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मेरा भी इस्तीफा ले लीजिए!

कुमार प्रशांत गांधीवादी विचारक k.prashantji@gmail.com यह खेल अच्छा है! अाप कल तो अच्छे-बुरे जैसे भी थे, थे; अच्छी हैसियत, अच्छी सुविधाएं, अच्छा पैसा अौर अच्छी शोहरत सब पा अौर समेट रहे थे. सब ठीक चल रहा था. अनुभवी लोग कह रहे थे कि हां, ठीक ही है! लोकतांत्रिक जिम्मेदारियां इसी तरह निभायी जाती हैं, निभायी […]

कुमार प्रशांत

गांधीवादी विचारक

k.prashantji@gmail.com

यह खेल अच्छा है! अाप कल तो अच्छे-बुरे जैसे भी थे, थे; अच्छी हैसियत, अच्छी सुविधाएं, अच्छा पैसा अौर अच्छी शोहरत सब पा अौर समेट रहे थे. सब ठीक चल रहा था. अनुभवी लोग कह रहे थे कि हां, ठीक ही है! लोकतांत्रिक जिम्मेदारियां इसी तरह निभायी जाती हैं, निभायी जानी चाहिए.… अौर फिर एक दिन हम सुनते हैं कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया! जैसे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने 10 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया. नौ दिसंबर तक हम यही जानते थे कि उनके अौर भारत सरकार के बीच कुछ मतभेद हैं. क्या मतभेद थे? रिजर्व बैंक के गवर्नर की खिड़की के परदों का रंग कैसा हो, इस पर मतभेद था क्या?

रघुराम राजन जब तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे, हमें पता चलता रहा कि पैसा सिर्फ दीखता नहीं है, बोलता भी है. राजन ने रिजर्व बैंक की वैसी ही लोकतांत्रिक साख बना दी, जैसी कभी चुनाव अायोग की शेषन साहब ने बनायी थी. नरेंद्र मोदी-अरुण जेटली की जोड़ी रघुराम राजन जैसे गवर्नर को पचा नहीं सकेगी. इसलिए जब राजन को सरकार ने दोबारा गवर्नर बनाने में अानाकानी की, तो उन्होंने मना कर दिया. किसी को हैरानी नहीं हुई, क्योंकि हम जानते थे कि देश के सबसे बड़े बैंक अौर सबसे अहमन्य सरकार के बीच रिश्ते ऐसे नहीं हैं कि वे लंबा चल सकेंगे.

राजन ने पद छोड़ने अौर ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी पर जाने से पहले कहा कि वे नितांत निजी कारणों से इस्तीफा दे रहे हैं. राजन के कहे में विमर्श संभव नहीं था. बेटी नहीं चाहती है कि मैं अागे भी रिजर्व बैंक का गवर्नर रहूं, इसलिए अब गवर्नर नहीं रहना चाहता हूं अादि नितांत निजी कारण ऐसे हैं कि इन पर देश कहे भी तो क्या!

देश इस वक्त भयंकर अार्थिक संकट से गुजर रहा है, सरकार अांकड़े बदलने अौर छिपाने का सारा खेल खेलने के बाद भी यह छिपा कैसे सकती है कि विकास-दर लगातार गिरता जा रहा है, महंगाई पर कोई अंकुश काम नहीं कर रहा है, बेरोजगारी खतरनाक हद तक पहुंच गयी है अौर स्वत: रोजगार पैदा करनेवाले विकास की कोई रूपरेखा हम बना नहीं पा रहे हैं. खुदरा व्यापार अौर छोटे कारोबारी, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की नींव के पत्थर होते हैं, बुरी तरह कुचल दिये गये हैं अौर विश्व बाजार में हमारे रुपये की साख खतरे में है.

