36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

सीमित चरणों में हों आम चुनाव

आशुतोष चतुर्वेदीप्रधान संपादक, प्रभात खबरashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in चुनाव किसी भी लोकतंत्र के आधार स्तंभ होते हैं. हर आम चुनाव लोकतंत्र को समृद्ध कर जाता है. सदियों तक सत्ता परिवर्तन हमेशा रक्तरंजित रहा है, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था ने सत्ता परिवर्तन को सहज कर दिया है. लोकसभा चुनाव वास्तव में लोकतंत्र का महाकुंभ है. इतनी व्यापकता, इतनी विविधता की […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

चुनाव किसी भी लोकतंत्र के आधार स्तंभ होते हैं. हर आम चुनाव लोकतंत्र को समृद्ध कर जाता है. सदियों तक सत्ता परिवर्तन हमेशा रक्तरंजित रहा है, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था ने सत्ता परिवर्तन को सहज कर दिया है. लोकसभा चुनाव वास्तव में लोकतंत्र का महाकुंभ है. इतनी व्यापकता, इतनी विविधता की मिसाल दुनियाभर में कहीं नहीं है.
यदि चुनावों की व्यापकता पर नजर डालें, तो 17वीं लोकसभा के लिए 90 करोड़ लोग मतदान के योग्य थे और इनमें से लगभग 60 फीसदी लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया.
महत्वपूर्ण बात यह है कि 18 से 19 साल के डेढ़ करोड़ मतदाताओं ने इस चुनाव में पहली बार हिस्सा लिया और लगभग आठ करोड़ 43 लाख नये मतदाताओं ने इस बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. सात चरणों में हुए मतदान में 10 लाख पोलिंग बूथ पर वोट डाले गये. लोकसभा के लिए मतदान सकुशल संपन्न हो गया और अब बस नतीजों का इंतजार है.
नतीजे किस करवट बैठेंगे, इसको लेकर नेताओं और पार्टी समर्थकों की धड़कनें तेज हैं. चुनाव सात चरणों में और लगभग छह सप्ताह चला और यह सभी के लिए थकाऊ साबित हुआ. पिछले दो महीने से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की गतिविधियां ठप पड़ी हैं. पूरी मशीनरी चुनाव संपन्न कराने में व्यस्त है. नेता, मंत्री और संत्री सब चुनाव में जुटे हुए हैं. रही सही कसर चुनाव आचार संहिता ने पूरी कर दी.
यह सही है कि निष्पक्ष चुनाव जरूरी है, लेकिन आचार संहिता के कारण पिछले दो महीने से सरकारी निर्णय अटके पड़े हैं. हमें इस पर विचार करना होगा कि कैसे चुनाव को सीमित समय में कराया जा सके, क्योंकि इस दौरान देश लगभग स्वत: संचालित अवस्था में होता है. हर पार्टी के लिए आम चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है और पार्टियां पूरी ताकत झोंककर उसे जीतने की कोशिश करती हैं.
यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी अस्त्रागार में से किसी अस्त्र को दागने से नहीं चूकते हैं. इस बार अंतिम दौर तक आते-आते बात मुद्दों तक नहीं रह गयी और नेताओं की बयानबाजी राजनीतिक मर्यादा को तार-तार कर गयी. चुनावों के दौरान पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गरिमा को ठेस पहुंचायी है.
जाने माने समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ा जाना शर्मनाक है. साथ ही महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे के पक्ष में प्रज्ञा ठाकुर का बयान मर्यादा की सभी हदों को पार कर गया. मेरा मानना है कि चुनाव की इतनी लंबी प्रक्रिया ठीक नहीं है. लंबे चुनाव के संचालन की अपनी अलग चुनौतियां हैं.
चुनावों के दौरान जो घटनाएं घटित हुईं, जिनको लेकर बार-बार आयोग सवालों के घेरे में रहा. एक तरह से चुनाव आयोग का भी यह कड़ा इम्तिहान था. उसकी साख पर भी बार-बार सवाल उठाये गये. मेरा मानना है कि अगर चुनाव पांच चरणों में ही संपन्न होते तो शायद बेहतर होता.
यह सही है कि हरेक आम चुनाव राजनीति का एक नया संदेश देकर जाता है. पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विकास के उनके वादे पर लोगों ने वोट किया था. लेकिन, इस बार राष्ट्रीय सुरक्षा आम चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया. यह सच्चाई है कि अब चुनाव जमीनी मुद्दों पर नहीं लड़े जाते.
