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विशेष राज्य दर्जा विकास की गारंटी

केसी त्यागी राष्ट्रीय प्रवक्ता, जदयू kctyagimprs@gmail.com आगामी 23 मई के बाद केंद्र की नयी सरकार के समक्ष तमाम चुनौतियों के बीच विशेष राज्य का मुद्दा बड़ी चुनौती होगी. गत दिनाें ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक द्वारा एक बार फिर विशेष राज्य के दर्जे की मांग से यह विषय पुनः प्रासंगिक हुआ है. सर्वविदित है कि […]

केसी त्यागी
राष्ट्रीय प्रवक्ता, जदयू
kctyagimprs@gmail.com
आगामी 23 मई के बाद केंद्र की नयी सरकार के समक्ष तमाम चुनौतियों के बीच विशेष राज्य का मुद्दा बड़ी चुनौती होगी. गत दिनाें ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक द्वारा एक बार फिर विशेष राज्य के दर्जे की मांग से यह विषय पुनः प्रासंगिक हुआ है. सर्वविदित है कि ओडिशा निरंतर प्राकृतिक आपदाओं का शिकार रहा है, जिससे राज्य में जान-माल की भारी क्षति होती रही है.
हाल ही में फेनी तूफान से राज्य के 65 लोगों की जानें चली गयीं और लाखों घर तबाह हुए हैं. निरंतर ऐसी आपदाओं ने राज्य के विकास को खासा प्रभावित किया है. ऐसे में बहस की गुंजाइश नहीं बचती कि ओडिशा विशेष राज्य का दावेदार है या नही?
बिहार भी प्रतिवर्ष भीषण बाढ़ और सूखे की चपेट से ग्रसित रहा है, जो इसके विकास में एक बड़ा रोड़ा है. आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के विभाजन के बाद औद्योगिक इकाइयों के स्थानांतरण से आंध्र प्रदेश की आर्थिकी को वैसा ही झटका लगा है, जैसा नये राज्य झारखंड बनने से बिहार को लगा था.
ऐसे में बिहार, ओडिशा और आंध्र प्रदेश द्वारा विशेष दर्जे की मांग को न तो राजनीतिक मुद्दे के तौर पर देखा जाना चाहिए और न ही अवसरवादिता की राजनीति के तौर पर.
पिछले वर्ष भी विशेष राज्य का मुद्दा गर्म हुआ था, जब एनडीए की पुरानी सहयोगी पार्टी टीडीपी द्वारा आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल पाने पर एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ लिया गया था.
इससे पहले 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत विशेष राज्य के दर्जे का प्रावधान समाप्त कर दिया जाना संघर्षरत राज्यों को हतोत्साहित करने जैसा कदम था और इसी को आधार बनाकर आंध्र प्रदेश की मांग ठुकरा दी गयी. केंद्र सरकार की दलील थी कि पूर्वोत्तर के तीन तथा पहाड़ी राज्यों के अलावा विशेष राज्य का दर्जा किसी अन्य राज्य को नहीं मिल सकता.
जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ‘आंध्र प्रदेश रिऑर्गेंनाइजेशन एक्ट 2014’ पर बहस के दौरान प्रदेश को पांच वर्षों के लिए विशेष दर्जा देने की बात कही थी. आंध्र प्रदेश विभाजन एक्ट में विशेष दर्जे की शर्त नहीं थी, लेकिन केंद्र द्वारा आंध्र प्रदेश को विशेष स्तर की वित्तीय सहायता दिये जाने की बात जरूर कही गयी थी.
चौदहवें वित्त आयोग द्वारा ‘कर’ हस्तानांतरण संबंधी सिफारिशें लागू किये जाने से विशेष दर्जे की जगह राज्यों को कर राजस्व से होनेवाली आय में 42 प्रतिशत की हिस्सेदारी का प्रावधान किया गया, जिससे राज्यों को दिये जानेवाले केंद्रीय राजस्व में इजाफा हुआ.
इससे नगर पालिका और ग्राम पंचायत के लिए राजस्व में वृद्धि हुई, लेकिन केंद्र प्रायोजित योजनाओं के आवंटन में कटौती के कारण यह लाभकारी न बनकर लगभग पहले जैसी ही बनी रही.
आमतौर पर केंद्र सरकार वित्त आयोग, केंद्र प्रायोजित योजनाओं तथा केंद्रीय सहयोग के जरिये राज्यों को विकास हेतु अनुदान प्रदान करती है, जिसमें वित्त आयोग की सिफारिशें काफी अहम होती हैं. इन सिफारिशों के अनुसार केंद्र व राज्यों के बीच केंद्रीय करों से हुई कमाई का नये सिरे से बंटवारा होता है. अफसोसजनक रहा कि 15वें वित्त आयोग के ‘टर्म्स ऑफ रेफरेंस’ में 14वें आयोग की तरह ही विशेष दर्जे का प्रावधान दूर रखा गया.
यह समझना जरूरी है कि विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को क्या-क्या सहूलियतें मिलती हैं? पांचवें वित्त आयोग द्वारा जम्मू कश्मीर, नगालैंड और असम को उपर्युक्त आधार पर विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके बाद अरुणाचल, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल और उत्तराखंड इस श्रेणी में लाये गये.
विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को 90 फीसदी अनुदान और 10 फीसदी राशि ऋण स्वरूप मिलने का प्रावधान है, जबकि गैर विशेष राज्यों को केंद्र सरकार की 30 प्रतिशत राशि बतौर अनुदान और 70 फीसदी ऋण के रूप में दिये जाने की व्यवस्था है.
विशेष दर्जा वाले राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉरपोरेट, इनकम टैक्स आदि में भी रियायत मिलती है. इस तस्वीर के साथ ‘राज्य कर’ में छूट देकर निजी निवेश आकर्षित करने की क्षमता न के बराबर रह जाती है और राज्य नये निवेशकों से वंचित रह जाता है.
बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 के एक प्रावधान के तहत विभाजन के बाद उपजी वित्तीय कठिनाइयों के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ की संस्तुति की गयी थी. कुछ हद तक यह प्रकोष्ठ कारगर जरूर रहा, परंतु बिहार को हुई क्षति की भरपाई अब तक नहीं हो सकी है. साल 2013 में रघुराम राजन की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने भी बिहार को ‘सबसे कम विकसित’ की श्रेणी में रखा था.
हालांकि, मौजूदा नेतृत्व ने बिहार को आर्थिक मानकों के शीर्ष तक पहुंचाया है, लेकिन इसको विरासत में मिला आर्थिक-सामाजिक पिछड़ापन आज भी कई मानकों पर शर्मसार करता है. आज बिहार राष्ट्रीय औसत से अधिक और अन्य राज्यों के बीच सर्वाधिक विकास दर की उपलब्धि रखता है. फिर भी बिहार प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक व आर्थिक सेवाओं पर प्रति व्यक्ति व्यय में निम्नतम स्थान पर है.
नीति आयोग समेत अन्य संस्थानों द्वारा बिहार, ओडिशा के पिछड़ापन संबंधी आंकड़े जारी होते रहते हैं, इसलिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को भी इन राज्यों के लिए विशेष दर्जे की वकालत करनी चाहिए. इससे न सिर्फ बिहार, ओडिशा और आंध्र प्रदेश विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सकेंगे, बल्कि देश में नया कीर्तिमान स्थापित करने में भी कामयाब होंगे.

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