शिक्षा-व्यवस्था हमारे भविष्य से ऐसा खेल कर रही है कि वर्तमान अौर भविष्य दोनों नष्ट हो रहे हैं. समाज का माफियाकरण तेजी से हो रहा है- शिक्षा माफिया; स्वास्थ्य माफिया; शराब माफिया; किसान माफिया; रक्षा सौदा माफिया; चुनाव माफिया; विकास माफिया अादि-अादि पूरा समाज लीलते जा रहे हैं अौर राजनीतिक माफिया मुस्करा रहा है.

यह भारतीय लोकतंत्र का असामान्य दौर है. वे सभी इसके अपराधी हैं, जो निर्णायक पदों पर बैठकर सामान्य ढंग से काम चला रहे हैं. समय के पन्नों पर दर्ज है कि जब राजन ने इस्तीफा दिया, तो उर्जित ने उनके छोड़े जूते में ऐसे पांव धर दिया, मानो उन्हें इसके खाली होने का इंतजार था. फिर अर्थतंत्र में ऐसा कत्लेअाम हुअा, जैसा किसी ने न देखा था, न सुना था. नोटबंदी हुई. किसने की? उस प्रधानमंत्री ने, जिसकी अार्थिक समझ का रोना अाज भी देश रो रहा है.

मुद्रा अौर मुद्रा से जुड़ी तमाम फैसलों की जिम्मेदारी भी रिजर्व बैंक की होती है अौर देश की जनता के प्रति वह जवाबदेह भी है. अाखिर हमारे हर नोट पर वही तो लिखित वचन देता है कि यह कागज का टुकड़ा नहीं, मुद्रा है, जो हर हाल में अपनी कीमत के बराबर की कीमत अापको देगी. रिजर्व बैंक इसके लिए वचनबद्ध है. लेकिन एक रात, एक अादमी अाकर देश से कह देता है कि जिसे अाप मुद्रा समझ रहे हैं, वह रद्दी का कागज भर है, अौर रिजर्व बैंक इतना भी नहीं कह सका कि यह फैसला उसकी सहमति से हुअा है.

उर्जित पटेल एक शब्द नहीं बोले. जिन्होंने रिजर्व बैंक की सफेद मुद्रा का चेहरा काला कर दिया था, वे सब कहीं भी परेशान नहीं थे. काला धन जिनकी नसों में दौड़ता है, वे सारे राजनीतिबाज अपने खेल में लगे रहे. देश की बैंकिंग व्यवस्था जिस अाम अादमी के कंधों पर सवारी करती है, वह गंदी सड़कों-गलियों में अपमानित किया जाता रहा, लेकिन रिजर्व बैंक ने कुछ भी नहीं कहा.

उस वक्त के अार्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम का एक शब्द भी कहीं नहीं मिलेगा कि फैसला गलत था. उस पूरे असामान्य समय में वे अपनी मालदार कुर्सी पर बैठे समय काटते रहे. फिर ‘निजी कारणों’ से नौकरी छोड़ दी, अौर दूसरी मालदार नौकरी पर विदेश चले गये. वहां एक किताब लिखी अौर अब देश में अाकर उस किताब की बिक्री सुनिश्चित करने में लगे हैं. अब वे उन सारी कमियों-कमजोरियों की सविस्तार बात कर रहे हैं, जो उनके विचार से मोदी-जेटली मार्का अर्थतंत्र की पहचान है.

ऐसा ही अब उर्जित पटेल करेंगे. हम उनकी किताब भी पढ़ेंगे कि कैसे मोदी-जेटली रिजर्व बैंक की स्वायत्तता खत्म करते जा रहे हैं, असामान्य अार्थिक संकट से देश को उबारने के लिए जो एक संवैधानिक कोष रिजर्व बैंक के पास रखा होता है, वह पैसा भी मोदी-जेटली अपने चुनावी वादों को पूरा करने में उड़ा देना चाहते हैं अौर मैं, उर्जित पटेल अपनी गर्दन हथेली पर लेकर उनके सामने खड़ा हो गया.

यह कायरता है कि बहादुरी? फैसला अाप करेंगे या वक्त! तब तक अाप मेरा भी इस्तीफा ले लीजिए, ताकि मैं भी एक किताब लिखकर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करूं!

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