चुनावों में किसानों की समस्याएं, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा की स्थिति जैसे विषय प्रमुख मुद्दे नहीं बनते. इस बार के चुनाव पर नजर डालें तो पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित था या तो आप उनके साथ हैं, उनके समर्थक हैं अथवा आपका उनके धूर विरोधी हैं. कई स्थानों पर यह ध्रुवीकरण बहुत गहरा था.
कई स्थानों पर ऐसा देखने में आया कि लोगों ने भाजपा उम्मीदवार को नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी को वोट दिया. चुनाव संसदीय प्रणाली की बजाए राष्ट्रपति प्रणाली जैसे ज्यादा नजर आया. जैसे दो उम्मीदवार ही मैदान में थे- एक नरेंद्र मोदी तो दूसरे राहुल गांधी. हालांकि, कई राज्यों में गठबंधन के नेताओं का दबदबा साफ नजर आया. चुनाव में इस बार कई अन्य दिलचस्प बातें देखने को आयीं.
कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों से दूरी बनाते हुए नरम हिंदुत्व की राह पकड़ी और दोनों भाई बहन- राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा मंदिरों में मत्था टेकते नजर आये, जबकि यह भाजपा का कार्यक्षेत्र रहा है. इसके पहले भाजपा कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों की तरफदारी करने का आरोप लगाती रही है. लेकिन, कांग्रेस ने इस बार उनसे दूरी बनाये रखी.
सोशल मीडिया में भाजपा का पलड़ा हमेशा भारी रहता आया है, पर इस बार ऐसा नहीं था. कांग्रेस भी सोशल मीडिया में सक्रिय थी. कांग्रेस ने राफेल, किसानों की नाराजगी, जीएसटी और नोटबंदी के मुद्दे उठाये, वहीं भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा, विकास और केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के अलावा अपने मजबूत संगठन के जरिये बूथ लेवल पर काम किया. सघन प्रचार और ध्रुवीकरण भाजपा का मजबूत पक्ष रहा.
2014 के लोकसभा चुनावों में हिंदी पट्टी के राज्यों यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड का केंद्र में भाजपा की सरकार बनवाने में बड़ा योगदान रहा है. चुनाव परिणामों से साफ होगा कि हिंदी पट्टी के ये गढ़ क्या अब भी भाजपा के साथ हैं अथवा महागठबंधन ने इनमें सेंध लगा ली है.
इस चुनाव में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की भरमार रही. यह भेद कर पाना बेहद कठिन था कि कौन सी खबर सच है और कौन सी खबर फर्जी है. व्हाट्सएप के दौर में सुबह से शाम तक खबरों का आदान-प्रदान होता है और पता ही नहीं चलता कि कितनी तेजी से फेक न्यूज के आप शिकार हो गये. एक ओर तो दुनिया कंप्यूटर और इंटरनेट के दौर से आगे निकल चुकी है. माना जा रहा है कि यह सदी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की है.
अब बात इंटरनेट से मतदान की चल रही है. ऐसे में हमारे कुछेक राजनेता हमें पुराने दौर में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. अब तो यह दस्तूर हो गया है कि हर चुनाव के पहले इवीएम पर सवाल उठाये जाते हैं. लेकिन, लोकतंत्र का बुनियादी तत्व है कि मतदान प्रक्रिया निष्पक्ष हो. मतदाता को यह भरोसा हो कि उसका वोट वहीं पड़ा है, जहां वह देना चाहता था.
इतनी बड़ी चुनाव प्रक्रिया में कुछेक इवीएम में तकनीकी खराबी आ सकती है और उसे तत्काल बदला जाता है. लेकिन हर बार उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाये जाने से लोगों के मन में संशय होता है. विपक्षी दल इवीएम को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गये, लेकिन वहां भी उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया गया. अनेक विपक्षी दल चाहते हैं कि मत पत्रों की पुरानी व्यवस्था को वापस लाया जाए.
यह तथ्य भी सबके सामने है जब मत पत्रों का इस्तेमाल होता था तो सही स्थान मुहर न लगने के कारण लगभग 4 से 5 फीसदी वोट रद्द हो जाते थे. दूसरे यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल में बूथ कैप्चरिंग बड़ी समस्या थी. कुछ समय पहले राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें इसी इवीएम के माध्यम से हुए मतदान से ही बनीं. यह दलील कैसे चलेगी कि जब आप जीतें तो ठीक अन्यथा मशीन खराब है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें