसे में कश्मीर की तरफदारी का अर्थ विपक्ष के लिए बचे जनाधार को भी खो देना है.
किसी भी चुनाव में विरोधी दलों की सबसे बड़ी सफलता सरकार-विरोधी मुद्दों को जनता का मुद्दा बना देना होती है, लेकिन आज के विपक्षी नेता न आर्थिक बदहाली को मुख्य मुद्दा बनाने में सफल हो रहे हैं, न बेरोजगारी को. कुछ दिन दृश्य से लापता रहने के बाद राहुल गांधी ने फिर से मोदी के खिलाफ मोर्चा संभाला है.
वे कह रहे हैं कश्मीर और पाकिस्तान को मुद्दा बनाकर मोदी जनता की बड़ी समस्याओं पर पर्दा डाल रहे हैं, किंतु जैसे उनकी यह बात कोई सुन नहीं रहा. इसलिए वे फिर राफेल विमान सौदे में गड़बड़ी का आरोप लगाकर ‘चौकीदार चोर है’ पर उतर आये हैं. लोकसभा चुनाव में यह नारा पूरी तरह पिट गया था. रक्षा मंत्री बड़े प्रचार के बीच स्वयं फ्रांस जाकर पहला राफेल विमान ले भी आये हैं. ऐसे में राफेल मुद्दा राहुल की कितनी मदद कर सकता है?
इसके अलावा हरियाणा और महाराष्ट्र में विपक्षी खेमा आपसी कलह और दल-बदल से त्रस्त है. पिछले विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रही चौटाला-पार्टी अब विभाजित है. ‘इंडियन नेशनल लोक दल’ के दो धड़े हो गये. ओमप्रकाश चौटाला के महत्वाकांक्षी पोते दुष्यंत चौटाला ने ‘जननायक जनता पार्टी’ नाम से नया दल बना लिया.
कांग्रेस इसका कुछ लाभ उठा सकती थी, लेकिन अनिर्णय के शिकार उसके शीर्ष नेतृत्व ने ही इस अवसर को गंवा दिया. हरियाणा कांग्रेस के नेतृत्व में बदलाव का फैसला बहुत समय तक लंबित रखने के बाद ऐन चुनावों के पहले किया गया. कुमारी शैलजा को नया अध्यक्ष बनाने का फैसला समय रहते किया गया होता, तो उन्हें पार्टी को एकजुट करने का मौका मिलता. पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने नाराजगी में पार्टी ही छोड़ दी और सोनिया गांधी के घर के बाहर विरोध-प्रदर्शन भी किया.
टिकट बंटवारे पर भी रार मची रही. चुनावी मंचों पर एकता-प्रदर्शन करके कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने की कोशिश दिख रही है, लेकिन जमीन पर गुटबाजी जोरों पर है. असंतोष भाजपा में भी है, लेकिन उसके बड़े नेता इसे चुनावी नुकसान में बदलने से रोकना जानते हैं. वे ‘अबकी बार 75 पार’ का नारा लगाकर कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने में सफल हैं. इसी कारण उन्होंने राज्य में अकाली दल से गठबंधन भी तोड़ लिया है.
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का पुराना झगड़ा खत्म होने के बाद उनकी ‘महा-युति’ बहुत मजबूत है. शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस का ‘महा-अगाड़ी’ उसके मुकाबले में बहुत कमजोर है. नरेंद्र मोदी ने वहां अपनी पहली चुनावी रैली 19 सितंबर को की थी, जबकि राहुल की पहली सभा 13 अक्तूबर को हुई. इससे दोनों की तैयारियों का पता चलता है.
सत्ता में वापसी करने की पूरी आशा लगाये मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने यूं ही तंज नहीं कसा कि इस बार चुनाव में मजा नहीं आ रहा, क्योंकि विपक्ष ने पहले ही हार मान ली है. महाराष्ट्र में कांग्रेस काफी पहले जनाधार खो चुकी है. रहे-बचे नेता असंतुष्ट होकर आपस में लड़ रहे हैं.
संजय निरूपम ने तो सीधे शीर्ष नेतृत्व पर ही अंगुली उठाते हुए कह दिया कि कांग्रेस बुरी तरह हारेगी. गठबंधन का दारोमदार शरद पवार पर रहता है, लेकिन अब वे भी उम्र, बीमारी और साथ छोड़कर जानेवाले नेताओं के कारण वैसे ताकतवर क्षत्रप नहीं रहे, जिसके लिए वे जाने जाते हैं. हाल में शरद पवार के दशकों पुराने साथी भाजपा और शिव सेना में चले गये.
उत्तर प्रदेश के ग्यारह उप-चुनावों में चतुष्कोणीय मुकाबला है. सपा, बसपा, कांग्रेस सब आपस में लड़ते हुए भाजपा का मुकाबला कर रहे हैं. उनमें जीतने से ज्यादा दूसरे नंबर पर रहने की होड़ मची है. भाजपा उत्साहित है. स्वयं मुख्यमंत्री योगी प्रचार में उतरे हैं. जो परिदृश्य सामने है, उसमें तो यही कहा जा सकता है कि विपक्ष एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें